Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने हाल ही में एक गर्भवती महिला को अस्थायी जमानत दी है। कोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखते हुए जमानत दी कि जेल में बच्चे को जन्म देने से मां और उसके शिशु पर गलत प्रभाव पड़ेगा। महिला को ड्रग रखने के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था।
जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के ने इस बात पर जोर दिया कि जेल में बच्चे को जन्म देने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने दोहराया कि ऐसे मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान जेल के माहौल में बच्चे को जन्म देने से न केवल आवेदक (महिला) पर बल्कि बच्चे पर भी असर पड़ेगा, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हर व्यक्ति गरिमा का हकदार है। जेल में बच्चे को जन्म देने से मां और बच्चे दोनों पर असर पड़ सकता है और इसलिए मानवीय विचारों की जरूरत है।
कोर्ट ने ये टिप्पणियां स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (एनडीपीएस अधिनियम) के तहत एक मामले में गिरफ्तार एक महिला को छह महीने की जमानत देते हुए कीं।
यह मामला अप्रैल 2024 में की गई छापेमारी के दौरान का है। जब कई आरोपियों से 33.2 किलोग्राम गांजा जब्त किया गया था, जिसकी कीमत 6.64 लाख रुपये थी। इसमे से 7.061 किलोग्राम जमानत आवेदक के पास था, जो कथित तौर पर उसके काले पिट्टू बैग में पाया गया था। अपने पति और अन्य सह-आरोपियों के साथ, महिला पर मादक पदार्थों की व्यावसायिक मात्रा रखने का आरोप था, जो NDPS अधिनियम के तहत एक अपराध है।
उसके वकील ने मुख्य रूप से मानवीय आधार पर जमानत के लिए तर्क दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आवेदक गर्भावस्था की स्टेप में है। ऐसे में वो कई कठिनाइयों का सामना कर रही है। जिसके लिए उसे चिकित्सा देखभाल की जरूरत थी। जो जेल में उपलब्ध नहीं थी। गरिमा के अपने संवैधानिक अधिकार का हवाला देते हुए उन्होंने सुरक्षित प्रसव की स्थिति सुनिश्चित करने के लिए उसे अस्थायी रूप से रिहा करने का अनुरोध किया।
जमानत याचिका का विरोध करते हुए राज्य ने कथित अपराध की गंभीरता को रेखांकित किया। इसने तर्क दिया कि आवेदक की मादक पदार्थों की व्यावसायिक मात्रा के परिवहन में संलिप्तता एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के कठोर प्रावधानों को आकर्षित करती है, जो जमानत को प्रतिबंधित करती है जब तक कि कोर्ट को यह विश्वास न हो जाए कि आरोपी के दोषी न होने और उसके द्वारा इसी तरह का अपराध करने की संभावना नहीं है।
न्यायालय ने आरोपों की गंभीरता को स्वीकार किया, लेकिन हिरासत में प्रसव से जुड़े मानवीय पहलुओं को प्राथमिकता दी।
आर.डी. उपाध्याय बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए जिसमें गर्भवती कैदियों के उपचार के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे। हाई कोर्ट ने कहा कि जेल के माहौल में बच्चे को जन्म देने से मां और बच्चे दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि एनडीपीएस मामले में जांच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है, इसलिए साक्ष्यों या गवाहों के साथ छेड़छाड़ का जोखिम समाप्त हो गया है।
27 नवंबर के आदेश में कहा गया है कि प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के संबंध में कुछ कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आवेदक की रिहाई से उच्च सुरक्षा जोखिम पैदा नहीं होता है और जांच में कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा। एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत कठोर नियम है। हालांकि, परिस्थितियों को देखते हुए आवेदक को अस्थायी जमानत पर रिहा करने के आवेदन पर मानवीय आधार पर विचार किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गर्भवती कैदियों की अस्थायी रिहाई के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं ताकि वे जेल के बाहर बच्चे को जन्म दे सकें। इस आधार पर कोर्ट ने गर्भवती महिला को छह महीने के लिए अस्थायी जमानत प्रदान की।
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