दिल्ली विधानसभा चुनाव में राजनीतिक मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं। निजी आरोपों के चलते दलों के नेता एक-दूसरे के कपड़े फाड़ने पर आमादा हैं। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है नेता और दल मुद्दों से हट कर आरोप-प्रत्यारोपों में उलझ गए हैं। लोकसभा चुनाव में झटका खाए आम आदमी पार्टी को बिना विधानसभा भंग हुए चुनाव मैदान में लाने का काम भी भाजपा ने ही किया। आप नेता अरविंद केजरीवाल के तो यही चुनाव प्रचार का ढंग है कि वे जो भी बात कहना चाहते हैं पूरी दबंगई से कहते हैं। वह बात झूठी हो सकती है लेकिन वे अपने कहे को ही दुहराते रहेंगे। पहले दिन से वे कह रहे हैं कि भाजपा को हार का डर है इसलिए वह विधानसभा भंग नहीं कर उपराज्यपाल के माध्यम से सरकार चला रही है। भाजपा नेतृत्व वास्तव में मिलीजुली सरकार बनाने या चुनाव करवाने पर फैसला ही नहीं ले पाया। चाहे अदालती दबाव से हो या आप के अभियान से या चाहे भाजपा की अपनी गणना से जब चार नवंबर को विधानसभा भंग कर चुनाव करवाने का फैसला हुआ, तब तक देर हो गई थी और चुनाव आप के एजंडे पर पहुंच चुका था।
आप ने बिजली, पानी और भ्रष्टाचार यानी अपने 49 दिनों के सरकार की उपलब्धियों पर लड़ना तय कर लिया था। एक ही विषय को बार-बार बोलकर उन्होंने इसे चमत्कारी साबित करने की कोशिश की और दिल्ली के गरीब और निम्न मध्मवर्गीय लोगों को लगने लगा कि आप की सरकार मतलब राम राज्य की गारंटी पाना है। भाजपा और कांग्रेस के नेता एक तरफ लगातार इसे झूठा बताकर केजरीवाल पर निजी हमले करते रहे और दूसरी तरफ उन्हीं मुद्दों पर अपनी ओर से बढ़चढ़ कर घोषणा करते रहे। वास्तव में कौन अपनी बात समझा पाया यह तो 10 फरवरी को मतगणना के दिन पता चलेगा लेकिन जो माहौल बनता जा रहा है उसमें तो यही लग रहा है कि विरोधी आप की तोड़ नहीं कर पाए। भाजपा शुरू से ही जीत के बारे में आश्वस्त थी। इसी का परिणाम था कि जब मई में लोकसभा के नतीजे आए तब मध्यावधि चुनाव या सरकार बनाने पर फैसला नहीं कर पाई। आप के लोग पूरी दिल्ली में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उनके उम्मीदवार घोषित हो रहे हैं। दिल्ली भर में होर्डिंग्स और बैनर लगाए जा रहे हैं और भाजपा के लोग मान कर चल रहे हैं कि उनके पास तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा तुरूप का इक्का है जिसके आगे केजरीवाल नहीं टिक पाएंगे।
पहले माना गया कि ईमानदार छवि वाले हर्षवर्धन का विभाग इसलिए बदला गया कि दोबारा उनको ही पार्टी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करेगी। बाद में तो पता चला कि विभाग बदल कर उनको दरकिनार किया गया है। जैसा दिल्ली के नेता दोहराते थे कि दिल्ली में भी हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में बिना मुख्यमंत्री का नाम तय किए प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा। 10 जनवरी की रामलीला मैदान की रैली सफल नहीं हुई तो भाजपा ने अपनी रणनीति बदल दी और आनन-फानन में पूर्व आइएएस अधिकारी किरण बेदी को 15 जनवरी को भाजपा में शामिल कराकर उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। बेदी की घोषणा से आप के लोगों को एक झटका तो लगा क्योंकि बेदी उनकी ही पुरानी सहयोगी थीं लेकिन वे तुरंत संभल गए आप नेता अरविंद केजरीवाल की सभा में बदस्तूर भारी भीड़ का आना जारी रहा। भाजपा का सारा गणित कांग्रेस की ताकत बढ़ने से भी थी। वैसे 24.50 फीसद वोट कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में आने पर भी त्रिशंकु विधानसभा आई थी और चार सीटों की कमी से भाजपा की सरकार नहीं बन पाई। फिर भी माना जा रहा था कि कांग्रेस के मुकाबले में आने से आप के वोट बंटेगा और कम वोट लाकर भी भाजपा पूर्ण बहुमत पा लेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को कांग्रेस की कमान मिलने पर ऐसा वातावरण बनता दिख रहा था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सभा और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सफल सभा और रोड शो के बावजूद आपसी कलह ने उसे कमजोर हालत में पहुंचा दिया है।
जो भाजपा नहीं चाहती थी वही होता दिख रहा है। भाजपा के नेता शुरुआत में आप को मुकाबले में न होने के दावे कर रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री ने रामलीला मैदान में आप पर सीधा हमला बोल कर खुद ही अपनी हड़बड़ाहट दिखा दी। उसके बाद की चारों सभाओं में उनका हमला लगातार तेज होता गया और उनकी देखा-देखी पार्टी के सारे नेता दनादन हमला करने लगे। भाजपा हाई कमान ने देखा कि बेदी भी जीत की गारंटी नहीं है तो उन्होंने केंद्र सरकार के मंत्रियों की फौज दिल्ली में लगा दी। फिर भी हालात बदले नहीं लग रहे हैं। केजरीवाल की तरफ से तो हमले हो ही रहे थे। उन्हें अपने लोगों के स्टिंग होने की आशंका थी। दो दिन पहले गलत तरीके से चंदा लेने के मुद्दे ने निजी आरोपों की मर्यादा को और कम करने का काम किया है। अब चुनाव प्रचार के लिए कम समय बचा है। भाजपा पूरी ताकत से उस आरोप को हर व्यक्ति तक पहुंचाने में लगी है और आप उसकी काट करने में आरोप-दर आरोप लगा रही है। गुरुवार शाम तक यह चलते रहने वाला है।
दिसंबर के विधानसभा चुनाव में 70 सदस्यों वाली विधानसभा में अकाली दल के एक सदस्य समेत भाजपा के 32 और आप के 28 और कांग्रेस के आठ सदस्य थे। 14 फरवरी को आप की सरकार के इस्तीफे के बाद 17 दिसंबर से साल भर के लिए दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू था। उसके साल भर बाद 10 फरवरी को तय होगा कि दिल्ली किस दल के हवाले रहने वाली है।
मनोज मिश्र