राजधानी दिल्ली में चुनावी मौसम चल रहा है, सभी पार्टियों ने बड़े वादे किए हैं, फ्री की योजनाओं की भरमार देखने को मिल रही है। लेकिन कुछ ऐसे भी मुद्दें हैं जिनका जिक्र ज्यादा होता नहीं दिख रहा। ऐसे ही कुछ मुद्दें हैं वायु प्रदूषण, ट्रैफिक जाम और खस्ता ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम। असल में तो यह भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। दिल्ली में वर्तमान में क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम उतना दुरुस्त नहीं चल रहा है, उस वजह से लोग अपने प्राइवेट वाहनों का ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं। अब क्योंकि प्राइवेट वाहन सड़क पर ज्यादा हैं तो उससे जाम की स्थिति पैदा हो रही है। जाम की स्थिति पैदा हो रही है, इसी वजह से प्रदूषण का भी स्तर पर भी बढ़ रहा है।

दिल्ली में प्रदूषण और ट्रैफिक की बड़ी समस्या

आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में जो कुल प्रदूषण है, उसका 51.5 फीसदी हिस्सा तो लोकल पॉल्यूटेंट की वजह से है। वहां भी ट्रांसपोर्ट से होने वाला प्रदूषण काफी आगे रहता है। 2023 में अकेले 2 मिलियन से भी ज्यादा प्राइवेट वाहन रेजिस्टर किए गए थे, माना जा रहा है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट के क्योंकि अभी भी उतने बेहतर विकल्प मौजूद नहीं हैं, लोग अपनी गाड़ियां निकालना ही सही समझते हैं। लेकिन फिर भी जानकार मानते हैं कि अगर जागगरूत को बढ़ाया जाए, अगर लोगों को इसके नुकसान समझाए जाएं तो स्थिति में सुधार हो सकता है।

जानकार क्या समाधान मानते हैं?

वैसे इसी सुधार में एक कोशिश Young Leaders for Active Citizenship (YLAC) भी कर रहा है, उनके साथ साभा, राहिगिरी फाउंडेशन और Safetipin भी आए हैं। इन सभी ने साथ मिलकर एक मुहिम शुरू की है जिसका नाम दिल्ली चार्टर (Dilli Charter)। इस समय दिल्ली क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन की समस्या से जूझ रहा है, ऐसे में कैसे इसे सुधारा जा सकता है, इस पर फोकस दिल्ली चार्टर मुहिम कर रही है।

इस बारे में YLAC की फाउंडिंग पार्टनर अपराजिता भारती कहती हैं कि इस समय क्योंकि दिल्ली चुनाव का माहौल चल रहा है, राजधानी की जनता के लिए यह एक सुनहरा मौका है कि वे एक ज्यादा सशक्त, बेहतर मोबिलिटी फ्रेमवर्क की वकालत करें। यह एक मौका है कि अगली सरकार के लिए एजेंडा सेट किया जाए, फिर चाहे सरकार किसी भी पार्टी की क्यों ना बने। इस मुहिम के बारे में Safetipin की को फाउंडर कल्पना विश्वनाथ कहती हैं कि दिल्ली में क्योंकि पब्लिस जगहों पर महिलाओं के लिए अभी भी सुरक्षा उतनी अच्छी नहीं है, उस वजह से उनका आर्थिक और समाजिक तौर पर ज्यादा योगदान नहीं हो पा रहा। अब चुनाव नजदीक है तो यह सही समय है जब मांग की जाए कि सभी को सुरक्षित पब्लिक स्पेस मिले।

राहिगिरी फाउंडेशन में ट्रस्टी की भूमिका में सारिका पांडा कहती हैं कि दिल्ली चार्टर एक ऐसी मुहिम है जिस वजह से उस तरह की अर्बन प्लानिंग से लोगों को मुक्ति मिलेगी जहां सिर्फ प्राइवेट ट्रांसपोर्ट को प्रोत्साहन दिया जाता है, जिस वजह से वायु प्रदूषण की दिक्कत हो रही है, सड़कें और ज्यादा असुरक्षित होती हैं। एक ऐसे सिस्टम की जरूरत है जहां पर वॉकिंग, साइक्लिंग और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिया जाए।

चीन ने कैसे प्रदूषण पर काबू पाया?

वैसे दिल्ली को सीखना तो अमेरिका और चीन से भी है क्योंकि वहां भी एक समय तक प्रदूषण की दिक्कत काफी ज्यादा थी। चीन ने इसी वजह से कोयले प्लांट के खिलाफ सख्ती दिखाई थी। जिन भी जगहों पर प्रदूषण ज्यादा पाया गया है, वहां पर भविष्य में कोई भी कोयले का प्लांट नहीं खोला जाएगा, अगर कोई है भी तो उसे नेचुरल गैस से बदला जाएगा। इसका परिणाम ये रहा कि साल 2018 में बीजिंग ने अपना आखिरी कोल प्लांट भी बंद कर दिया था। चीन का मॉडल ये भी बताता है कि सड़कों पर तय सीमा में ही गाड़ियां चलनी चाहिए। हर दिन कितनी गाड़ियां चलनी हैं, इसका फैसला कर लिया जाता है।