दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अनिल कुमार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके डी-लिमिटेशन प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सतीश शर्मा की बेंच ने अरविंद केजरीवाल सरकार के साथ केंद्र से जवाब तलब किया है।

अनिल कुमार का कहना है कि केंद्र ने जो तरीका परिसीमन के लिए अमल में लाया वो काफी गलत है। वार्डों की आबादी में काफी ज्यादा अंतर है। उनका कहना है कि फाईनल आर्डर में बहुक सी चीजों को नजरंदाज किया गया। जनगणना के हालिया आंकड़ों को ध्यान में रखकर वार्डों का पुर्नगठन होना चाहिए था।

जनहित याचिका में उनका कहना है कि वार्डों का परिसीमन इस तरह से किया जाना था जिससे कि हर जगह पर समान आबादी रह पाती। परिसीमन के बाद 250 वार्डों को देखा जाए तो लगता नहीं कि केंद्र ने सही से फैसला किया। कहीं पर वोटरों की तादाद ज्यादा है तो कहीं पर कम। वार्डों को विभाजित करने का काम धार्मिक और जातिगत आधार पर किया गया। ये संविधान के मूलभूत नियमों का उल्लंघन है।

दलित और अल्पसंख्यकों की आबादी को एक वार्ड से दूसरे वार्ड में शिफ्ट किया गया। ये उनकी आवाज पर बुलडोजर चलाने जैसा है। याचिका में मांग की गई है कि फिर से परिसीमन कराया जाए जिससे लोगों को उनकी आवाज ठीक से उठाने का मौका मिले। उनका कहना है कि एमसीडी चुनावों में लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। लिहाजा अदालत इस मामले में दखल देकर फिर से परिसीमन का आदेश दे।