लॉकडाउन के चलते नौकरी जाने और काम धंधे बंद होने के बाद प्रवासी अपने अपने गृह राज्य लौट रहे हैं। हालांकि अपने राज्य में भी उनकी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पश्चिम बंगाल में विभिन्न राज्यों से लौटने वाले प्रवासियों को स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। बंगाल के हुगली जिले के आरामबाग इलाके में स्थित गांव ताजपुर के 7 लोग पिछले दो महीने से पंजाब में फंसे थे। बीते दिनों ये सातों लोग अपने गांव लौटे हैं, लेकिन अब यहां भी अपने आप को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं।
दरअसल इन प्रवासियों को गांव वाले बहिष्कार और प्रशासन की उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन इन लोगों को गांव के प्राइमरी स्कूल की बिल्डिंग में क्वारंटीन करना चाहता है लेकिन गांव के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इस पर इन प्रवासियों को गांव के बाहर जंगल के पास एक पंडाल लगाकर वहां ठहरा दिया गया। प्रवासियों का कहना है कि वहां रात में सोना बेहद खतरनाक है क्योंकि जंगल होने के नाते वहां जहरीले सांपों का खतरा बहुत ज्यादा है।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में बंगाल में आए तूफान में एक पेड़ उखड़कर उस पंडाल पर गिर गया। जिससे प्रवासी मजदूरों का वहां से भी ठिकाना खत्म हो गया। अब प्रशासन ने गांव की पंचायत बिल्डिंग के एक बरामदे में इन लोगों को ठहराने की व्यवस्था की है।
बता दें कि प्रशासन पहले इन प्रवासियों को होम क्वारंटीन करना चाहता था लेकिन गांव वालों ने इन लोगों को गांव में आने ही नहीं दिया। इसके बाद इन्हें पंडाल में ठहराया गया था। अब पंडाल के तूफान में तबाह होने के बाद प्रशासन इन्हें स्कूल में क्वारंटीन करना चाहता है तो गांव वाले इसका भी विरोध कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की बात करें तो राज्य में 582 बड़े क्वारंटीन सेंटर हैं लेकिन वो सभी भर चुके हैं। यही कारण है कि अब राज्य सरकार ने प्रवासियों को स्थानीय स्कूलों में ठहराने के निर्देश दिए हैं। हालांकि स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
बता दें कि बंगाल में पूर्वी बर्धवान, पश्चिमी बर्धवान, नादिया, उत्तरी 24 परगना, बराकपोरा, सांतिपुर आदि जिलों से भी प्रवासियों को प्राइमरी स्कूल में या होम क्वारंटीन करने का स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किए जाने की खबरें मिली हैं।