लॉकडाउन की मार सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ी है। दरअसल लॉकडाउन से उनके सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है। धर्मनाथ सपेरा एक दिहाड़ी मजदूर है, जो कबाड़ इकट्ठा करके या फिर कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करके अपने परिवार का पेट भरता है। वह जयपुर के मानसरोवर इलाके में झुग्गी झोपड़ी में रहता है। अब चूंकि राजस्थान सरकार ने कोरोना वायरस के चलते 31 मार्च तक राज्य में लॉकडाउन लागू किया हुआ है, ऐसे में धर्मनाथ सपेरा के सामने अपने 9 सदस्यों के परिवार का पेट भरना मुश्किल हो गया है।
द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में धर्मनाथ सपेरा ने बताया कि “हम आज चौकड़ी (दिहाड़ी मजदूरों के इकट्ठा होने की एक जगह, जहां उन्हें काम मिलता है) गए थे लेकिन पुलिस ने हमें भगा दिया। उन्होंने हमें घर पर रहने को कहा है। अगर हम अपने घर रहेंगे तो हमारे परिवारों को कौन पालेगा? हम हर दिन की कमाई पर निर्भर हैं। हमारे पास कोई बचत नहीं है।”
सपेरा ने बताया कि “झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को अभी तक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है। कुछ लोग हमें चावल और अनाज दान कर देते हैं। ऐसे में हम पूरी तरह से अब दान पर निर्भर हो गए हैं।”
जयपुर के मानसरोवर इलाके के स्लम में ही रहने अंगूरी देवी का कहना है कि ’31 मार्च तक हम लोग मर जाएंगे। हमारे पास खाना नहीं है अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारे बच्चों के पास कुछ भी खाने के लिए नहीं होगा।’
राजस्थान सरकार का कहना है कि कंस्ट्रक्शन के काम में लगे करीब 23 लाख मजदूर, 5 लाख रजिस्टर्ड फैक्ट्री मजदूर और एक लाख स्ट्रीट वेंडर्स (ठेले- खोमचे वाले) शहरी इलाकों में मुश्किल का सामना कर रहे हैं। सीएम अशोक गहलोत ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर राहत पैकेज की मांग की है।
राजस्थान में 21 मार्च को लॉकडाउन के ऐलान के बाद सीएम अशोक गहलोत ने ट्वीट कर जानकारी दी थी कि नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट (NFSA) के लाभार्थियों को राशन, मुफ्त गेहूं मिलेगा। वहीं शहरी इलाकों में जो श्रमिक NFSA के तहत रजिस्टर्ड नहीं है, उन्हें 1 अप्रैल तक खाने के मुफ्त पैकेट दिए जाएंगे।
हालांकि एक मजदूर हंसराज राना का कहना है कि उन्हें अभी तक खाने का कोई पैकेट नहीं मिला है। मजदूर संगठन से जुड़े लोगों ने सरकार से तुरंत कदम उठाने की मांग की है।