दिल्ली और उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों की वजह से कांग्रेस के लिए बढ़ी मुसीबत अब तक कम नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश में तो श्रीरामजन्मभूमि-बाबरी ढांचा विवाद ने कांग्रेस की मुश्किलों को काफी हद तक बढ़ा दिया था। अयोध्या में 1949 से सीलबंद रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के ताले को 1 फरवरी, 1986 को स्थानीय प्रशासन के बाद खोले गए थे। प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सरकार इसके बाद बने हालातों से उबर नहीं पाई।

वीर बहादुर सिंह पर लगा था दंगाइयों से नरमी का आरोप

फैजाबाद जिला अदालत को तब के पीएम राजीव गांधी ने आश्वासन दिया था कि ताला खोलने से कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं होगी। इसके उलट इस फैसले से देश भर के लगभग तीन दर्जन कस्बों और शहरों में अशांति और सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। उस दौरान एक वर्ष की अवधि में लगभग 180 लोग मारे गए थे। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता वीर बहादुर सिंह थे। उन पर बार-बार हिंदू दंगाइयों के प्रति नरम होने का आरोप लगाया गया था। हालांकि उन्होंने इन आरोपों को बेतुका बताया था।

हाशिमपुरा- मलियाना नरसंहार के बाद कांग्रेस ने खोया जनाधार

इसके बाद 22-23 मई को यूपी प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) द्वारा हाशिमपुरा और मलियाना में नरसंहार के बाद अकेले मेरठ से लगभग 2,500 सहित राज्य भर में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था। हैरान प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने वीर बहादुर सिंह को नई दिल्ली बुलाया। कई अन्य घटनाक्रमों के बाद मुख्यमंत्री सिंह ने लगभग एक वर्ष के बाद आखिरकार अपना पद खो दिया। इसके बाद यूपी में कांग्रेस के लिए सत्ता की राह काफी मुश्किल हो गई।

मुख्यमंत्री से नाराज थे प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री

वीर बहादुर सिंह की सरकार में राज्य मंत्री रहे गाजीपुर के एक राजनेता सुरेंद्र सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “पीएसी के खिलाफ आरोप थे; हालाँकि, यूपी पुलिस ने दंगों से बहुत प्रभावी ढंग से निपटा। वर्ना, हिंसा और अधिक स्थानों पर फैल जाती। दंगों के कारण प्रधानमंत्री राजीव गांधी और गृह मंत्री बूटा सिंह तब मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से नाराज थे।

राजीव गांधी के लिए था काफी कठिन समय

राजीव गांधी के लिए वह कठिन समय था। कांग्रेस कई मोर्चों पर संकट से लड़ रही थी, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर के लिए तेजी से शक्तिशाली आंदोलन से निपटना और पार्टी के भीतर कई हस्तियों का आपसी टकराव शामिल था। जैसे-जैसे सरकार पर भ्रष्टाचार का दाग गहराता गया वीपी सिंह ने अप्रैल 1987 में राजीव के मंत्रिमंडल से और बाद में राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया। वह अगले वर्ष इलाहाबाद से लोकसभा उपचुनाव लड़े और कांग्रेस उम्मीदवार सुनील शास्त्री को हराकर संसद में प्रवेश करने में कामयाब रहे।

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ब्राह्मण और ठाकुर गुटों में बुरी तरह बंट गई थी यूपी कांग्रेस

यूपी में कांग्रेस ब्राह्मण और ठाकुर गुटों में बुरी तरह बंट गई थी। विधानसभा में लोक दल (बी) के मुलायम सिंह यादव और भाजपा के कल्याण सिंह जैसे नेताओं ने दंगों को लेकर वीर बहादुर सिंह की सरकार पर हमला किया। मेरठ समेत राज्य भर के 35 से ज्यादा जिले सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में थे। आखिरकार सितंबर 1985 में राजीव गांधी को कुमाऊं के एक ब्राह्मण नारायण दत्त तिवारी को गोरखपुर के एक ठाकुर वीर बहादुर सिंह के साथ कुर्सी बदलने के लिए मजबूर किया गया था। सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह कांग्रेस के बाद अब भाजपा के विधायक हैं। वह पहले राकांपा और बसपा में भी रह चुके हैं।)

वीर बहादुर सिंह से बढ़ी राजीव गांधी के नजदीकियों की दूरी

मुख्यमंत्री पर दबाव लगातार बढ़ता गया। राजीव गांधी के चचेरे भाई अरुण नेहरू जो शुरू में वीर बहादुर सिंह का समर्थन कर रहे थे वे भी मुख्यमंत्री के खिलाफ हो गए थे। मेरठ हिंसा से पहले इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुए दंगों ने वीर बहादुर सिंह और अमिताभ बच्चन के बीच दरार पैदा कर दी थी। अमिताभ बच्चन उस समय प्रधानमंत्री के करीबी दोस्त और इलाहाबाद से लोकसभा सांसद थे।