लॉकडाउन के कारण देश को लॉकडाउन कर दिया गया है जिसके चलते प्रवासी मजदूरों के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है और वे बड़ी संख्या में अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। इतिहासकार और अर्थशास्त्री रामचंद्र गुहा ने इसे देश बंटवारे के बाद ये दूसरी सबसे बड़ी त्रासदी बताया है। गुहा ने कहा कि जो अभी मजदूरों की हालत है यह विभाजन के बाद की सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी है।

उन्होंने कहा कि इसके देश के बाकी हिस्सों में भी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिणाम होंगे। गुहा ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले प्रवासी मजदूरों को घर जाने के लिए कम से कम एक हफ्ते का समय देते तो इस त्रासदी से बचा जा सकता था। पीटीआई से बात करते हुए गुहा ने कहा, “यह शायद विभाजन जितना बुरा नहीं है, क्योंकि उस समय पलायन के साथ-साथ भयावह सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। लेकिन यह भारत में विभाजन के बाद की सबसे बड़ी मानव त्रासदी है।”

कोरोना के प्रकोप से देश को बचाने के लिए 24 मार्च की शाम को एक टेलिविज़न संबोधन में प्रधान मंत्री मोदी ने आधी रात से 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की थी। इसके तहत ट्रेन सेवाओं, सड़क परिवहन और हवाई यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद से लॉकडाउन को तीन बार बढ़ाया जा चुका है। लेकिन अप्रैल के अंत से कुछ छूट दी गई है और यह 31 मई तक चलेगा।

‘रिडीमिंग द रिपब्लिक’ और ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ जैसी पुस्तकों के लेखक गुहा ने कहा “मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि प्रधान मंत्री ने किस तरह से इतना बड़ा फैसला लिया। क्या उन्होंने जानकार अधिकारियों के साथ परामर्श किया, या अपने कैबिनेट मंत्रियों से इनपुट्स लिए? या या उन्होंने खुद ही ऐसा किया?’

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री अगर जानकारों और विपक्ष से सुझाव लें तो कुछ हद तक स्थिति को संभाला जा सकता है। गुहा ने कहा, ‘लेकिन मुझे आशंका है कि वह ऐसा नहीं करेंगे।’ यह संकट केंद्र सरकार ने पैदा किया है उनके कैबिनेट साथी इसका ठीकरा राज्यों पर फोड़ने में लगे हैं।

बता दें देश में कोरोना का प्रकोप थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक पिछले 24 घंटे में अबतक के सबसे ज्यादा 6794 नए मामले सामने आए हैं। वहीं 137 लोगों की मौत हो गई है। इसी के साथ देश में संक्रमितों का आंकड़ा 1.25 लाख के पार हो गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि देश के 5 राज्यों में ही कोरोना के 73 फीसदी केस हैं, जबकि इनमें ही देशभर के 75% पीड़ितों की जान भी गई है।