तमाम सख्ती, चौकसी, सघन तलाशी अभियान और नियंत्रण रेखा पर गहन गश्ती के बावजूद पाकिस्तान पोषित दहशतगर्दों की घुसपैठ पर नकेल कसना चुनौती बना हुआ है। पहाड़ों पर बर्फबारी शुरू होते ही उनकी ये हरकतें और बढ़ जाती हैं। पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हथगोला फेंकने और फिर जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर हुई मुठभेड़ इसके ताजा उदाहरण हैं। हथगोला फेंकने से बारह स्थानीय लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।
जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग के टोल नाके पर सुरक्षाबलों ने एक संदिग्ध ट्रक को रोका, तो उसमें सवार दहशतगर्दों ने गोलीबारी शुरू कर दी। फिर घेराबंदी करके उसमें सवार चारों आतंकवादियों को मार गिराया गया। उनके पास से भारी मात्रा में विस्फोटक और अत्याधुनिक हथियार बरामद हुए। सुरक्षा बलों का मानना है कि पिछले कुछ सालों में इतने भारी साजो-सामान के साथ घुसपैठ की कोशिश नहीं देखी गई। ट्रक में चावल की बोरियां लदी थीं और फिर रेत की बोरियों से बंकर बना कर आतंकवादी उसमें छिपे थे। उनके पास से बरामद सामग्री से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे किसी बड़ी वारदात को अंजाम देना चाहते थे। गनीमत है, समय रहते उनकी साजिश नाकाम हो गई।
मारे गए दहशतगर्दों का संबंध जैश-ए-मोहम्मद से होने का अनुमान है, जिसका संचालन पाकिस्तान की सरजमीं से होता है। जबसे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हुआ है, घाटी में आतंकवादी घुसपैठ बढ़ गई है। हालांकि निरंतर चौकसी और सख्ती की वजह से ज्यादातर मामलों में घुसपैठियों को मार गिराया गया है। कश्मीर में उनके संगठनों को पनपने से रोक दिया गया है।
पहले जिस तरह दहशतगर्द घाटी के युवाओं को बरगला कर हथियार उठाने के लिए उकसाने में कामयाब हो जाते थे, अब नहीं हो पाते। इन संगठनों को बाहर से मिलने वाली वित्तीय मदद पर भी रोक लगी है, जिससे उनके प्रसार पर काफी असर पड़ा है। फि
र भी पाकिस्तान कोई न कोई रास्ता तलाश ही लेता है घाटी में उनकी घुसपैठ कराने का। पिछले डेढ़ सालों में पाकिस्तानी सेना ने संघर्ष विराम उल्लंघन के सारे रेकार्ड तोड़ डाले हैं। वहां की सेना तभी गोलीबारी करती है, जब उसे आतंकवादियों की घुसपैठ करानी होती है। इस पर भारत की सख्त चेतावनी के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। यह संयोग मात्र नहीं है कि एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद से निपटने के लिए एकजुटता पर बल दिया। चीन को भी पाकिस्तान की इन हरकतों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
भारत जब भी अपने यहां आतंकवादी घटनाओं से संबंधित दस्तावेज सौंपता है, तो पाकिस्तान उसे सिरे से खारिज करने का प्रयास करता है। यहां तक कि उसकी अदालतें भी उन दस्तावेजों को कोई प्रमाण मानने से इनकार कर देती हैं। मुंबई हमले के साजिशकर्ता हाफिज सईद को लेकर उसका रवैया सदा से यही रहा है। हालांकि अब वहां की एक अदालत ने उसे दस साल जेल की सजा मुकर्रर कर दी है, पर उस पर कितना अमल हो पाएगा, देखने की बात है।
सरगना दहशतगर्दों के खिलाफ पाकिस्तान ऐसी कार्रवाइयां अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने अपनी प्रतिबद्धता जताने के मकसद से महज दिखावे के लिए करता रहा है। अनेक बार ऐसा हो चुका है कि आतंकी संगठनों के मुखिया के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाती है, फिर उन्हें सरकारी संरक्षण में सेना के कड़े पहरे के बीच रखा जाता है। पाकिस्तान की हकीकत को समझते हुए चीन जैसे उसके समर्थक देशों को आतंकवाद के विरुद्ध खड़ा होना ही चाहिए।