दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में जेएनयू के छात्र शरजील इमाम की जमानत याचिका पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी वकील से तीखे सवाल पूछे। कोर्ट का कहना था कि इमाम को जमानत क्यों नहीं मिलनी चाहिए। देशद्रोह के चार्ज पर कोर्ट का सवाल था कि ये आरोप लगाने से पहले ये देखा जाना जरूरी है कि हिंसा के लिए कहा गया था या नहीं।

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने कोर्ट ने निचली अदालत के रवैये पर हैरानी जता कहा कि उन्होंने कुछ भी नहीं किया है। ये सभी अपराध 7 साल से कम के हैं। शरजील को रिहा क्यों नहीं किया जाना चाहिए? क्या उसके भाग जाने का खतरा है और क्या वह सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। कोर्ट ने मामले से जुड़े गवाहों के बारे में भी सवाल किया। नोटिस जारी 24 मार्च की तारीख तय की गई है।

दिल्ली पुलिस के वकील ने बताया कि शरजील पर धारा 124ए का आरोप है। इसके तहत उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। जस्टिस मृदुल ने कहा कि देशद्रोह के लिए हिंसा के विशेष आह्वान की आवश्यकता होती है। उन्होंने वकील से कहा कि आपको वास्तव में अदालत को इस बात के लिए आश्वस्त करना होगा कि इस मामले में जमानत क्यों नहीं दी जानी चाहिए। कोर्ट का कहना था कि पुलिस अगली सुनवाई में इस बात पर जवाब देगी।

शरजील इमाम ने निचली अदालत के आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की है। इससे पहले निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। उसके खिलाफ देशद्रोह के साथ आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत आरोप तय किए जा चुके हैं।

शरजील के वकील तनवीर अहमद मीर ने हाईकोर्ट से कहा कि एफआईआर में भाषण से तीन पंक्तियों को निकालकर कहा जा रहा है कि उनका क्लाइंट हिंसा भड़का रहा था। मीर ने कहा कि भाषण को पूरा देखेंगे तो पुलिस का आरोप बेसिर पैर का दिखाई दे रहा है। मीर ने कहा कि कई जगह पर वो हिंसा न करने की बात कह रहे हैं। उनका कहना था कि बेतुकी दलीलें देकर शरजील को जेल में रखा जा रहा है।