Delhi Election 2025: ‘मैं दिल्ली हूं’ के सातवें पार्ट में बात 2015 विधानसभा चुनाव की जिसने सभी राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। एक ऐसा चुनाव जिसने इतिहास रच दिया, ऐसा चुनाव जिसने जनादेश देने के मामले में भी रिकॉर्ड स्थापित किया और एक ऐसा चुनाव जिसने कांग्रेस का दिल्ली से पूरी तरह सफाया कर डाला। आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली का 2015 वाला चुनाव किसी चमत्कार से कम नहीं था। बीजेपी भी मोदी लहर पर सवार होने के बावजूद कुछ नहीं कर सकी और एक नई पार्टी ने दो साल के अंदर में प्रचंड बहुमत हासिल कर सरकार बनाई।

केजरीवाल के तीन फैसले और 2015 की जीत

दिल्ली का 2015 विधानसभा चुनाव भी मुद्दों पर पूरी तरह केंद्रित रहा। एक तरफ अगर कांग्रेस शीला दीक्षित के 15 सालों को अपना आधार बना रही थी, बीजेपी भी पीएम मोदी के चेहरे के सहारे सत्ता में आने की कोशिश कर रही थी। लेकिन आम आदमी पार्टी के पक्ष में था जबरदस्त नेरेटिव। 2013 में जब पहली बार आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपनी सरकार बनाई, उसने आते ही बिजली के बिल आधे कर दिए, लोगों को 20 हजार लीटर तक मुफ्त पानी घरों में दिया। इसके ऊपर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर भी नकेल कसी।

वो वादें जिनसे बनी आम आदमी पार्टी की लहर

अब इन सभी फैसलों ने अरविंद केजरीवाल को मात्र 49 दिनों में ही जनता का नायक बना दिया था। उनकी कॉमन मैन वाली छवि दिल्ली वालों के दिल में घर कर चुकी थी। इसके ऊपर भ्रष्टाचार के खिलाफ यूं आवाज उठाना, उनका एक हेल्पलाइन नंबर शुरू करने की बात करना, सभी वादे पसंद आने लगे थे। केजरीवाल ने तो 2015 के चुनाव में यहां तक कहा था कि वे हर गली में सीसीटीवी लगवाएंगे, मोहल्ला क्लीनिक शुरू करवाएंगे और तय रणनीति के तहत झुग्गी वालों को सस्ते मकान दिलवाएंगे। आम आदमी पार्टी का सिर्फ इन वादों तक सीमित रहना चुनाव में काम कर गया, महिलाएं उनके साथ जुड़ीं, मिडिल क्लास सस्ती बिजली के लालच में साथ गया और गरीब तबका तो मकान की आस में वोट देने गया ही।

बीजेपी का फेल दांव और किरण बेदी जैसा चेहरा

दूसरी तरफ खड़ी बीजेपी के लिए 2015 वाला चुनाव किसी बुरे सपने जैसा रहा। इस चुनाव में बीजेपी की रणनीति लगातार बदलती रही, एक ऐसा चुनाव जहां शुरुआत में पीएम मोदी के चेहरे पर आगे बढ़ा गया, लेकिन फिर मतदान से कुछ दिन पहले ही किरण बेदी को अपना सीएम उम्मीदवार बना दिया। बड़ी बात यह रही कि किरण बेदी ने तो तब कुछ दिन पहले ही बीजेपी का दामन थामा था और पार्टी ने उन्हें सीधे ही सीएम पद के लिए खड़ा कर दिया।

कांग्रेस का शून्य और पतन की कहानी

कृष्णा नगर सीट से किरण बेदी को टिकट दिया गया, लेकिन वे बुरी तरह हार गईं, केजरीवाल की सुनामी ने बीजेपी की सुरक्षित सीट को भी नहीं बख्शा। बाद में ऐसा माना गया क बीजेपी का प्रचार जरूरत से ज्यादा निजी हमलों वाला रहा और उसमें दिल्ली के विकास की बात कम और केजरीवाल को निशाने पर लेने की कवायद ज्यादा देखी गई। इसी वजह से दिल्ली का जो स्विंग वोटर था, वो एकमुश्त तरीके से आम आदमी पार्टी के साथ चला गया। बीजेपी का आंकड़ा सिर्फ 3 सीटों पर इसलिए सिमटा क्योंकि कांग्रेस ने जरूरत से ज्यादा खराब किया, वो शून्य लाकर रह गई। इसके ऊपर कांग्रेस का ज्यादातर वोट आम आदमी पार्टी के पास गया और इसी ने उसे 70 में से 67 सीटें जितवा दीं।

वोट शेयर 50% के पार, ऐतिहासिक जनादेश

अरविंद केजरीवाल के लिए वो जीत इसलिए खास रही क्योंकि अपने पहले चुनाव में वे अपनी पार्टी को बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंचा पाए थे, इसके ऊपर कांग्रेस के बाहरी समर्थन के साथ सिर्फ 49 दिनों की सरकार चलाने का मौका मिला। लेकिन 2015 में ऐसा प्रदर्शन देखने को मिला कि वो कसर पूरी तरह दूर हो गई। आम आदमी पार्टी का वोट शेयर अप्रत्याशित ढंग से बढ़कर 54.5 फीसदी तक चला गया। वहीं बीजेपी का वोट शेयर जो 2003 से ही लगातार बढ़ रहा था, वो घटकर 32.3 फीसदी पर पहुंच गया। कांग्रेस ने तो सबसे ज्यादा निराशाजनक प्रदर्शन करते हुए सिर्फ 9.7% वोट शेयर हासिल किया।

2015 ने कैसे बदल दी दिल्ली की राजनीति?

उस चुनाव में वैसे एक खास बात यह रही कि तीनों ही पार्टियों ने अपना सीएम फेस घोषित किया था, आम आदमी पार्टी ने अगर केजरीवाल को उतार रखा था, बीजेपी ने किरण बेदी को मौका दिया था, वहीं कांग्रेस ने भी अजय माकन पर दांव चला था। लेकिन बीजेपी अंदरूनी लड़ाई की वजह से फंस गई, कांग्रेस का तो पूरा जनाधार ही शिफ्ट हो गया और आम आदमी पार्टी ईमानदारी और नई राजनीति वाले नेरेटिव के सहारे एक सुनामी पर सवार हो गई। 2015 का चुनाव दिल्ली में इसलिए भी लैंडमार्क रहा क्योंकि उसने आम आदमी पार्टी को एक नए विकल्प के तौर पर पूरी तरह स्थापित कर दिया। इस एक चुनाव ने आम आदमी पार्टी के भी कई वोटबैंक खड़े कर दिए, वो मुस्लिमों की पार्टी बनी, शहरी वोटरों की पार्टी बनी, गरीबों का भी भरपूर वोट उसे मिला। इसी वोटबैंक के सहारे आज भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के किले को ढहाना मुश्किल है। अगर 2013 के दिल्ली चुनाव की कहानी पढ़नी है तो यहां क्लिक करें