दिल्ली में बुधवार सुबह वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, दिल्ली में एक्यूआई 335 दर्ज किया गया। इसी के साथ यहां लगातार दूसरे दिन भी वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में बनी रही। दिल्लीवासियों को विषाक्त हवा से रविवार (30 नवंबर) और सोमवार (1 दिसंबर) को थोड़ी राहत मिली थी। हालांकि, मंगलवार को वायु गुणवत्ता फिर से ‘बेहद खराब’ श्रेणी में पहुंच गई। इस बीच दिल्ली सरकार प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए हर रोज सडकों पर पानी का छिड़काव करा रही है। दिल्ली में औसतन हर दिन लगभग 3,000 किलोमीटर सड़कों की पानी के छिड़काव से यांत्रिक रूप से सफाई की जाती है ताकि डस्ट पार्टिकल और धूल को कम किया जा सके।

धूल को दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक माना जाता है। हालांकि, एक स्टडी के मुताबिक़ सिर्फ सडकों पर पानी का छिड़काव पर्याप्त नहीं हो सकता है। एनवायरो पॉलिसी रिसर्च इंडिया (EPRI) द्वारा राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) के सहयोग से किए गए एक अध्ययन के अनुसार, पानी की तुलना में रासायनिक धूल निरोधक (Chemical Dust Suppressants) कणिका तत्वों (Particulate Matter) को कम करने में अधिक प्रभावी होते हैं।

प्रदूषण पर पानी का छिड़काव ज्यादा असरदार या केमिकल?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 2018 में किए गए इस अध्ययन से पता चला है कि रासायनिक धूल निरोधकों की प्रभावकारिता पानी के उपयोग की तुलना में 50-60% अधिक थी जबकि पानी की प्रभावकारिता 25-30% दर्ज की गई थी। अध्ययन पर लगभग 2.97 लाख रुपये खर्च करने वाले सीपीसीबी ने हाल ही में नोएडा स्थित सामाजिक कार्यकर्ता अमित गुप्ता द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में इस अध्ययन का हवाला दिया था।

विशेषज्ञों ने हालांकि, केमिकल के इस्तेमाल से जुड़े नुकसानों की ओर इशारा किया है। रसायनों के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंताएँ जताई गई हैं क्योंकि इनके सही तरीके से इस्तेमाल न किए जाने पर खतरनाक पर्यावरणीय परिणाम पैदा हो सकते हैं। अध्ययन के अनुसार, केमिकल के इस्तेमाल के बाद धूल का स्तर लगभग 30% कम हो गया और लगभग छह घंटे तक कम बना रहा। इसके विपरीत, दिल्ली में धूल नियंत्रण के सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले उपाय, पानी के छिड़काव का प्रभाव आमतौर पर केवल 10-15 मिनट तक ही देखा गया, उसके बाद सतह सूख गई।

रसायनों की लागत केवल 100 रुपये

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-नीरी के विशेषज्ञों के अनुसार, रासायनिक-आधारित धूल निरोधक भी किफायती नहीं हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल छह घंटे में सिर्फ़ एक बार किया जा सकता है जबकि पानी का छिड़काव कई बार किया जाता है। 100 वर्ग मीटर क्षेत्र के लिए, दोनों में 200 लीटर पानी की खपत होती है लेकिन पानी की लागत 90 रुपये प्रति चक्कर है, यानी छह घंटे में कुल मिलाकर लगभग 2,160 रुपये जबकि रसायनों की लागत केवल 100 रुपये है।

पानी का छिड़काव धूल नियंत्रण के सबसे पुराने उपायों में से एक है क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध है और इसे सीधे सड़क की सतह पर छिड़का जा सकता है। यह नमी प्रदान करके कणों को जमा करता है लेकिन तेज़ी से वाष्पीकरण के कारण इसका प्रभाव ज़्यादा देर तक नहीं रहता। ज़्यादा प्रभावी होने के बावजूद, दिल्ली में रसायनों का व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता।

दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए रसायनों का इस्तेमाल कम

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) में कार्यरत एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक़, “रासायनिक-मिश्रित धूल निरोधकों का उपयोग दिल्ली में सीमित क्षेत्रों में ही किया जाता है क्योंकि ये सतह पर एक पतली परत बना देते हैं जो धूल को नीचे रखती है। लेकिन, जैसे ही कोई हलचल होती है यह परत टूट जाती है और यह तरीका कारगर नहीं रह जाता। इसलिए, पानी को मुख्य निरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और रसायनों का प्रयोग केवल वहीं किया जाता है जहाँ न्यूनतम गड़बड़ी हो।

बढ़ते इस्तेमाल के साथ जन स्वास्थ्य पर इन रसायनों के संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंताएँ जताई गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हालाँकि ये एजेंट धूल को जमाव से बचाने के लिए जाने जाते हैं लेकिन अगर इनका अत्यधिक या बार-बार इस्तेमाल सावधानी से न किया जाए तो ये सांस से जुड़ी दिक्कतें या त्वचा में जलन पैदा कर सकते हैं और मिट्टी और पानी पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकते हैं।