Delhi Election Ground Report: दिल्ली का सीमापुरी इलाका दलित और मुस्लिम आबादी से भरा हुआ है, विधानसभा के लिहाज से यह एक आरक्षित सीट है। झुग्गियों की भरमार, पतली गलियां सीमापुरी की पहचान बन चुकी हैं। लेकिन जब अपनी चुनावी यात्रा पर हम निकले, इस सीमापुरी इलाके ने हमें कई कहानियां दीं, कई सच्चाइयों से रूबरू करवाया। यहां आकर पता चला कि केजरीवाल सरकार की योजनाएं तो जमीन पर दिखती हैं, लेकिन उसका लाभ सिर्फ एक वर्ग को मिल रहा है। यहां आकर पता चला कि वोटरों के नाम सही में गायब तो हो रहे हैं, लेकिन सिर्फ AAP के तो ऐसा बिल्कुल नहीं।
AAP में शामिल नेता, कांग्रेस नाम के साथ लगा बोर्ड!
सीमापुरी इलाके में एंट्री लेते ही हमारी नजर सबसे पहले एक बड़े से बोर्ड पर पड़ी। ऐसा बोर्ड जिसने देश की सियासत के बारे में काफी कुछ बता दिया। उस बोर्ड पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था ‘अखिल भारतीय मजदूर कांग्रेस’। उसी पोस्टर पर तस्वीर थी वीर सिंह धींगान की। जी हां, वहीं वीर सिंह धींगान जो चुनावी मौसम में कांग्रेस का दामन छोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं, जो इस बार सीमापुरी सीट से ही आप की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
अतरंगी कार्यकर्ता, अपने ही उम्मीदवार की लेता मौज
इस बोर्ड को देख हम और कई थ्योरियां गढ़ने ही वाले थे कि सामने से एक शख्स ने हमे अपने पास बुला लिया। थोड़ी बातचीत की तो पता चला कि वो आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है। ऐसा कार्यकर्ता जो पार्टी के प्रति तो वफादार है, लेकिन सीमापुरी से जिन वीर सिंह धींगान को उतारा गया है, उनके प्रति उसकी निष्ठा कुछ कम दिखाई देती है। जिस तरह से वो खुद सड़क पर लगे उस पोस्टर को देख हंस रहा था, जगजाहिर था कि सिर्फ पाला बदलने से ही विश्वास भी नहीं जीत लिया जाता।
उसी आप कार्यकर्ता ने हमे हंसते हुए बोला- भाई कई बार कह चुके हैं, कोई यह पोस्टर हटाता ही नहीं है। यह सुन हम भी थोड़ा मुस्कुरा लिए और फिर सीधे इलाके लोगों से बातचीत करने गए। यहां आने से पहले ही हमे जानकारी मिली थी कि सीमापुरी में कई लोगों का वोटर लिस्ट से नाम गायब चल रहा है। अरविंद केजरीवाल ने खुद क्योंकि कई दफा इस मुद्दे को उठा दिया था, हम सोचकर गए थे कि इस बारे में जरूर पड़ताल करेंगे। अब इसे संजोग कहें या किस्मत, जैसे ही अपने सीमापुरी में एंट्री और पहले परिवार से बात की, वोटर लिस्ट से गायब वाला मुद्दा उठ गया।
वोटर लिस्ट से नाम गायब, बीजेपी वालों के भी!
25 साल का लड़का, आंखों में मायूसी और हमसे बोला कि एक बार भी वोट नहीं डाला है। कई बार बोल दिया, लेकिन यह लोग वोटर लिस्ट में नाम ही नहीं डालते। मेरी पत्नी का नाम भी वोटर लिस्ट से गायब है। हम तो शुरुआत से ही यहां रहते हैं, मेरी पैदाइश यहां की है, मेरे माता-पिता का वोट है, लेकिन हमारा नहीं है। चुनाव सिर पर है, लेकिन अभी तक कोई बीएलओ वाला नहीं आया है।
फर्जी वोटर भी कम नहीं, जो है नहीं उसका वोट
अब यह शख्स अपनी आपबीती बता ही रहा था, दूसरा सामने से आया और काफी नाराज होकर बोला कि यह रमजानी कौन है। हम हैरान थे, समझ नहीं आया कि यह अचानक से रमजानी का जिक्र कैसे हो गया। वो शख्स सामने से बोला भईया हम भी ऐसे ही परेशान रहते हैं। यह घर मेरा है, मैं वाल्मीकि समाज से आता हूं, लेकिन मेरी जगह किसी रमजानी का वोटर लिस्ट में नाम चल रहा है। इस इलाके में तो कही कोई मुस्लिम नहीं रहता है। जब भी शिकायत करने जाते हैं, सामने से बोला जाता है कि नाम काट दिया है, लेकिन फिर वही दिक्कत हो जाती है।
मजे की बात एक यह भी रही कि यहां जिन लोगों से हम बात कर रहे थे, उनमें से कई खुद को बीजेपी समर्थक बता रहे थे, यानी कि सिर्फ आप वोटरों के ही नहीं बीजेपी वोटरों के भी नाम लिस्ट से गायब चल रहे हैं। खैर इस मुद्दे से आगे बढ़े तो लोगों ने बताना शुरू किया कि सीमापुरी का एक मोहल्ला क्लीनिक है जो बनाया तो अच्छी नीयत के साथ गया लेकिन अब सिर्फ काम चलाऊ हो चुका है।
