बंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा और पांच और लोगों को बरी कर दिया है। उन्हें गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में दोषी करार दिया था और वह उम्रकेद की सजा काट रहे थे। जस्टिस विनय जी जोशी (Vinay G Joshi) और जस्टिस वाल्मिकी एसए (Valmiki SA Menezes) की खंडपीठ ने आज (मंगलवार) यह फैसला सुनाया है।

इससे पहले हाईकोर्ट ने न्यायालय ने 14 अक्टूबर, 2022 को प्रोफेसर साईबाबा को बरी कर दिया था, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया था और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए कहा था।

क्यों थे कैद?

उम्रकैद की सजा के के खिलाफ यह अपील पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा, महेश तिर्की, हेम मिश्रा, पांडु नरोटे और प्रशांत राही द्वारा दायर की गई थी। 2013 में महाराष्ट्र की गढ़चिरौली पुलिस ने इन सब पर आरोप लगाया था कि वे प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और उसके ग्रुप रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य थे।

14 अक्टूबर, 2022 को जस्टिस रोहित देव और अनिल पानसरे की एक अन्य पीठ ने मामले में सभी चार लोगों को रिहा करने का आदेश देते हुए दोषसिद्धि को रद्द कर दिया था।

अगले दिन हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग करने वाली राज्य सरकार की याचिका के आधार पर जस्टिस एम आर शाह (अब सेवानिवृत्त) और बेला एम त्रिवेदी की पीठ के समक्ष सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष बैठक आयोजित की गई। सुप्रीम कोर्ट ने उसी दिन नागपुर पीठ के आदेश को यह कहते हुए निलंबित कर दिया था।

इसके बाद अप्रैल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा और अन्य को आरोप मुक्त करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को एक अलग पीठ द्वारा नए सिरे से तय करने के लिए हाई कोर्ट में वापस भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने के भीतर सुनवाई समाप्त करने का निर्देश दिया था।