राजनैतिक स्वार्थों की वजह से कोई कितना भी उन पर कीचड़ उछाले लेकिन सच यही है कि आज जिस भारत को हम देख रहे हैं, उसकी नींव पं. जवाहर लाल नेहरू ने ही रखी थी। देश आज उनकी 57वीं पुण्यतिथि मना रहा है। ये आईआईटियां, इसरो, एटमिक एनर्जी कमीशन, डीआरडीओ, पंचवर्षीय योजनाएं और मिश्रित अर्थव्यव्स्था सब नेहरू की ही देन हैं।
1947 में जब अंग्रेज देश छोड़कर गए थे, भारत की अर्थव्यवस्था मात्र 2.7 लाख करोड़ थी। उद्योग धंधे थे नहीं, वैज्ञानिक चेतना का अभाव था और खेती भी हजारों साल पुरानी तकनीक से चल रही थी। तिस, पर दूसरे महायुद्ध से हाल ही में उबरी दुनिया बड़ी तेजी से दो खानों में बंटती जा रही थी। दो विश्वयुद्ध के परिणाम उन्होंने अपनी आंखों देखा था और देखी थी मानवता की पीड़ा भी। उनके लिए यह समझना कठिन नहीं था कि विश्व शांति के अभाव में मनुष्य की पीड़ा का कोई समाधान नहीं है। 28 अगस्त 1954 को राष्ट्रसंघ को संबोधित करते उन्होंने कहा था कि शांति के बिना सभी स्वप्न बेमानी हैं , राख में तब्दील हो जाते हैं ।आजादी के बाद पंचवर्षीय योजना , योजना आयोग , भाखड़ा – नांगल जैसी बहुउद्देश्यीय योजना , पब्लिक सेक्टर , भारी औद्योगिक इकाइयों, आधुनिक शिक्षा ,स्वास्थ्य, अभियांत्रिकी और वैज्ञानिक अनुसंधान के संस्थानों की स्थापना उनके इसी स्वप्न को साकार करने के प्रयास थे। इसी तरह विश्व शांति का उनका सपना भी इतिहास के आंचल में ही पला था।
नेहरू क्या थे यह बात पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के इस भाषण से समझी जा सकती है जो उन्होंने पंडितजी के निधन के बाद दिया थाः एक सपना अधूरा रह गया, एक गीत मौन हो गया और एक लौ बुझ गई। दुनिया को भूख और भय से मुक्त करने का सपना, गुलाब की खुशबू, गीता के ज्ञान से भरा गीत और रास्ता दिखाने वाली लौ। कुछ भी नहीं रहा…यह एक परिवार,समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है। भारत माता शोक में है क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया। मानवता शोक में है क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया। दुनिया के मंच का मुख्य कलाकार अपना आखिरी एक्ट पूरा करके चला गया। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता।”
भारत भले ही कुछ दिन पहले ही स्वतंत्र हुआ था, नेहरू जी की कोशिश थी कि विश्व रंगमंच में उसका महत्व कायम हो। उस वक्त शीत युद्ध शुरू हो चुका था। दुनिया अमेरिकी और सोवियत खेमों में बंट चुकी थी। नेहरू ने देखा कि ऐसे तो हाल ही आजादी पाने वाले देश बर्बाद हो जाएंगे क्योंकि उनको एक न एक महाशक्ति के हाथों खेलना होगा। यही कारण था जिसने गुट निरपेक्ष आंदोलन को जन्म दिया। नेहरू इस आंदोलन के जनक थे, जिससे मार्शल टीटो और नासिर जैसे तत्कालीन दिग्गज भी जुड़ गए थे।
नेहरू की विश्व राजनीति में हमेशा से रुचि थी। उन्होंने जर्मन नाजीवाद और इतालवी फासीवाद का विरोध किया था। तभी तो उनको बेल्जियम सरीखे देश बुलाते रहते थे। उनकी बातों की कद्र थी। निर्गुट आंदोलन ही नहीं। भारतीय विदेश नीति का सारतत्व पंचशील भी नेहरू की देन हैं। ये नीति निर्देशक तत्व चीन के साथ समझौते में बने थे।
हालांकि समझौते के बाद चीन ने धोखा दिया था, लेकिन भारत आज भी इनका पालन कर रहा है। ये सिद्धांत थेः
* एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
* एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना
*एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना
* समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना तथा
* शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
बौद्ध धर्म के सिद्धांतो से लिए गए ये तत्व आज भी हमारी विदेश नीति को गाइड करते हैं।