कर्नाटक हाईकोर्ट ने मैसूर चंदन साबुन घोटाले में रिश्वत देने वालों की तरफ से दायर दो याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा है कि अब समय आ गया है कि रिश्वत लेने वालों की तरह रिश्वत देने वाले को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाए। तभी भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने 26 जून के अपने फैसले में एमएस कर्नाटक अरोमास कंपनी के मालिकों कैलाश एस राज, विनय एस राज और चेतन मारलेचा और अल्बर्ट निकोलस व गंगाधर की याचिकाओं को खारिज कर दिया। मुख्य लेखा नियंत्रक प्रशांत कुमार एमवी के कार्यालय में इन सभी के पास 45-45 लाख रुपये मिले थे। प्रशांत भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन विधायक और मैसूर चंदन साबुन के निर्माता कर्नाटक साबुन एवं डिटर्जेंट लिमिटेड के अध्यक्ष मदल विरुपक्षप्पा के बेटे हैं।
बीजेपी विधायक के बेटे के दफ्तर से बरामद हुए थे लाखों रुपये
विरुपक्षप्पा के खिलाफ शिकायत के बाद लोकायुक्त पुलिस ने उनके बेटे प्रशांत के दफ्तर पर छापा मारा। अल्बर्ट निकोलस और गंगाधर को प्रशांत के कार्यालय में नकदी ले जाते हुए पाया गया। इस मामले में दर्ज एक शिकायत में इन दोनों के साथ-साथ कर्नाटक अरोमास कंपनी के तीन मालिकों को आरोपी बनाया गया है। यह वह मामला है जिसे उन पांचों ने दो अलग-अलग याचिकाओं में चुनौती दी थी। माना जा रहा है कि जब्त की गई रकम रिश्वत थी जो विरुपक्षप्पा को उनके बेटे प्रशांत के जरिए दी गई थी।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान मामला रद करने की उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब कानून आपको भ्रष्ट लोगों से नहीं, बल्कि भ्रष्ट लोगों को आपसे बचाता है तो जान जाइए कि देश बर्बाद हो गया है। अदालत ने कहा कि यह पता लगाने के लिए जांच जरूरी है कि दोनों नकदी क्यों ले जा रहे थे। अदालत ने कहा कि सवाल ये है कि आरोपी नंबर एक लोक सेवक है, उसके निजी कार्यालय में आरोपी क्यों बैठे थे। आखिर वो बैग में 45-45 लाख रुपये की नकदी लेकर आरोपी नंबर एक का इंतजार क्यों कर रहे थे। कोर्ट ने माना कि यह जांच का विषय है।