जाति पंचायतों की समांतर न्याय व्यवस्था को हाशिए पर डालने की दिशा में महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। सरकार जाति पंचायतों के दबदबे को खत्म करने के लिए नया कानून बनाने जा रही है। इसके बाद जाति पंचायतों के निर्णय गैरकानूनी माने जाएंगे। सरकार ने जनता से इस कानून को बनाने के लिए सुझाव और सिफारिशों की मांग की है। नए कानून का मसविदा गुरुवार को वेबसाइट पर डालते हुए सरकार ने 15 दिनों में जनता से सुझाव मांगे हैं।

जाति पंचायत विरोधी कानून का मसविदा अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने सरकार को बनाकर दिया है। सरकार ने भी इस दिशा में गंभीरता से काम करना तय किया है। गुरुवार को इस मसविदे को वेबसाइट पर सार्वजनिक किया गया है। इस मसविदे के मुताबिक, पुलिस को जाति पंचायत के खिलाफ शिकायत मिलती है तो उसे कार्रवाई करनी पड़ेगी। मसविदे में दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति को सात साल की सजा और पांच लाख रुपए दंड की व्यवस्था की गई है।

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने इस मामले में पहलकदमी कर दी है, जिसे सरकार ने गंभीरता से लिया है। समिति के राज्य कार्याध्यक्ष अविनाश पाटील का कहना है कि इस बारे में समिति अपनी भूमिका विस्तार से 25 नवंबर को सामने रखेगी। सूबे में जाति पंचायतों के अमानवीय न्याय के खिलाफ लंबे अरसे विरोध के सुर उठते रहे हैं। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने इस दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। अदालतें भी इसे समांतर न्याय व्यवस्था बताते हुए तुरंत बंद करने का निर्देश दे चुकी हैं। कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस की सरकार ने जाति पंचायतों के खिलाफ सितंबर 2013 में एक परिपत्र भी जारी किया था। इसमें कुछ धाराओं के तहत अपराध दर्ज करने की व्यवस्था भी की गई थी। मामले को अदालत तक ले जाने के लिए गृह विभाग की अनुमति जरूरी थी, जो मिल नहीं पाई।

बीते साल राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की प्रमुखता में सरकार बनी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आश्वासन दिया था कि वह छह महीने के अंदर जाति पंचायत विरोधी कानून बनाएंगे। सूबे में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें जाति पंचायतों ने लोगों को जाति बहिष्कृत कर दिया। उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया। उन्हें सामूहिक तौर पर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। अंतरजातीय विवाह करने पर जाति से बहिष्कृत करने के मामलों की सूबे में बड़ी तादाद है।

समय-समय पर मानव अधिकार आयोग और उच्च न्यायलय ने ऐसे मामलों में दखल दिया है। रायगढ़ में जाति बहिष्कार के 46 मामले सामने आए थे, जिनमें 28 मामलों में अपराध दर्ज किया था और 450 लोग गिरफ्तार भी किए गए थे। तब भाजपा नेता और रायगढ़ के पालक मंत्री प्रकाश मेहता ने दो टूक कहा था कि सरकार जाति के मामलों में नहीं पड़ना चाहती क्योंकि सभी सवाल कानून के जरिए हल नहीं होते। हैरानी की बात यह है कि जाति बहिष्कार का सामना 2010 में एवरेस्ट फतह करने वाले रायगढ़ के छोटे से गांव भोगाव में रहनेवाले राहुल येलंगे और उनकी पर्वतारोही वकील पत्नी पूर्णिमा को भी करना पड़ा था। ऐसे उदाहरणों की संख्या सूबे में बहुत ज्यादा है।