दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश ने एक बार फिर अधिकारों के विवाद को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दिया है। केजरीवाल सरकार ने एक याचिका दायर कर उस अध्यादेश को चुनौती दी है जिसके जरिए अधिकारियों की पोस्टिंग की ताकत एक बार फिर एलजी को दे दी गई थी। अब उसी अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया है, साथ में चार जुलाई को उसी अध्यादेश की प्रतियां जलाने की तैयारी है।
क्या है दिल्ली का अध्यादेश विवाद?
जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारों की लड़ाई में आम आदमी पार्टी को एक बड़ी राहत देने का काम किया था। कोर्ट ने साफ कर दिया था कि अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का हक चुनी हुई दिल्ली सरकार के पास रह सकता है। तर्क दिया गया था कि चुनी हुई सरकार के प्रति अधिकारियों का जवाबदेह रहना जरूरी है। लेकिन उसी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। उस अध्यादेश में कहा गया कि अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर में अंतिम मुहर एलजी की ही रहने वाली है।
आप का क्या तर्क?
असल में केंद्र ने कहा कि एक कमेटी का गठन किया जाएगा, जिसमें तीन लोगों होंगे- दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह प्रधान सचिव। अब ये टीम ही फैसला करेगी कि किस अधिकारी को कहां पोस्ट करना है, किसका ट्रांसफर होना है। लेकिन इस फैसले पर अंतिम मुहर लगाने का काम एलजी को करना होगा। आम आदमी पार्टी का कहना है कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने का काम किया है, इसे लोकतंत्र की हत्या भी बता दिया गया है।
अध्यादेश और विपक्षी एकता की कोशिश
वैसे इस एक अध्यादेश विवाद को लेकर अरविंद केजरीवाल तमाम विपक्षी पार्टियों के पास जा चुके हैं। उनकी तरफ से इस मुद्दे के जरिए सभी दलों को एकजुट करने का काम किया जा रहा है। लेकिन उनका वो प्रयास अभी तक कांग्रेस की वजह से पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। असल में 23 जून को पटना में हुई विपक्षी एकता की पहली बड़ी बैठक के दौरान भी आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश विवाद पर समर्थन मांगा था, लेकिन तब मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कहासुनी हो गई और फिर आम आदमी पार्टी ने भी एक फरमान जारी कर दिया। साफ कहा गया कि जिस मीटिंग कांग्रेस होगी, वहां जाना मुश्किल रहेगा।