Delhi Assembly Polls 2020: दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव जिस प्रकार सूबे की सियासत की नर्सरी माने जाते हैं उसी प्रकार दिल्ली नगर निगम के चुनाव यहां की राजनीति की पहली पाठशाला हैं। दिल्ली के अधिकतर नेता ऐसे हैं, जो दिल्ली नगर निगम और छात्र संघ की राजनीति से निकलकर देश की राजनीति में छाए। निगम की पहली मेयर अरुणा आसफ अली, जनसंघ से जुड़े और निगम में मेयर रहे लाला हंसराज गुप्ता, राजेंद्र गुप्ता, महेंद्र सिंह साथी, दीपचंद बंधु, एचके एल भगत, सज्जन कुमार, जयप्रकाश अग्रवाल, केदारनाथ साहनी, शांति देसाई से लेकर अरुण जेतली, अजय माकन, सुभाष चोपड़ा विजय गोयल, विजय जौली और विजेंद्र गुप्ता तक ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिश्त है।

राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार का वर्चस्व कमोवेश सभी महत्त्वपूर्ण विषयों और विभागों में वर्षों से रहा है। इनमें पुलिस और शहरी विकास मंत्रालय के बाद कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा 144 तक लगाने के लिए केंद्र के नुमाइंदे दिल्ली के उपराज्यपाल अधिकृत हैं। पर राजधानी में सत्ता के तीन स्तरों केंद्र, राज्य और निगम में दिल्ली नगर निगम के पास एक जमाने में सबसे ज्यादा जनता से जुड़े मूलभूत अधिकार थे। बिजली, पानी, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सीवर, सड़कें और यहां तक कि दिल्ली अग्निशमन विभाग भी निगम के अधीन था।

पिछले दो दशक को छोड़ दें तो अधिकतर समय दिल्ली की सत्ता नगर निगम के ही इर्द गिर्द घूमती रही। एक जमाने में दिल्ली नगर निगम की हैसियत आज की दिल्ली सरकार से कहीं ज्यादा थी। कांग्रेस की शीला दीक्षित पहली बार 1998 में दिल्ली में सत्ता में आई और निगम का कद छोटा हो गया। 1967 से पहले दिल्ली को महानगर परिषद ही चलाता था। साल 1993 में पहली बार विधान सभा बनी। तब से धीरे-धीरे सभी अधिकार दिल्ली सरकार के अधीन होते चले गए। अब निगम के पास प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, गृह कर, टाल कर और पार्किंग जैसे विषय ही मुख्य तौर पर रह गए हैं।

वर्ष 2012 में शीला दीक्षित ने निगम को तीन क्षेत्रों में बांटने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी। इसका विरोध हुआ, लेकिन उनकी सिफारिश लागू कर दी गई। 272 सीटों के इस निगम में दक्षिणी और उत्तरी निगम को 104-104 और पूर्वी निगम को 64 सीटें दी गईं। निगम के मेयर और स्थाई समिति के अध्यक्ष पहले पांच-पांच साल के होते थे लेकिन 1987 में संविधान संशोधन के बाद निगम के मेयर और स्थाई समिति अध्यक्ष का पद भी एक साल का तय हो गया।
कांग्रेस के सांसद रहे और बाहरी दिल्ली के कद्दावर नेता सज्जन कुमार सीधे निगम पार्षद से साल 1980 में सांसद बने।

निगम में उपमेयर से सांसद बने जयप्रकाश अग्रवाल, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष से विधायक, सांसद और दिल्ली व केंद्र में मंत्री बने अजय माकन, 70 के दशक में छात्र संघ के अध्यक्ष रहे सुभाष चोपड़ा विधायक, विधानसभा अध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ निगम की राजनीति से विधायक बने। इस क्रम में दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे रामबाबू शर्मा का नाम भी गिना जाता है। विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे भाजपा के अरुण जेटली केंद्र में मंत्री बने।

भाजपा के ही छात्र संघ से निकलकर सांसद और केंद्र में मंत्री बने विजय गोयल, निगम पार्षद के बाद विधायक बने विजेंद्र गुप्ता, विधायक रहे विजय जौली सरीखे दर्जनों नाम इस क्रम में गिनाए जा सकते हैं।