राजनीतिक दलों की ओर से जारी किए जाने वाले चुनावी घोषणापत्रों के बाध्यकारी बनाने पर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने मंगलवार को कहा कि चुनावी घोषणापत्र को पार्टियों के लिए बाध्यकारी बनाने के विषय पर सभी राजनीतिक दलों को गंभीरता से विचार करना चाहिए। साथ ही उन्हें देश हित में एक सहमति बनानी चाहिए।

राजनीतिक दलों को चुनावी वादों के प्रति जवाबदेह बनाने और घोषणापत्र को विनियमित करने का मामला समय-समय पर अदालतों के पास भी गया है। हाल में ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्र चुनाव के दौरान उनकी नीति, दृष्टिकोण, वादों और प्रतिज्ञा का बयान है, जो बाध्यकारी नहीं है और इसे अदालतों के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता है।

हालांकि चुनाव आयोग ने इसका पालन कराने की कोशिश की है। अन्ना द्रमुक की ओर से तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2016 के लिए जारी घोषणापत्र में किए गए चुनावी वादों को पूरा करने के लिए तर्कपूर्ण वित्तीय प्रबंध और साधन नहीं बता पाने पर इसे सेंसर कर दिया था। इतना ही नहीं कार्मिक, जन शिकायत, कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि आदर्श आचार संहिता को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाए।

इसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का हिस्सा बनाया जाए। ऐसे उपायों से चुनाव आयोग की शक्तियां बढ़ेंगी और राजनीतिक दलों में चुनावी घोषणापत्र में खोखले वादे न करने का डर पैदा होगा। दो दशक से लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्र में संसद और विधान सभाओं में महिला आरक्षण देने का वादा प्रमुखता से होता है। लेकिन सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता रहा है।

नायडू ने यह सुझाव राज्यसभा में उस समय दिया जब राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा ने शून्यकाल में चुनावी घोषणापत्रों की खत्म होती प्रासंगिकता का विषय उठाया। उन्होंने कहा कि घोषणापत्रों को लेकर राजनीतिक दलों में जो गंभीरता होनी चाहिए, उसमें लगातार गिरावट हो रही है। झा ने कहा कि 1952, 1957 और 1962 के दौर के चुनावों में जनसंघ हो या कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी हों या फिर सोशलिस्ट पार्टी हों, जो संभव होने वाली बातें होती थीं, उन्हें ही अपने घोषणापत्रों में शामिल करते थे और उस पर चर्चा होती थी। झा ने कहा कि मैं सभी पक्षों से और सरकार से भी आग्रह करता हूं कि एक बार सामूहिक रूप से बैठकर एक पद्धति विकसित की जाए ताकि चुनाव के केंद्रीय विमर्श में सकारात्मक एजंडा आए। न कि ऐसी चीजें जिनसे नफरत की दीवारें खड़ी होती हैं।

नायडू ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कुछ सदस्यों से उनके सुझाव भी मांगे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा से भी चुनावी घोषणापत्र को कानूनी तौर पर बाध्य बनाने की संभाव्यता पर राय मांगी। इसके जवाब में देवेगौड़ा ने कहा कि उनके लिहाज से इस मुद्दे पर गंभीरता से चिंतन होना चाहिए। इसी दौरान किसी सदस्य ने नायडू से कहा कि वे सरकार से इस बारे में राय पूछें।

इस पर नायडू ने उस सदस्य से कहा कि क्या यदि सरकार तैयार हो जाती है तो आप भी तैयार होंगे? नायडू ने कहा कि राजनीतिक दलों को बैठक कर इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए और फिर देश हित में आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यहां जो मुद्दा उठाया गया है, वह वास्तविक मुद्दा है और महत्त्वपूर्ण भी है।