इन दिनों हर जगह आम बजट की चर्चा है। किसी ने इसे निराशाजनक बताया, तो किसी ने इसे देश के विकास की जरूरत माना। मगर इस बजट को भाजपा सरकार के पिछले दस बजटों से अलग रखकर देखना और समझना होगा। इस बजट में राजग सरकार की छाप अधिक है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, क्योंकि बजट मुख्य रूप से वित्तीय पूर्वानुमानों का लेखाजोखा होने के साथ-साथ सत्ता पक्ष की राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी अक्स होता है। चुनाव में जाने से पहले सरकार का अंतरिम बजट देश के विकास के प्रति एक अलग सोच दिखा रहा था, पर तीसरे कार्यकाल के इस पहले पूर्ण बजट में सरकार की देश के आर्थिक विकास के प्रति सोच बदली नजर आती है।

यह भी कहा गया कि यह बजट, नीतियों के बजाय आर्थिक कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर अधिक जोर देता नजर आ रहा है। यानी, बजट का पूरा ध्यान समाज की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर है। इसी कारण 2047 तक के विकसित भारत जैसे सपनों का उल्लेख इसमें नहीं देखने को मिला। वित्तमंत्री ने अपने भाषण का लगभग चौथाई हिस्सा देश के मात्र दो राज्यों पर केंद्रित रखा, जो गठबंधन सरकार को चलाने में मददगार हैं। हालांकि, बिहार और आंध्र प्रदेश, अपने विभाजन के बाद से लगातार आर्थिक संकटों से जूझते रहे हैं। मसलन, आर्थिक खनिज संपदा का बहुत बड़ा भाग बिहार से झारखंड की तरफ चला गया। वहीं, हैदराबाद जैसा बड़ा मेट्रो शहर और आधुनिक सूचना तकनीक का केंद्र आंध्र प्रदेश से तेलंगाना में चला गया। इस वजह से ये दोनों राज्य लंबे अरसे से आर्थिक संकट में हैं। इसलिए इस बजट में इन दो राज्यों के विकास के लिए बड़ी परियोजनाओं आदि के लिए बड़ी राशि का आबंटन अनुचित नहीं माना जाना चाहिए। मगर कई दूसरे राज्य भी आर्थिक संकट में हैं। ऐसे राज्यों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों के विकास के लिए बजट में कोई भी प्रावधान न होना निराश करता है।

सरकार की मुख्य प्राथमिकता चार बिंदुओं पर है। पहले में, सरकार ने अर्थव्यवस्था के अंतर्गत वित्तीय कार्य कुशलता को सबसे अधिक महत्त्व दिया और वित्तीय घाटे को आगामी वित्तवर्ष के लिए 4.9 फीसद पर पूर्वानुमानित किया, जो सराहनीय है। दूसरे पक्ष पर सरकार ने आमजन को महंगाई से राहत दिलाने के लिए एक नए तंत्र के माध्यम से इसे चार फीसद से नीचे रखना निश्चित किया, जो कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले मुल्क, जिसकी वैश्विक पहचान उसकी क्रयशक्ति से है, के लिए अत्यंत आवश्यक है। अब यह देखना होगा कि रिजर्व बैंक किस तरह इस संबंध में अपनी नीतियों में नयापन लेकर आता है।

सरकार ने अधिकाधिक रोजगार सृजन पर बल दिया है। राजग सरकार के पिछले दो कार्यकालों में रोजगार की कमी के चलते असंतोष काफी देखने को मिला और शायद इसी वजह से राजग अपने बलबूते पूर्ण बहुमत नहीं प्राप्त कर पाया। यह अच्छी बात है कि इस बजट में सरकार का पूरा ध्यान युवाओं के लिए अधिक रोजगार सृजन पर है। इसके लिए शुरू की गई ‘प्रशिक्षुता’ योजना एक नया रूख प्रस्तुत करती है। आने वाले वर्षों में देश की पांच सौ बड़ी कंपियों के अंतर्गत एक करोड़ युवाओं को ‘प्रशिक्षुता’ की सुविधा मासिक वित्तीय भत्ते के साथ दी जाएगी। इससे युवाओं को तुरंत आर्थिक सहायता मिलेगी और उनका आत्मविश्वास तथा तकनीकी, प्रबंधकीय दक्षता और कौशल वैश्विक स्तर के अनुरूप बनेगा। मगर यह भी विचारणीय है कि क्या ‘प्रशिक्षुता’ के बाद ये कंपनियां युवाओं को स्थायी रोजगार दे पाएंगी? क्या ग्रामीण और छोटे शहरों के युवा बड़े शहरों की इन कंपनियों में ‘प्रशिक्षुता’ के लिए अपनी जगह बना पाएंगे? क्या पांच हजार रूपए का मासिक भत्ता तुरंत रोजगार की आवश्यकता की तुलना में घर-परिवार के लिए एक अच्छी आर्थिक सहायता होगा?

