दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि किसी व्यक्ति को “भारतीय मूल का व्यक्ति (Person of Indian origin)” तभी माना जाएगा जब वह या उसके माता-पिता में से कोई एक 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत में पैदा हुआ हो। अदालत ने यह भी कहा कि कट-ऑफ तिथि को या उसके बाद भारत में पैदा हुए लोगों को PIOs नहीं माना जाएगा जब तक कि उनका जन्म ऐसे क्षेत्र में न हुआ हो जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बना हो।

यह फैसला गृह मंत्रालय (एमएचए) की एक अपील पर आया, जिसमें “भारतीय मूल के व्यक्ति” की व्याख्या पर एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने पहले की टिप्पणी को खारिज करते हुए कहा कि एकल न्यायाधीश का निर्णय नागरिकता अधिनियम के “प्रावधानों की गलत व्याख्या” पर आधारित है।

किस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने दी व्याख्या?

पिछले साल मई में, दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस प्रतिभा सिंह की एकल पीठ ने केंद्र को एक “राज्यविहीन” 17 वर्षीय लड़की रचिता फ्रांसिस जेवियर – को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का निर्देश दिया था, जिसका जन्म भारत में एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक दंपत्ति के यहां हुआ था। लड़की के जन्म के समय, दंपत्ति भारत में रह रहे थे और ओवरसीज़ सिटीजन ऑफ़ इंडिया (OCI) कार्डधारक थे। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा था कि वह अवैध प्रवासी नहीं मानी जाएगी और उसे भारतीय मूल का व्यक्ति माना जाएगा क्योंकि उसकी मां का जन्म जुलाई 1958 में स्वतंत्र भारत के आंध्र प्रदेश में हुआ था।

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कब माना जाएगा किसी व्यक्ति को भारतीय मूल का?

खंडपीठ ने हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि नागरिकता अधिनियम के अनुसार, किसी व्यक्ति को भारतीय मूल का तभी माना जाएगा जब वह या उसके माता-पिता में से कोई एक 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत में पैदा हुआ हो, या किसी ऐसे क्षेत्र में पैदा हुआ हो जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बना हो (उदाहरण के लिए गोवा, सिक्किम)। इसने कहा कि 15 अगस्त, 1947 को या उसके बाद भारत में पैदा हुआ व्यक्ति “भारतीय मूल का व्यक्ति” नहीं माना जाएगा। नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत, ‘भारतीय मूल के व्यक्तियों’ को कुछ शर्तों को पूरा करने पर भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है।

मंत्रालय लड़की को नागरिकता प्रदान करने को चुनौती नहीं दे रहा था बल्कि केवल एकल न्यायाधीश द्वारा ‘अवैध प्रवासी’ और ‘पीआईओ’ के प्रश्न पर अपनाए गए दृष्टिकोण को चुनौती दे रहा था। पढ़ें- हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को लगाई फटकार