जस्टिस यशवंत वर्मा का मुद्दा संसदीय स्थायी समिति की बैठक में उठा। लॉ एंड जस्टिस पर संसदीय स्थायी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक में सदस्यों ने न्यायिक जवाबदेही के बारे में चिंताएं व्यक्त कीं। इसके अलावा सदस्यों ने न्यायपालिका के सदस्यों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए। लॉ मिनिस्ट्री के न्याय विभाग के सचिव अन्य अधिकारियों के साथ भाजपा के राज्यसभा सदस्य बृज लाल की अध्यक्षता वाली समिति के सामने पेश हुए।
जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR क्यों नहीं?
बैठक में मुख्य मुद्दा जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR न दर्ज होना रहा। सदस्यों ने जस्टिस डिपार्टमेंट से पूछा कि अभी तक कोई औपचारिक मामला क्यों नहीं शुरू किया गया और क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने आगे बढ़ने के लिए सहमति दी है।
अधिकारियों ने जवाब दिया कि सरकार ने केवल सीजेआई की सिफारिशों के आधार पर कार्य किया है और अभी तक FIR के लिए कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है। समिति ने अब औपचारिक रूप से जस्टिस डिपार्टमेंट से लिखित में स्पष्ट करने के लिए कहा है कि क्या ऐसी सहमति मांगी गई थी या दी गई थी। अगली बैठक में इस पर जवाब मिलने की उम्मीद है।
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जस्टिस वर्मा के आवास पर 14 मार्च को मिली थी नकदी
जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर 14 मार्च को आग लगने के समय नकदी का भंडार मिला था। उस समय जस्टिस वर्मा अपने आवास पर नहीं थे। मामले की सूचना चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था।
वहीं मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन सदस्यीय पैनल गठित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन सदस्यीय पैनल ने भी पुलिस में शिकायत दर्ज न कराने और चुपचाप इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपना तबादला स्वीकार करने को ‘अननेचुरल’ माना। पैनल ने पाया कि जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी दिल्ली लौटने के बाद एक बार भी स्टोर रूम में नहीं गए। जस्टिस वर्मा ने यह कहकर इसे सही ठहराने का प्रयास किया कि वह अपने परिवार के सदस्यों की भलाई के बारे में चिंतित थे। हालांकि, समिति ने इसे अजीब पाया, क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति क्षति का आकलन करने के लिए कम से कम एक बार घटनास्थल पर जाएगा।