Demonetisation: नोटबंदी (Demonetisation) को चुनौती देते हुए दाखिल की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) 2 जनवरी 2023 को अपना फैसला सुनाएगा। संविधान पीठ के जज जस्टिस बीआर गवई इस मामले पर सभी जजों की एकमत राय के आधार पर फैसला सुनाएंगे। नोटबंदी पर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामों में सरकार ने कहा कि यह पूरी तरह से सोच विचार करने के बाद लिया गया फैसला था।
RBI ने भी अपने हलफनामे में की थी नोटबंदी (Demonetisation) की सिफारिश
8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने नोटबंदी की घोषणा की थी। इस घोषणा से नौ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के साथ परामर्श प्रक्रिया फरवरी 2016 में शुरू हुई थी। आरबीआई ने भी अपने हलफनामे में कहा कि उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और उसने ही नोटबंदी की सिफारिश की थी।
सरकार और आरबीआई के हलफनामों में जिस बात का उल्लेख नहीं है वह यह है कि नोटबंदी के लिए आरबीआई की सिफारिश एक प्रक्रियात्मक आवश्यकता थी। हालांकि, उससे पहले केंद्रीय बैंक ने सरकार के कई फैसलों की आलोचना की थी।
केंद्र और RBI ने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से क्या छुपाया?
जीडीपी के प्रतिशत के रूप में करेंसी इन सर्कुलेशन (CIC): नोटबंदी को सही ठहराने के लिए यह एक प्रमुख बिंदु था। 8 नवंबर, 2016 को अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा था कि कैश का सर्कुलेशन भ्रष्टाचार के स्तर से सीधे जुड़ा हुआ है। 2011-12 से 2015-16 तक पिछले पांच वित्तीय वर्षों में CIC और GDP का अनुपात 11% या उससे अधिक रहा है। हलफनामे में अन्य रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा गया कि 11.55% पर भारत का कैश टू जीडीपी प्रतिशत अनुपात अमेरिका (7.74%) की तुलना में बहुत अधिक था।
हालांकि, हलफनामे में उल्लेख नहीं किया गया है कि GDP के प्रतिशत के रूप में सीआईसी तीन साल के अंदर नोटबंदी से पहले के स्तर पर वापस आ गया। 2019-20 के लिए आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, “करेंसी-जीडीपी अनुपात 2019-20 में 11.3 प्रतिशत से बढ़कर नोटबंदी से पहले के स्तर 12.0 प्रतिशत हो गया। यह अनुपात 2019-20 में बढ़कर 14.4 प्रतिशत हो गया। वहीं, आरबीआई के अनुसार, 2021-22 में यह 13.7 प्रतिशत तक गिर गया।
500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों के चलन में बढ़ोत्तरी: केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि पिछले 5 वर्षों में (आरबीआई डेटा के अनुसार) केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि 500 रुपये के नोट में 76.38% और 1,000 रुपये के नोट के चलन में 108.98% की बढ़ोत्तरी देखी गयी। इसके अलावा, 2014-15 और 2015-16 के आर्थिक सर्वेक्षण में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 से 2015-16 तक अर्थव्यवस्था का आकार 30% घट गया।
वहीं, आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने सरकार के इस विश्लेषण में खामी बताई। आरबीआई ने कहा कि उल्लेखित अर्थव्यवस्था की विकास दर वास्तविक दर है जबकि चलन में मुद्रा में बढ़ोतरी नाममात्र की है। इसलिए यह तर्क नोटबंदी का समर्थन नहीं करता है।
नकली नोट की अधिकता: सरकार के हलफनामे के अनुसार, सिस्टम में नकली करेंसी नोट का पिछले एक साल में भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वहीं, आरबीआई सेंट्रल बोर्ड की बैठक में कहा गया, “प्रचलन में मुद्रा की कुल मात्रा (17 लाख करोड़ रुपये से अधिक) के प्रतिशत के रूप में 400 करोड़ रुपये बहुत महत्वपूर्ण नहीं है।”
ब्लैक मनी के स्टोरेज के लिए 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों का उपयोग: सरकार के अनुसार, “उच्च मूल्यवर्ग के नोटों के रूप में बेहिसाब संपत्ति का भंडारण हुआ।” इसके विपरीत आरबीआई बोर्ड ने इस दावे को खारिज कर दिया। RBI ने कहा, “ज्यादातर काला धन नकद के रूप में नहीं बल्कि सोने या अचल संपत्ति के रूप में रखा जाता है और इस कदम का उन संपत्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।”