पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने निधन से एक महीने पहले रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) चीफ जी. सतीश रेड्डी को दोबारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली मिसाइलों पर काम करने की सलाह दी थी। इस बात का खुलासा खुद सतीश रेड्डी ने किया है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति की चौथी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए ये जानकारी साझा की। उनका निधन 27 जुलाई, 2015 में शिलांग में एक व्याख्यान देते वक्त दिल का दौड़ा पड़ने के कारण हुआ था।
डीआरडीओ चीफ ने कहा ‘वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त होने के बाद, उनके निधन से एक महीने पहले मैंने कलाम से उनके आवास पर मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने मुझे दोबारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली मिसाइल पर काम करने की सलाह दी। इस मिसाइल को एक बार लॉन्च करने के बाद यह पेलोड छोड़कर फिर से धरती पर वापस आएगी और दोबार पेलोड लेकर फिर से लॉन्च की जा सकेगी। उन्होंने मुझे इस तरह की मिसाइल पर काम करने के लिए कहा था।’
उन्होंने कहा ‘मेरी कलाम से पहली बार मुलाकात 1986 में हुई थी। पूर्व राष्ट्रपति कलाम खुद भी बड़े रक्षा वैज्ञानिक थे। भारत रक्षा उपकरणों के मामलें आत्मनिर्भर बन चुका है। इनमें विभिन्न क्षमताओं के रडार, युद्ध के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, तारपीडो और कम्युनिकेशन सिस्टम प्रमुख हैं। मालूम हो कि 2012 में तत्कालीन डीआरडीओ चीफ वीके सारसवत ने दूरदर्शन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भारत दोबार इस्तेमाल में लाई जाने वाली मिसाइल पर काम कर रहा है।
उन्होंने चैनल से बातचीत में कहा था कि ‘हमारे पास कई तरह की तकनीक है। इनमें से एक तकनीक ऐसी भी है जिसका इस्तेमाक कर हम ऐसी मिसाइल बना सकते हैं जो दोबार काम में लाई जा सके। ऐसी मिसाइल जो पेलोड को ले जाए और फिर धरती के वातावरण में वापस आकर एकबार फिर से पेलोड लेकर फिर से लॉन्च की जा सके।’
मालूम हो कि इस तरह की मिसाइल दुनिया भर में पॉपुलर हो रही हैं। इस मिसाइल के जरिए खर्च पर भी लगाम लगाई जा सकती है। क्योंकि एक ही मिसाइल दोबारा इस्तेमाल होने से किसी भी देश के खर्च में कमी आएगी। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने इस तरह की तकनीक पर आरएलवी-टीडी लॉन्च भी कर चुकी है।