चौथे पक्ष के अंतर्गत सरकार की भारतीय पूंजी बाजार में आई तेजी पर नियंत्रण करने की कोशिश है। इसमें वायदा बाजार के लेने-देनों पर विभिन्न प्रकार के करों की दरों में बढ़ोतरी करना है। ‘सेबी’ ने भी पिछले दिनों चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि कोरोना के बाद से भारतीय निवेशकों का आकर्षण भारतीय शेयर बाजार की तरफ बहुत बढ़ा है, लेकिन उनकी मुख्य प्राथमिकता इन दिनों वायदा बाजार में निवेश है, जो अधिक सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। इसके चलते छोटी और मध्यम कंपनियां बीएससी तथा एनएससी पर आम निवेशकों के आकर्षण से दूर होती जा रही हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि सरकार शायद यह चाहती है कि शेयर बाजार में आम आदमी वित्तीय निवेश के साथ आए, पर सट्टेबाजी को अपना मुख्य उद्देश्य न रखे।

एक रोचक तथ्य यह भी है कि बजट के बाद समाज में सोने की खरीदारी में एकाएक वृद्धि हुई है। यकीनन, यह वृद्धि बजट में सरकार द्वारा सोने पर आयात शुल्क में की गई कटौती के कारण है। पर सरकार द्वारा बजट में सभी प्रकार के वित्तीय निवेशों के विक्रय पर एलटीसीजी और एसटीसीजी करों की दरों में परिवर्तन भी किया गया है, जिससे आने वाले समय में आम निवेशकों को इसके विक्रय पर अधिक कर देना होगा, जो उन्हें निराश कर रहा है। भारत के घरेलू बाजार में सोने की खरीदारी का 56 फीसद हिस्सा मध्यवर्गीय आय के लोगों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा एलटीसीजी और एसटीसीजी की गणना में ‘इंडेक्सड कास्ट’ के स्वरूप को खत्म करना भी आम निवेशक को निराश करता है, क्योंकि अब उसे विक्रय मूल्य और लागत के प्रत्यक्ष अंतर पर ही कर देना होगा और बीते वर्षों में महंगाई के चलते हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई नहीं हो पाएगी।

यह बजट कुछ बिंदुओं पर बिल्कुल मौन है, जिसमें नए वित्तीय सुधार, निजीकरण के प्रति नई पहल, नए आय के स्रोतों का निर्धारण मुख्य है। विनिवेश के प्रति सरकार की चुप्पी बिल्कुल समझ से बाहर है और इस संदर्भ में यह भी बताना होगा कि राजग सरकार के अब तक के कार्यकाल में पिछले एक दशक में विनिवेश मात्र एयर इंडिया में किया गया है। निराशा वाला पक्ष यह भी है कि समाज का वेतनभोगी तबका आयकर की दरों और श्रेणी में परिवर्तन चाहता था, जो नहीं मिला और इस पक्ष पर मात्र मानक कटौती में बहुत मामूली-सी वृद्धि सरकार द्वारा की गई है। इससे निराश वेतनभोगी अब यह सोचने लगा है कि वह विकसित देशों के बराबर भारत में अपनी आय पर विभिन्न प्रकार के कर का भुगतान तो रहा है, पर उसकी एवज में उसके पास वैश्विक स्तर की सुविधाओं की बहुत कमी है। सरकार द्वारा विदेशी कंपनियों की आय पर कर की दर में 5 फीसद की कमी जरूरी थी, क्योंकि पिछले कुछ अर्से से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में तेजी से कमी देखने को मिली है। पिछले वर्ष के आंकड़ों में यह कमी करीब 62 फीसद की थी।

यह अच्छी बात है कि इस बजट में सरकार का पूरा ध्यान युवाओं के लिए अधिक रोजगार सृजन पर है। इसके लिए शुरू की गई ‘प्रशिक्षुता’ योजना एक नया रूख प्रस्तुत करती है। आने वाले वर्षों में देश की पांच सौ बड़ी कंपियों के अंतर्गत एक करोड़ युवाओं को ‘प्रशिक्षुता’ की सुविधा मासिक वित्तीय भत्ते के साथ दी जाएगी। मगर यह भी विचारणीय है कि क्या ‘प्रशिक्षुता’ के बाद ये कंपनियां युवाओं को स्थायी रोजगार दे पाएंगी? क्या ग्रामीण और छोटे शहरों के युवा बड़े शहरों की इन कंपनियों में ‘प्रशिक्षुता’ के लिए अपनी जगह बना पाएंगे?