‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी कार्रवाई को ‘स्थायी हल’ नहीं बताते हुए पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा है कि पाक के कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय सेना की कार्रवाई की सफलता की असली परीक्षा नियंत्रण रेखा पर शांति कायम होने और घुसपैठ में कमी आने या नहीं आने से होगी। उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत के लक्षित हमले (सर्जिकल स्ट्राइक) करने के बारे में बात करते हुए उन्होेंने कहा कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि इससे नीति में बड़े बदलाव का संकेत मिलता है और उन्होंने भारत की कार्रवाई को उसी तरह बताया जैसे घास को कुछ ऊंचाई  तक रखने के लिए नियमित अंतराल पर बार.. बार काटा जाता है। उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘मैं आश्वस्त नहीं हूं कि, कि यह कोई बड़ा नीतिगत बदलाव है।’’ मनमोहन सिंह सरकार में साल 2011 से 2014 तक एनएसए रहे मेनन ने कहा, ‘‘सबसे पहले तो सर्जिकल स्ट्राइक शब्द का इस्तेमाल सही नहीं है। इस मुहावरे को अमेरिका ने परमाणु संदर्भ में किया था। इसका बहुत खास मतलब है…परमाणु हथियारों की शत्रुआें से निपटना और उन हथियारों का उन्मूलन करना।

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मेनन ने कहा, ‘‘यह कुछ ठिकानों पर हमला था और बेशक उन्हें नुकसान पहुंचाना था। लेकिन यह ऐसा नुकसान नहीं है जिसकी वे भरपाई नहीं कर सकें, या उबर नहीं सकें। दूसरी बात यह कि आखिरकार खुद की भारतीय सरजमीं पर लक्ष्य और स्थान के चयन में बहुत ज्यादा संयम दिखाया गया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है, अंतर यह है कि इस सरकार ने लोगों के बीच जाने का विकल्प चुना। यह काम करता है या नहीं, असली परीक्षा तो नियंत्रण रेखा पर स्थिति के शांत होने या ना होने, घुसपैठ में कमी आने के सवाल की होगी। ’’ उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि हर सरकार ने इन चीजों से निपटने के लिए खुद का अपना रास्ता चुना है। ‘‘मैं खुद यह मानता हूं, जिसे इस्राइली घास काटने जैसा बताते हैं। कुछ ऐसी चीज जिसे आपको करते रहने की जरूरत है लेकिन घास बढ़ती रहेगी। और यह स्थायी हल नहीं है। सैन्य बल नहीं, कूटनीति नहीं, बल्कि दोनों का मिलाजुला रूप घास काटेगा।’’

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मेनन ने इस बात पर जोर दिया कि एक रणनीतिक दृष्टिकोण से पिछले 30 बरसों में पाकिस्तान ने सीमा पार किए जाने वाले आतंकवाद को बदतर बना दिया है। उन्होंने कहा कि यह भारत के लिए एक अस्तित्व संबंधी खतरा नहीं है। यह कुछ ऐसी चीज है जिससे निपटा जा सकता है इससे निपटे जाने, सैन्य, कूटनीतिक और अन्य प्रतिक्रियाआें सहित जवाब दिए जाने की जरूरत है। साथ ही पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग थलग करने के लिए एक नीति का भी पालन किया जा सकता है जैसा कि इसने किया है। असल में यह मौजूद नीति की निरंतरता है। लेकिन एक कदम और उठाए जाने की जरूरत है। उन्हें आशा है कि यह काम करेगा। उनकी पुस्तक ‘च्वाइसेज : इनसाइड द मेकिंग आॅफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी’ का पिछले हफ्ते ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट में विमोचन हुआ।

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मेनन ने इसमें लिखा है कि मुंबई आतंकी हमलों के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी और उन्होंने बतौर विदेश सचिव पाकिस्तान और पाक के कब्जे वाले कश्मीर के अंदर फौरन जवाबी कार्रवाई के लिए काफी जोर दिया था जो नहीं हुआ। इस पुस्तक में मेनन ने लिखा है कि यदि भारत मुंबई हमले जैसी स्थिति का भविष्य में सामना करता है तो, ‘‘मैं आश्वस्त हूं कि यह अलग तरीके से जवाब देगा।’’ यह पुस्तक पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक से काफी पहले छप चुकी थी। हालांकि, मेनन ने अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र नहीं किया कि क्यों इस तरह का जवाबी हमला मुंबई हमले के बाद नहीं किया गया, पर उन्होंने कुछ संकेत दिए हैं। उन्होंने पुस्तक में लिखा है, ‘व्यक्तित्व मायने रखता है।’’ उन्होंने कहा कि अलग तरह के लोग रहने पर यह संभव होता कि भारत ने कुछ अलग विकल्प चुना होता। इस पुस्तक में पूरा एक अध्याय मुंबई आतंकी हमलों पर है। यह अगले हफ्ते वैश्विक स्तर पर दुकानों में उपलब्ध हो जाएगा।