जॉय प्रकाश दास
पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के जमालपुर ब्लॉक में स्थित सोजीपुर गांव के शेख औलाद अली पंजाब में सोने पर जटिल नक्काशी करने का काम करते थे लेकिन लॉकडाउन के चलते काम बंद हो गया और उन्हें अपने गांव वापस लौटना पड़ा। घर आकर 14 दिन क्वारंटीन रहने के बाद औलाद अली ने अपने परिवार का पेट पालने के लिए मनरेगा में खुद का रजिस्ट्रेशन करा लिया। जिसके बाद अब औलाद अली गांव में मनरेगा के तहत गड्ढे खोदने और नाली बनाने जैसे काम कर रहे हैं।
औलाद अली के साथ ही गांव के 22 अन्य युवक भी सोने पर जटिल डिजाइन बनाने का काम करते हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते सब अपने अपने घर आए हुए हैं। इन लोगों को अब इंतजार है कि सब कुछ सामान्य हो और उनके मालिक उन्हें बुलाएं तो वह फिर से अपने काम पर लौट सकें। इन लोगों का कहना है कि सभी को मनरेगा के तहत काम नहीं मिलता है और जो काम मिलता है उसके पैसे भी कम है।
कुछ लोगों ने तो अपने घर के आसपास नौकरियां भी तलाशनी शुरू कर दी हैं, ताकि वह ठीक तरह से अपने परिवार का पेट पाल सकें। औलाद अली ने बताया कि मैं सोने पर जटिल कारीगरी करता हूं और बीते 18 सालों से काम कर रहा हूं। इनमें से बीते 6 सालों से मैं पंजाब में ही हूं। आज मुझे अपने गांव में गड्ढे खोदने पड़ रहे हैं। मेरे हाथों को इस काम की आदत नहीं है लेकिन मेरे पास कोई विकल्प भी नहीं है।
इन कामगारों का कहना है कि उनके मालिकों का कहना है कि सोने का बाजार दिवाली से पहले शुरू नहीं होगा। ऐसे में बेहतर कि तब तक बंगाल में ही कुछ काम किया जाए। सरकारी आंकड़े के अनुसार, बंगाल में करीब 10.5 लाख प्रवासी कामगार वापस लौटे हैं। इनमें से 4 लाख से ज्यादा मनरेगा लाभार्थियों में अपना रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं।