Delhi Vidhan Sabha Election 2025: ‘मैं दिल्ली हूं’ के 10वें पार्ट में आज बात उस सियासत की जो गिरगिट से भी तेज अपने रंग बदलती है। यहां ना नेताओं के बयानों के कोई मोल है और ना ही कोई चुनावी वादा कसौटी पर खरा उतरता है। सिर्फ चुनाव आते हैं, वादे होते हैं और फिर नेता और जनता दोनों भूल जाते हैं। दिल्ली को विकसित बनाने के सपने कोई आज से नहीं देखे जा रहे हैं, यहां की सड़कों को पैरिस जैसा बनाने का ख्वाब सिर्फ केजरीवाल ने नहीं देखा है, लेकिन हकीकत सभी को पता है, जनता की आपबीती सब बयां कर रही है।
केजरीवाल का यमुना पर पुराना बयान
दिल्ली का ऐसा ही एक अधूरा ख्वाब है यमुना की सफाई। जो दिल्ली पानी के लिए तरसती रहती है, जो दूसरे राज्यों पर अपनी जरूरतों के लिए निर्भर है, उसे कभी भी साफ पानी नसीब नहीं हुआ, उसे कभी भी 24 घंटा पानी की सप्लाई नहीं मिली। लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक इंटरव्यू में कह दिया- थोड़ी बहुत राजनीति मैं सीख गया हूं, लोग यमुना के नाम पर वोट नहीं देते हैं।
क्या ‘मसीहा’ बनने की कोशिश में केजरीवाल?
यह अरविंद केजरीवाल का बयान था, उन्होंने माना था कि यमुना सफाई का वादा अधूरा रह गया, उन्होंने माना था कि वे अपने कार्यकाल में यमुना को साफ नहीं कर पाए। लेकिन फिर भी उन्होंने यह भी कह दिया था कि इसके नाम पर कोई वोट नहीं मिलते। लेकिन अब दिल्ली की सियासत ही ऐसी है कि जिस यमुना के मुद्दे से केजरीवाल लगातार बच रहे थे, अब 24 घंटा उसी मुद्दे को भुनाने की कोशिश में लगे हैं। कहना चाहिए कि आप संयोजक तो इस मुद्दे के सहारे खुद को ही ‘मसीहा’ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
यमुना साफ नहीं- फेलियर, AAP को दिखा अवसर
इस पूरी कहानी को समझना जरूरी हो जाता है क्योंकि यहां पर एक विफलता को आम आदमी पार्टी ने अवसर में बदलने की कोशिश की है। समझने वाली बात यह है कि यमुना का गंदा पानी असल चुनौती आम आदमी पार्टी के लिए थी, बीजेपी भी केजरीवाल को निशाने पर ले रही थी। लेकिन फिर अरविंद केजरीवाल मीडिया के सामने आए और उन्होंने एक विस्फोटक दावा कर दिया।
आप संयोजक ने कहा कि हरियाणा में इस समय भाजपा की सरकार है लेकिन उन्होंने यमुना से आने वाले पानी में जहर मिलाकर भेज दिया। यह तो दिल्ली जल बोर्ड का भला हो क्योंकि इंजीनियर ने उस बात को पकड़ लिया, उन्होंने इस पानी को बॉर्डर पर ही रोक दिया। अगर यह पानी दिल्ली में आ जाता और पीने के पानी के साथ मिल जाता, न जाने कितने लोगों की जान चली जाती, नरसंहार जैसी स्थिति हो जाती।
क्या केजरीवाल अपनी रीब्रॉन्ड्रिंग कर रहे?
अब अरविंद केजरीवाल ने इस एक बयान से दो मुद्दों को साधा। एक तरफ उन्होंने दिल्ली की जनता को मैसेज दिया- यमुना जो प्रदूषित है, उसमें दोष उनका नहीं बल्कि बीजेपी का है। यहां भी उन्होंने एक राज्य की सरकार को लपेटे में ले लिया। दूसरा नेरेटिव केजरीवाल ने सेट कर दिया कि वे इतने सच्चे नेता हैं कि अपनी विफलताओं को जनता के सामने स्वीकार करते हैं, वे तो जनता के सामने फिर उन मुद्दों को उठाना जानते हैं।
यह जो दूसरा नेरेटिव अरविंद केजरीवाल सेट करना चाहते हैं, यह उनका एक पुराना दांव है जो आम आदमी पार्टी के साथ शुरुआत से ही चला आ रहा है। आम आदमी पार्टी दिखाती रही है कि उसकी राजनीति अलग है, वो दूसरे दलों की तरह जाति-धर्म के आधार पर काम नहीं करती है। वो हर वो काम करना चाहती है जो शायद बीजेपी या कांग्रेस करने का ना सोचे। ऐसा ही काम है अपनी विफलताओं को जनता के सामने चुनावी मौसम में स्वीकार करना। साफ मैसेज दिया जा रहा है- हम जवाबदेह हैं, हम जनता के बीच जाते हैं, हम हर बार अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करते हैं।
मुफ्त की योजनाओं के हट गया दिल्ली चुनाव?
यहां पर एक दिलचस्प बात यह भी है कि अभी तक दिल्ली का चुनाव मुफ्त की योजनाओं से भरा दिख रहा था, कहा जा रहा था कि बाकी सारे मुद्दे हवा-हवाई हो चुके हैं। लेकिन पिछले पांच से छह दिनों में अरविंद केजरीवाल ने सिर्फ दो मुद्दों को इस चुनाव में सबसे बड़ा बना दिया है- यमुना की सफाई और साफ पानी। उन्हें इस बात का अहसास है कि वे इन दोनों ही वादों पर पिछले 10 सालों में डिलीवर नहीं कर पाए हैं, लेकिन वे यह भी मानकर चल रहे हैं कि दिल्ली की जनता उम्मीद उन्हीं से लगा रही है। ऐसे में उम्मीदों को हवा देने वाली रणनीति पर ही वे काम करते दिख रहे हैं।
बीजेपी ने गंगा साफ नहीं, केजरीवाल समझ गए
वैसे जानकार तो यह भी मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल यमुना को इतनी प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड भी इस मामले में बहुत अच्छा नहीं है। नमामि गंगे के जरिए गंगा को स्वच्छ करने की कोशिश हुई है, लेकिन परिणाम उतने अच्छे नहीं मिले, यमुना की सफाई के लिए भी मोदी सरकार ने काफी पैसा दिया, लेकिन हाल ज्यादा नहीं सुधरा। अब केजरीवाल भी इस बात को समझते हैं, उन्हें पता है कि बीजेपी इस मुद्दे पर उन्हें उतना नहीं घेर पाएगी। वैसे भी अगर इस तरह से सियासी लड़ाई को आगे बढ़ाया जाएगा तो जनता के मन में सिर्फ एक सवाल आएगा- यमुना कौन साफ कर सकता है- केजरीवाल या बीजेपी?
अगर जनता के बीच में यह दो विकल्प आ जाते हैं, उस स्थिति में अरविंद केजरीवाल बाजी मार सकते हैं, कारण स्पष्ट है, बीजेपी अभी भी स्थानीय तौर पर एक मजबूत नेता की तलाश में है। इस समय भी जो दिल्ली का चुनाव लड़ा जा रहा है, वो पूरी तरह पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है। ऐसे में केजरीवाल एक तय रणनीति के तहत ऐसे मुद्दे को उठा रहे हैं। यहां पर एक मजेदार बात यह भी है कि यमुना का मुद्दा उठाकर अरविंद केजरीवाल शीशमहल विवाद से बचने की कोशिश में दिख रहे हैं।
शीशमहल विवाद के चंगुल से निकले केजरीवाल
बीजेपी का ही प्रचार देखा जाए तो शीशमहल विवाद जो सुर्खियों में बना हुआ था, यमुना के एक मुद्दे ने उसकी हवा निकाल दी। खुद बीजेपी इस समय यमुना विवाद में अपना टाइम ज्यादा इनवेस्ट करती दिख रही है। पीएम मोदी भी जनसभा में आपदा पर यमुना को लेकर दिए बयान को शर्मनाक बताने से नहीं चूक रहे। ऐसे में केजरीवाल जो चाहते थे, वो हो चुका है, लेकिन क्या यह यमुना विवाद मास्टर स्ट्रोक साबित होता है या फिर मास्टर फेलियर, यह 8 फरवरी को साफ हो जाएगा। वैसे यमुना की सियासत भी जानने की इच्छा हो रही है तो यहां क्लिक करें