डीएमके और कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के लिए बिना किसी परेशानी के तमिलनाडु में अपना गठबंधन तो बना लिया है, लेकिन डीएमके नेताओं के अभद्र कमेंट आईएनडीआईए गुट (INDIA Bloc) के सहयोगियों के लिए संकट बनता जा रहा है। इससे उत्तर भारत में पार्टी के सहयोगियों को काफी दिक्कतें हो रही हैं। बीजेपी इस मुद्दे पर लगातार आक्रामक रुख बनाई हुई है। पिछले साल सितंबर में डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने “सनातन धर्म को खत्म करने” के बारे में बयान दिया था। इस पर पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने उनको फटकार लगाई थी।
ए राजा के बयान से कांग्रेस नाराज हो गई थी
दिसंबर में डीएमके के धर्मपुरी सांसद डीएनवी सेंथिलकुमार ने हिंदी भाषी राज्यों पर बयान देकर पार्टी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी थी। अब एक और नया संकट पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा ले आए हैं। उन्होंने 1 मार्च को एक बयान दिया। इसमें उन्होंने कहा था कि भारत पारंपरिक रूप से एक भाषा, एक संस्कृति और एक परंपरा वाला राष्ट्र नहीं है। उन्होंने कहा, यह एक देश नहीं, बल्कि एक उपमहाद्वीप है। राजा का बयान ऐसे समय में आया जब मोदी सरकार ने विपक्ष पर “उत्तर-दक्षिण को बांटने” को बढ़ावा देने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। डीएमके नेता ए राजा के बयान पर कांग्रेस ने भी कड़ी प्रतिक्रिया जताई। कांग्रेस के अलावा आईएनडीआईए गुट में शामिल आरजेडी ने खुद को इस बयान से अलग कर लिया।
कौन हैं डीएमके नेता ए राजा?
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रहे डीएमके का दलित चेहरा और नीलगिरी के सांसद ए राजा उस समय राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गए थे, जब उन्हें 2जी घोटाला मामले में आरोपी के रूप में नामित किया गया था। 2017 में उन्हें इस मामले से बरी कर दिया गया। डीएमके में राजा एक जाना-माना चेहरा हैं। 1990 के दशक की शुरुआत में वाइको जैसे नेता के चले जाने के बाद वह पार्टी में आए और डीएमके के संस्थापक एम करुणानिधि के करीबी विश्वासपात्र बन गये थे। वह 1996 में पेरम्बलुर से लोकसभा के लिए चुने गए थे। उस समय उनकी उम्र 30 वर्ष के आसपास थी। उन्होंने जबरदस्त तेजी दिखाई थी। वह सांसद के रूप में अपने पहले ही कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री बन गए और दुरईमुरुगन जैसे डीएमके के दिग्गजों के साथ करुणानिधि के सबसे करीबी लोगों में शामिल हो गये।
डीएमके का बीजेपी के साथ गठबंधन पर राजा ने हाल ही में पार्टी के मुखपत्र मुरासोली में लिखा, “हां, गठबंधन इस शर्त के साथ बनाया गया था कि बीजेपी कश्मीर में धारा 370 रद करने, अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर का निर्माण और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसी बुनियादी नीतियों को ठंडे बस्ते में डाल देगी। यह गठबंधन डीएमके की नीतियों से मेल नहीं खाता था…।”
ए राजा के लिए डीएमके संस्थापक करुणानिधि का पूरा समर्थन था
राजा के लिए करुणानिधि का जोरदार समर्थन उस समय भी रहा जब राजा मुसीबत में थे। 2जी विवाद के दौरान जब डीएमके यूपीए सरकार का हिस्सा थी, तब भी जब बीजेपी के नेतृत्व वाले विपक्ष ने राजा के इस्तीफे की मांग की थी, तब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने उनका पुरजोर समर्थन किया था और आरोप लगाया था कि राजा को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वह दलित हैं।
2017 में जब राजा को आरोपों से बरी किया गया, तब करुणानिधि की तबीयत अच्छी नहीं थी। डीएमके सांसद ने कहा कि उन्होंने खुद को बरी किए जाने के आदेश को जोर से पढ़ा और उसे सुनकर करुणानिधि मुस्कुराते हुए खुशी जताई थी।
राजा की राजनीति और विवादों से नाता
डीएमके के कई वरिष्ठ नेता, अपनी पसंद-नापसंद के बावजूद राजा को एक ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में देखते हैं जिसमें वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ सामरिक समझदारी भी है। डीएमके के एक पदाधिकारी ने कहा, “विचारधारा और संगठनात्मक रणनीति दोनों में उनका कौशल उन्हें आज की पार्टी में अलग जगह देती है। वह जोरदार भाषण दे सकते हैं और पार्टी के लिए अधिकतम संसाधन भी जुटा सकते हैं।”
लेकिन द्रविड़ विचारधारा के प्रति इस प्रतिबद्धता का मतलब है कि वह अक्सर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, खासकर हिंदू राष्ट्रवादियों को गलत तरीके से परेशान करते हैं। जुलाई 2022 में उन्हें उस समय विरोध का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने तमिलनाडु की स्वायत्तता के कम होने के प्रति चेतावनी देते हुए कहा था कि बीजेपी शासित केंद्र सरकार राज्य की स्वायत्तता से इनकार करके द्रविड़ पार्टी को “अलग तमिलनाडु” की मांग उठाने के लिए मजबूर नहीं करे।
दो महीने बाद राजा फिर से उस समय विवादों में आ गए जब उन्होंने मनुस्मृति का हवाला देते हुए और जाति व्यवस्था की आलोचना करते हुए द्रविड़ कड़गम कार्यक्रम में कहा, “जब तक आप हिंदू हैं, आप शूद्र हैं। जब तक तुम शूद्र हो, तब तक तुम वेश्या के पुत्र हो। जब तक आप हिंदू हैं, आप पंचमन (दलित) हैं। जब तक आप हिंदू हैं, तब तक आप अछूत रहेंगे। कितने लोग वेश्या का बेटा बनना चाहते हैं? कितने लोग अछूत रहना चाहते हैं? यदि ये प्रश्न जोर-जोर से पूछे जाएं तो सनातन धर्म की जड़ें नष्ट हो सकती हैं।”