देश के सत्ताईस फीसद स्कूली विद्यार्थी निजी कोचिंग का सहारा लेते हैं और यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक आम है। केंद्र द्वारा शिक्षा पर कराए गए व्यापक वार्षिक माड्यूलर सर्वेक्षण (सीएमएस) में यह खुलासा हुआ है। सर्वेक्षण के मुताबिक सरकारी स्कूल पूरे भारत में शिक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण अहम भूमिका निभाते हैं और अब भी विद्यालयों में नामांकित कुल विद्यार्थियों में 55.9 फीसद हिस्सेदारी सरकारी विद्यालयों की है।

सर्वेक्षण रपट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर अधिक है, जहां दो-तिहाई (66 फीसद) विद्यार्थी सरकारी विद्यालयों में नामांकित हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर 30.1 फीसद है। निजी गैर-सहायता प्राप्त (मान्यता प्राप्त) विद्यालयों में देशभर में 31.9 फीसद विद्यार्थी नामांकित हैं।

गावों के अपेक्षा शहर में पढ़ाई का ज्यादा खर्च

सीएमएस शिक्षा सर्वेक्षण राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के 80वें दौर का हिस्सा है जो विशेष रूप से स्कूली शिक्षा में वर्तमान में नामांकित विद्यार्थियों के घरेलू खर्च पर केंद्रित था। इसके लिए देश में 52,085 परिवारों और 57,742 विद्यार्थियों से आंकड़े एकत्रित किए गए। रपट के मुताबिक 27 फीसद चालू शैक्षणिक वर्ष के दौरान निजी कोचिंग ले रहे थे या ले चुके थे। यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों (25.5 फीसद) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (30.7 फीसद) में अधिक आम थी। इसके अनुसार शहरी क्षेत्रों में प्रति विद्यार्थी निजी कोचिंग पर औसत वार्षिक घरेलू व्यय (3,988 रुपए) है जो ग्रामीण क्षेत्रों (1,793 रुपए) की तुलना में अधिक है।

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रपट में कहा गया कि यह अंतर उच्च कक्षाओं के साथ बढ़ता जाता है। शहरी क्षेत्र में उच्चतर माध्यमिक स्तर पर निजी कोचिंग पर औसतन 9,950 रुपए खर्च किए जाते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह औसतन 4,548 रुपए है। राष्ट्रीय स्तर पर कक्षाओं के साथ कोचिंग का खर्च भी बढ़ता है और पूर्व प्राथमिक में जहां औसतन 525 रुपए खर्च होते हैं, वह उच्चतम माध्यमिक कक्षाओं में बढ़कर 6,384 हो जाते हैं। रपट के मुताबिक देश में स्कूली शिक्षा पर खर्च करने वाले विद्यार्थियों में से 95 फीसद ने बताया कि उनके वित्तपोषण का पहला प्रमुख स्रोत परिवार के अन्य सदस्य हैं। यह प्रवृत्ति ग्रामीण (95.3 फीसद) और शहरी (94.4 फीसद) दोनों क्षेत्रों में समान रूप से देखी गई।

शहरी-ग्रामीण खर्चे को लेकर जारी रिपोर्ट

वहीं, 1.2 फीसद विद्यार्थियों ने बताया कि सरकारी छात्रवृत्तियां उनकी स्कूली शिक्षा के लिए वित्तपोषण का पहला प्रमुख स्रोत है। एनएसएस की ओर से पिछला व्यापक शिक्षा सर्वेक्षण 75वां दौर (जुलाई 2017-जून 2018) में किया गया था। अधिकारियों ने हालांकि, स्पष्ट किया कि इसके निष्कर्षों की तुलना वर्तमान सर्वेक्षण के निष्कर्षों से सीधे तौर पर नहीं की जा सकती।

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शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनएसएस के 75वें दौर में आंगनबाड़ी केंद्रों को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं किया गया था और स्कूली शिक्षा पर व्यय में निजी कोचिंग भी शामिल थी। हालांकि, इस सर्वेक्षण में आंगनबाड़ियों को पूर्व-प्राथमिक श्रेणी में वर्गीकृत किया और स्कूली शिक्षा और निजी कोचिंग पर खर्च के आंकड़ों को अलग से एकत्र और प्रस्तुत किया गया। सर्वेक्षण के मुताबिक सभी प्रकार के विद्यालयों में, चालू शैक्षणिक वर्ष के दौरान प्रति विद्यार्थी सबसे अधिक औसत व्यय पाठ्यक्रम शुल्क (7,111 रुपए) पर हुआ, जिसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर पाठ्यपुस्तकों और कापी-कलम आदि पर (2,002 रुपए) खर्च हुआ। रपट के मुताबिक शहरी परिवार सभी श्रेणियों में काफी ज्यादा खर्च कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि शहरी क्षेत्रों में पाठ्यक्रम शुल्क पर औसत व्यय 15,143 रुपए अनुमानित था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 3,979 रुपए अनुमानित था। शहरी क्षेत्रों में उच्च व्यय का यह रुझान परिवहन, वर्दी और पाठ्यपुस्तकों जैसे अन्य प्रकार के शिक्षा-संबंधी खर्चों पर दिखता है।