कन्नूर में पार्टी कांग्रेस की बैठक में सीताराम येचुरी को लगातार तीसरी बार पार्टी का महासचिव बनाने के साथ सीपीएम ने पहली बार पोलित ब्यूरो में किसी दलित नेता को शामिल करने का फैसला किया है। सीपीएम ने यह फैसला तब लिया है जब पार्टी की सबसे बड़ी निर्णय लेने वाली बॉडी में किसी दलित के शामिल न होने को लेकर उसे आलोचना झेलनी पड़ रही थी। सीपीएम शुरू से जातिगत राजनीति से अगल रही है लेकिन हाल के सालों में पार्टी ने माना है भारतीय परिपेक्ष में रणनीति ठीक नहीं है।

2015 में पार्टी की रणनीति को बदलते हुए बाबासाहेब अंबेडकर के 125 वे जन्मदिन पर सीपीएम के तत्कालीन महासचिव प्रकाश करात ने पार्टी संसद  एक विशेष सत्र बुलाया था जिसमें दलितों को पार्टी के शीर्ष पदों पर जगह देने पर चर्चा की गयी थी।

उसी साल सीताराम येचुरी पार्टी के नए महासचिव बनने के बाद “लाल सलाम, जय भीम” का नारा लगाया, जिसके सात साल बाद पार्टी के उच्च पद पर किसी दलित को जगह दी गयी है। नियुक्ति में देरी का एक कारण यह भी है कि अन्य पार्टियों की तरह सीपीएम के पोलित ब्यूरो में नियुक्ति सीधे नहीं होती है बल्कि पार्टी पोलित ब्यूरो जाने के लिए पार्टी के किसी व्यक्ति को सेंट्रल कमिटी का सदस्य होना जरुरी है जिसे पार्टी कांग्रेस की ओर से नियुक्त किया जाता है।

रामचंद्र डोम ने नियुक्ति के बाद कहा, “एक कम्युनिस्ट होने नाते मैं अपने आप को दलित नहीं मानता हूं, जो भी पार्टी मुझे जिम्मेदारी देगी, मैं उसके मुताबिक कार्य करूंगा”

सीपीएम के सदस्यों की संख्या में आई गिरावट: बंगाल में पिछले चार सालों के दौरान सीपीएम के सदस्यों की संख्या 10,07,903 से घटकर 9,85,757 रह गयी है इस दौरान सीपीएम से करीब 32 हजार सदस्यों ने इस्तीफा दिया है।

कौन है रामचंद्र डोम?:रामचंद्र डोम पेशे से डॉक्टर है, इससे पहले वे सीपीएम की केंद्रीय समिति के सदस्य रह चुके हैं। 1989 से 2014 तक लगातार पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले से 6 बार लगातार सांसद चुने गए थे।