दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि आतंकवाद, मकोका और जघन्य अपराध के आरोपों का सामना कर रहे कैदियों को टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन की सुविधाओं के उपयोग की अनुमति नहीं देना मनमाना नहीं है। अदालत ने इसके लिए दिल्ली कारागार नियमों, 2018 का हवाला दिया।

पूर्व कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरु और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि दिल्ली कारागार नियमों, 2018 के नियम 631 में साफ तौर पर संकेत दिया गया है कि सार्वजनिक सुरक्षा और लोक व्यवस्था के हित में कैदियों को इस तरह की सुविधाओं से इनकार किया जा सकता है। अदालत ने 16 जनवरी को पारित आदेश में कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, आतंकवादी गतिविधियों और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) एवं जन सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाले अपराधों में संलिप्त किसी कैदी को टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन से नियमित बातचीत करने देने से मना करने को मनमाना या अनुचित नहीं माना जा सकता।’’

दिल्ली कारागार नियमों के नियम 631 के दायरे में सरकार के खिलाफ अपराध, आतंकवादी गतिविधियां, मकोका, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका), जन सुरक्षा अधिनियम और अन्य जघन्य अपराधों में कथित रूप से शामिल लोग आते हैं। इस नियम के अनुसार, इस तरह के अपराधों में कथित तौर पर संलिप्त लोग टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन की सुविधाएं पाने के हकदार नहीं होंगे।

ये सुविधाएं उस स्थिति में दी जा सकती हैं जब जन हित और लोक सुरक्षा खतरे में नहीं हो- दिल्ली हाई कोर्ट

अदालत ने कहा कि यह नियम जेल अधीक्षक को उपमहानिरीक्षक (रेंज) की पूर्व अनुमति के आधार पर मामलों में उपयुक्त फैसले लेने के लिए सशक्त करता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इस तरह, ये सुविधाएं उस स्थिति में दी जा सकती हैं जब जन हित और लोक सुरक्षा खतरे में नहीं हो। अदालत ने कहा कि ऐसे मामले, जहां संचार सुविधाएं प्रदान करना सार्वजनिक सुरक्षा और लोक व्यवस्था के हित में हानिकारक नहीं माना जाता, नियम में उल्लिखित अपराधों में संलिप्त कैदियों को भी ऐसी सुविधाएं प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।

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जेल में कैदियों को कितनी कॉल की है सुविधा?

मकोका के एक मामले में तिहाड़ जेल में बंद कैदी सैयद अहमद शकील की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिका में, नियम 631 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि प्राधिकारों ने कैदियों को फोन कॉल की सुविधा को रेगुलेट करने के लिए 2022 में एक परिपत्र जारी किया था। हालांकि, 2024 के परिपत्र के जरिये यह सुविधा पूर्व में अनुमति दी गई हफ्ते में पांच कॉल के बजाय हफ्ते में केवल एक कॉल तक सीमित कर दी गई।

वकील ने कहा कि अन्य कैदियों या विचाराधीन कैदियों को दिन में केवल एक कॉल करने की सुविधा प्रदान की गई। वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को भी हफ्ते में पांच कॉल की सुविधा प्रदान की गई थी लेकिन नियम के मुताबिक इसे हफ्ते में केवल एक कॉल तक सीमित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2024 के बाद याचिकाकर्ता परिवार से संपर्क नहीं कर सका है और दलील दी कि यह भेदभाव मनमाना और अनुचित है। अदालत ने जेल अधिकारियों को नोटिस जारी किया और सुनवाई एक अप्रैल के लिए निर्धारित कर दी।  यहां पढ़िए देश और दुनिया की बड़ी खबरें

(इनपुट-भाषा)