CAG ने बीते हफ्ते संसद में पेश की अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अप्रैल 2016 में राफेल फाइटर जेट की खरीद से पहले रक्षा खरीद नीति में बदलाव किया गया था। जिसके तहत उस साल जब भारत और फ्रांस के बीच 36 एयरक्राफ्ट की डील हुई तो डील में ऑफसैट पार्टनर घोषित करने की अनिवार्यता खत्म हो गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा खरीद में यह बदलाव साल 2015 में किया गया था और एक अप्रैल 2016 से यह लागू हो गया था।

रक्षा खरीद नीति में हुए इस बदलाव के तहत विदेशी वेंडर को कॉन्ट्रैक्ट साइन करते समय अपने ऑफसैट पार्टनर के बारे में बताना जरूरी नहीं है। राफेल डील पर कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऑफसैट दायित्वों को सितंबर 2019 से प्रभाव में आना था। डील की पहली वार्षिक प्रतिबद्धता इस महीने पूरी हो जानी चाहिए थी और रक्षा मंत्रालय के पास इसका विवरण होना चाहिए।

बता दें कि साल 2013 की रक्षा खरीद नीति कहती है कि टेक्नीकल ऑफसैट इवैल्युएशन कमेटी (TOEC) किसी भी रक्षा खरीद के टेक्नीकल ऑफसैट प्रस्ताव की छंटनी करेगी, ताकि ऑफसैट गाइडलाइंस का पालन सुनिश्चित हो सके। साथ ही विदेशी वेंडर को यह सलाह देगी कि वह भी ऑफसैट गाइडलाइंस का पालन करने के लिए अपने ऑफसैट प्रस्ताव में जरूरी बदलाव करे। पॉलिसी में कहा गया है कि TOEC को अपने गठन के 4-8 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी।

रक्षा खरीद नीति 2013 के तहत कमर्शियल ऑफसैट ऑफर में ऑफसैट कंपोनेंट की कीमत की विस्तृत जानकारी होगी। जिसमें भारतीय ऑफसैट पार्टनर और ऑफसैट क्रेडिट के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। इस नीति में 2015 में बदलाव कर दिया गया। लेकिन कमर्शियल इवैल्युएशन हिस्से में कोई बदलाव नहीं हुआ लेकिन इसके डिफेंस ऑफसैट गाइडलाइंस के पैरा 8.2 में संशोधन किया गया है।

संशोधन के तहत कहा गया है कि यदि वेंडर TOEC को उक्त जानकारियां उपलब्ध नहीं कराता है तो ऑफसैट क्रेडिट लेते समय डिफेंस ऑफसैट मैनेजमेंट विंग (DOFW) को यह जानकारी दी जा सकती है।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जब भारत सरकार ने 23 सितंबर 2016 को फ्रांस सरकार के साथ राफेल डील साइन की थी, तब दोनों देशों के बीच एक इंटर गवर्नमेंट एग्रीमेंट (IGA) भी साइन हुआ था। जिसमें मेक इन इंडिया इनीशिएटिव को बढ़ावा देने की भी बात हुई थी।

बता दें कि ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा उत्पादन इकाइयों को 300 करोड़ रुपये से अधिक के सभी अनुबंधों के लिए भारत में कुल अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत खर्च करना होता है। उन्हें ऐसा कलपुर्जों की खरीद, प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण या अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करके करना होता है।