एक मजूदर के बेटे ने आईआईटी की एंट्रेंस परीक्षा पास कर ली। उसे सीट भी अलॉट हो गई लेकिन एडमिशन की राह में उसकी गरीबी आ गई। मजदूर पिता फीस का इंतजाम नहीं सके। मजह 17 हजार 500 रुपये की फीस ना भर पाने के कारण उसका आईआईटी में दाखिली नहीं हो सका। समय से फीस ना भर पाने के कारण उसकी सीट कैंसल कर दी गई। इस मामले में झारखंड के कानूनी सेवा प्राधिकरण में याचिका दाखिल की गई लेकिन उसे यह कह कर याचिका पर कार्यवाही से इनकार कर दिया कि मामला उसके अधिकार क्षेत्र का नहीं हैं। अब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा है।

CJI तक पहुंचा मामला

बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को इस मामले की सुनवाई की गई। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान छात्र की परेशानी सुनी। उन्होंने छात्र को दिलासा देते हुए कहा कि आईआईटी की कक्षाएं 3 महीने पहले शुरू हो चुकी हैं लेकिन वो चिंता न करे। इस बारे में कुछ करते हैं। चूंकि याचिकाकर्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि का भी ध्यान रखा जाना चाहिए, इसलिए हम नोटिस जारी करना और उसके प्रवेश का ध्यान रखना उचित समझते हैं।

क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट में मुजफ्फरनगर जिले के रहने वाले एक छात्र ने याचिका दाखिल की है। उसने कहा कि उसके पिता दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं। छात्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया था। इसके बाद उसे झारखंड के आईआईटी धनबाद में सीट अलॉट की गई। उसके पिता समय से फीस के पैसे का इंतजाम नहीं कर सके। बाद में सिस्टम में तकनीकी खराबी और फीस का इंतजाम न कर पाने की वजह से 24 जून को एडमिशन लिस्ट से उसका नाम काट दिया गया।