बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच द्वारा भ्राष्टाचार के एक मामले पर फैसले के दौरान दो जज आमने-सामने आ गए। हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने मामले की सुनवाई एक साथ पूरी की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। लेकिन, एक जज का कहना है कि उनके दूसरे सीनियर सदस्य ने बिना उनका विचार शामिल किए मामले में फैसला दे दिया। इसके बाद निराश जज ने फैसले पर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी।
3 अक्टूबर को दिए विवादास्पद फैसले पर बांबे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के जस्टिस केके सोनवणे ने कहा, “मुझे बेंच के वरिष्ठ सदस्य (श्री टीवी नलवाडे) द्वारा लिखित फैसले को पढ़ने का मौका नहीं मिला और ना हीं उसका मसौदा ही मुझे भेजा गया।” उन्होंने इस मामले को फैसले सुनाए जाने से पहले खंडपीठ के न्यायधीशों के बीच समन्वय की कमी, परामर्श की कमी और चर्चा में कमी का बेहतर उदाहरण बताया।
गौरतलब है कि यह तब हुआ जब जस्टिस नलवाडे और सोनवणे की बेंच ने एक सड़क के मरम्मत कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग करने वाली दलीलों को सुरक्षित रख लिया था। दोनों न्यायाधीश पुलिस जांच जारी रखने के सवाल पर सहमत थे, लेकिन कुछ पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के खिलाफ आरोपों के दृष्टिकोण में अंतर था। जस्टिस सोनवणे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला लिखने और उसकी घोषणा के तरीके के बारे में चर्चा करते हुए कहा था कि “सुनवाई संपन्न होने के बाद यदि निर्णय सुरक्षित है या निर्णय के लिए मामला बंद है, तो फैसले पर हस्ताक्षर या कोर्ट रूम में घोषणा से पहले इसे जजों के बीच लाना चाहिए और उनके राय बदलने, दृष्टिकोण में संसोधन संबंधी विचारों पर चर्चा किया जाना चाहिए।”
उन्होंने बेंच के समक्ष भ्रष्टाचार के मामले में लिखा है, “दुर्भाग्य से…अस्थायी निष्कर्ष के लिए मामले में किसी तरह विचार-विमर्श और चर्चा का कोई मौका नहीं था।” जस्टिस सोनवणे ने कहा, “खुली अदालत में फैसला सुनाए जाने के समय मैंने आपत्ति जताई थी कि कैसे याचिकाओं को अनुमति दी गई? उस समय मुझे सलाह दी गई थी कि उनके द्वारा दिए गए फैसले के तर्क वाले हिस्से का अवलोकन करूं। उन्होंने कहा “निर्णय इतनी जल्दबाजी में सुनाया गया कि मैं उस समय अपना असंतोष अथवा राय व्यक्त करने के अवसर का लाभ नहीं उठा सका।”
मामले में सरकारी वकील एडवोकेट एबी गिरसे ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि जब दो जजों के बीच मतभेद होता है, तो मामला तीसरे जज के समक्ष रखा जाता है। तीसरा जज किसी एक के विचार पर अपनी सहमति रखता है और उसे ही फाइनल मान लिया जाता है।