Shahbad Dairy Police Station: दिल्ली की एक कोर्ट कथित हिरासत में यातना के एक मामले में शाहबाद डेयरी पुलिस थाने के अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने याचिका खारिज करने वाले मजिस्ट्रेट के पूर्व के आदेश को खारिज कर दिया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एडिशनल सेशन जज जगमोहन सिंह ने 21 मई के आदेश में कहा कि मजिस्ट्रेट के फैसले को पलटने की जरूरत है,क्योंकि इस मामले में सीसीटीवी फुटेज और कॉल डिटेल रिकॉर्ड सहित महत्वपूर्ण साक्ष्यों का विश्लेषण शामिल है, जिनकी जांच केवल सरकारी फोरेंसिक लैब द्वारा ही की जा सकती है, जो शिकायतकर्ता और पीड़ित की पहुंच से बाहर है।
कोर्ट ने कहा, ‘मौजूदा मामले में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज़्यादा है।’ अदालत ने कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई दो जांचों से पीड़ित नवीन को पुलिस हिरासत में यातना दिए जाने के आरोपों से इनकार नहीं किया जा सकता।
अदालत मीनाक्षी नामक महिला द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पहले मजिस्ट्रेट से संपर्क कर अपने पति नवीन उर्फ मोनू को हिरासत में प्रताड़ित करने के आरोप में कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। अगस्त 2019 में उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
मीनाक्षी ने अपनी याचिका में चौकी प्रभारी पुनीत ग्रेवाल, जांच अधिकारी प्रवीण कुमार, हेड कांस्टेबल कृष्ण, कुछ अज्ञात पुलिसकर्मियों और महर्षि वाल्मीकि अस्पताल के डॉ. एसएन सिद्धार्थ का नाम लिया था।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता और पीड़ित आम नागरिक थे, जबकि आरोपी पुलिस अधिकारी थे। आरोपों के अनुसार, पीड़ित नवीन को जबरन वसूली करने के लिए आरोपी पुलिस अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किया गया था। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, कथित अपराधों में आरोपी अधिकारियों की सटीक भूमिका निर्धारित करने के लिए गहन जांच आवश्यक है।
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सुप्रीम कोर्ट के 1997 के एक फैसले का हवाला देते हुए, जिसमें हिरासत में यातना को “मानव गरिमा और अपमान का खुला उल्लंघन” बताया गया था। कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस अधिकारियों का कथित आचरण सिद्ध हो जाता है, तो यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है और गंभीर चिंता का विषय है।
पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने संबंधित एसएचओ को एक सप्ताह के भीतर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, इस आदेश की एक प्रति संबंधित पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को भी भेजी जानी है, जो मामले की समयबद्ध तरीके से जांच करने के लिए एसीपी से नीचे के रैंक के किसी अधिकारी को नियुक्त करने पर विचार कर सकते हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के चीफ सेक्रेटरी को फटकार लगाई है। पढ़ें…पूरी खबर।