धीमे होते कोरोना के बीच जब जनवरी के मध्य में टीकाकरण की शुरुआत करते हुए जब भारत मस्त लापरवाही के मूड में आकर कोविड-19 को हराने जैसी ऊंची-ऊंची फेंक रहा था, कोरोना अपनी अगली लहर के नया रूप धरकर हमले के लिए तैयार हो रहा था। दूसरी लहर ज़रूर आएगी। यह बात भले ही मास्क उतार चुका आम आदमी न जानता हो, मगर विशेषज्ञ जानते थे। अपनी विशेष पढ़ाई के नाते शायद मंत्रिमंडल का एक सदस्य भी जानता हो।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नॉलजी के पूर्व निदेशक वीरेंदर सिंह चौहान का कहते हैं, “सौभाग्य से हम लोगों को नवंबर और जनवरी के बीच एक अवसर मिला था जब पूरे भारत में कोरोना का ग्राफ नीचे जा रहा था।” लेकिन, दुर्भाग्य से इस मोहलत को हमने कुछ करने की बजाए देशवासियों में सुरक्षा की झूठी भावना भरने में कर डाला। सबको लगा कि वाइरस जादुई तरीके से विलुप्त हो गया है। वाइरस, दरअसल हमारे बीच ही मौजूद था। हम इस वक्फे में काफी काम कर सकते थे लेकिन हमने सब गड़बड़ कर दी।
कोरोना संक्रमण का ग्राफ और मृत्यु दर गिर रही थी… युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा संक्रमित तो था पर रोग के लक्षण नहीं थे… और, लॉकडाउन जैसे अंकुशों को तोड़ने की आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकता भी थी। इन सब बातों के मद्देनजर, कोरोना को तो पलट कर आना ही थी। कोरोना इशारे कर भी रहा था। हमने उसे रोकने के लिए नीतिगत कदम उठाने की बजाए आंख ही मूंद ली।
रोग की मौजूदगी का मजबूत संकेत होता है सीरो-सर्वे
सीरो-सर्वे यानी समाज में वाइरस की मौजूदगी पता करने के लिए लोगों के खून की सामूहिक जांच। इसके तहत देखा जाता है कि व्यक्ति हाल के दिनों में रोग से पीड़ित हो चुका है या नहीं। यह पड़ताल रोग का भूगोल, रोगियों के लिंग और उम्र के बारे में पता करने में मदद करती है। यह भी ज्ञात होता है कि टेस्टिंग किस स्तर तक बढ़ानी है।इंडियन एक्सप्रेस ने इस बाबत केंद्र और राज्यों में कई अधिकारियों और विशेषज्ञों से बातचीत की। बातचीत में पता लगा कि राज्य-दर-राज्य हुए सीरो-सर्वे में यह बात उभर कर सामने आई कि कोविड की दूसरी लहर आने वाली है।
जनवरी में जब पूरे देश में संक्रमण की दर घट रही थी, केरल में कोविड उभार पर था। उस वक्त देश के कुल संक्रमण में आधा हिस्सा केरल का ही था। फरवरी के मध्य तक केरल में कोविड के पुष्ट मामलों की संख्या दस लाख पार कर चुकी थी। सिर्फ महाराष्ट्र ही इस संख्या से ऊपर था। केरल में कोरोना का यह ट्रेंड तब समझ में आया जब वहां 14 जिलों में सीरो-सर्वे कराया गया। सर्वे ने बताया कि राज्य के सिर्फ दस प्रतिशत लोग संक्रमित हुए हैं। मतलब, ज्यादातर आबादी रोगग्रसित होने के प्रति संवेदनशील है।सर्वे से यह संकेत भी मिला कि केरल में संक्रमित होने वालों की संख्या इतनी ज्यादा क्यों है। केरल में दरअसल हर चार में एक संक्रमित व्यक्ति का टेस्ट हुआ था, जबकि राष्ट्रीय टेस्टिंग औसत प्रत्येक 30 में एक संक्रमित का था।
इन सर्वे में एक और बात यह निकली कि संक्रमण का खतरा सत्तर साल से ऊपर के लोगों के लिए कम है। ऐसे में उलटा क्वारंटाइन कारगर होगा। मतलब, उन लोगों को क्वारंटाइन किया जाए जिनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा हो। कई राज्यों ने केरल जैसा महीन सर्वे नहीं किया। राष्ट्रीय स्तर पर आइसीएमआर ने तीन सीरो-सर्वे कराए हैं। इनमें आखिरी दिसंबर में हुआ था। कम से कम दस राज्यों और दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद और चेन्नई जैसे शहरों ने भी सर्वे कराए हैं। लेकिन नियमित अंतराल में सर्वे कुछ ने ही कराए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में दस मार्च तक हुए 37 सीरो-सर्वे को सूचीबद्ध किया है। इनमें तीन राष्ट्रीय, 14 क्षेत्रीय/नगर स्तरीय और बीस ऐसे सर्वे शामिल हैं जो स्थानीय स्तर पर कराए गए थे। लेकिन इस सूची में छत्तीसगढ़, बिहार और पंजाब के नाम शामिल नहीं हैं। इन राज्यों में इस वक्त कोरोना उभार पर है।
सीरो-सर्वे ऐसा काम नहीं है कि एक बार कर लिया और हमेशा के लिए छुट्टी हो गई। चूंकि वाइरस अपना रूप बदलते रहते हैं, इसलिए विभिन्न समूहों के बीच लगातार मानीटरिंग जरूरी है। यही काम अमूमन नहीं हुआ। इससे भी अहम बात सर्वे से प्राप्त डाटा की व्याख्या करना है। उदाहरण के लिए दिसंबर के सीरो-सर्वे को लें। इसके नतीजे फरवरी में आए थे। आंकड़े बता रहे थे कि उस समय तक देश में मुश्किल से बीस प्रतिशत लोग संक्रमित हुए थे। यह खतरे का लाल झंडा था। इसका अर्थ था कि कोरोना की नई लहर आने की संभावना है। लेकिन कब? यह बताना संभव नहीं था। लेकिन हुआ यह कि बजाए इस राष्ट्रीय सर्वे के, सारा ध्यान दिल्ली, मुंबई और पुणे के स्थानीय सर्वे पर रहा। इन जगहों पर पॉजिटिव लोगों का औसत 50 के अल्ले-पल्ले था। सो, कहा गया कि इन शहरों में संक्रमण दर घट गई है क्योंकि आधी आबादी पॉज़िटिव निकल रही है। यह तो वही बात हुई कि हमें जो अच्छा लग रहा है वही। बड़े शहरों के आंकड़ों से लगा कि कोरोना हार गया था। हमें यह भी नहीं याद रहा कि ये छोटे स्तर के सर्वे थे।