मोहल्ला क्लीनिक की लोगों ने खोली पोल
हमने इस बारे में जब एक से बात करने की कोशिश की तो वो नाराज हो गया, तल्खी भरी आवाज में बोला- कौन सा मोहल्ला क्लीनिक, सब बंद हो चुका है। अब वो ज्यादा उत्तेजित था या फिर केजरीवाल से नाराज, लेकिन बगल में खड़ी एक बूढ़ी दादी ने तुरंत बोला कि बेटा बंद नहीं हुआ है, खुला है। मैं को कभी वहां गई थीं, लेकिन वो चलता नहीं है। दो अलग-अलग बयान सुन हम थोड़ा कन्फ्यूज हुए तो दूसरे लोगों से भी यहीं सवाल पूछा- मोहल्ला क्लीनिक का क्या हाल है।
एक महिला ने हमे बोला सब खत्म हो चुका है, कोई जरूरी दवाई यहां नहीं मिलती है। कोई बीमार पड़ जाए तो दूर के अस्पताल जाना पड़ता है। अब वोटर लिस्ट से नाम गायब, मोहल्ला क्लीनिक खस्ताहाल, अगला सवाल मन में आया कि सरकार जो महिलाओं को सुविधाएं दे रही है, क्या वो उन तक पहुंच भी रही हैं। हमने सोचा, सामने से एक महिला ने बोला कि यह जो महीने पैसे देने की बात होती है, हमे कुछ ना मिला। मेरा तो राशन कार्ड भी नहीं बन पाया है, आंखों से देख नहीं सकती हूं, बहुत दिक्कत हो रही है।
ना बीजेपी पसंद ना आप, आखिर कहां जाएगा वोटर?
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए दूसरी महिला ने बोला कि चाहे बीजेपी हो या आम आदमी पार्टी, अगर हमे सुविधा नहीं मिलेगी तो कोई फायदा नहीं। अब बात क्योंकि सुविधा पर चल रही थी, रमजानी का जिक्र करने वाला शख्स फिर हमारे सामने था। उसने बोल दिया कि सुविधा तो मिलती है, लेकिन सिर्फ मुस्लिम इलाकों में। हमारे लिए यह कहानी में एक ट्विस्ट जैसा था, बात हम वोटर लिस्ट, लोकल मुद्दे और केजरीवाल के कामकाज पर कर रहे थे, यहां पर अचानक से बात होने लगी मुस्लिम इलाके की।
थोड़ा और जानने का मन किया तो उसी शख्स ने बताया कि सीमापुरी के मुस्लिम इलाके में सबसे पहले सारी सुविधाएं पहुंच जाती हैं, हम यहां वाल्मीकि समाज वाले इंतजार करते रह जाते हैं। दूसरी महिला बोलती है कि आखिर ऐसा होता क्यों है, यह भेदभाव किस वजह से हो रहा है। अब इस बारे में ज्यादा पड़ताल तो हम भी नहीं कर पाए, लेकिन इतना जरूर था कि लोगों की आंखों में आक्रोश था।
सीमापुरी में मुद्दों से इतर हमे यह देखने को जरूर मिला कि वीर सिंह धींगार के पुराने कामों को लोगों ने याद किया है। यहां लोग बीजेपी से नाराज दिखे, आम आदमी पार्टी पर भी अपना गुस्सा निकाला, लेकिन ऐसी आवाजें भी कान में पड़ीं कि धींगार ने पहले भी काम किया था, अब फिर करेंगे। कुछ लोगों ने बोला कि कांग्रेस के टाइम में सीमापुरी में ज्यादा विकास हुआ। हमारे लिए यह बड़ी बात थी क्योंक कांग्रेस का दिल्ली में जनाधार खो सा गया है, लेकिन फिर भी कुछ नेताओं की लोकप्रियता ऐसी है कि चेहरे के दम पर वे वोट खींच सकते हैं।
AAP प्रत्याशी धींगार का फुल इंटरव्यू
यहां तो कांग्रेस के पुराने सिपाही आम आदमी पार्टी की टिकट पर लड़ रहे हैं, ऐसे में संभावना है कि केजरीवाल को इसका फायदा सीमापुरी में हो जाए। वैसे हमने तो बात वीर सिंह धींगार से भी की। सबसे पहले जानने का प्रयास रहा कि कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में आने का यह ट्रांजिशन कैसा रहा? धींगार ने हमे दो टूक बोला कि मैं एक सीनियर नेता हूं, कांग्रेस में घुटन सी होने लगी थी, जो सम्मान मैं चाहता था वो मुझे नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में केजरीवाल के साथ आने का फैसला किया।
अब हमे लगा कि चुनावी मौसम में टिकट की गारंटी मिल गई होगी इसलिए स्विच मारा गया। लेकिन धींगार ने हमारे सवाल से इत्तेफाक नहीं रखा। उन्होंने साफ कहा कि पहले से टिकट को लेकर कोई बात नहीं हुई थी, इतना जरूर था कि वे मेरे काम से खुश थे, वे जानते थे कि मैंने यहां विकास किया है। इसलिए मुझे बाद में टिकट दिया गया है।