कोरोना वायरस माहमारी के चलते लागू हुए लॉकडाउन का असर जहां देश की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ा है, वहीं देश का हर तबका भी इससे प्रभावित हुआ है। बीते दिनों सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की लेकिन इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझे जाने वाले मध्यम वर्ग की झोली अभी भी खाली है। मध्यम वर्गीय लोगों की शिकायत है कि सरकार ने राहत पैकेज में गरीबों की सहायता की, पूंजीपतियों और मध्यम-छोटे कारोबारियों को मदद दी लेकिन सैलरी पाने वाला या छोटा मोटा व्यवसाय करने वाला मध्यम वर्गीय इस राहत पैकेज से अछूता ही रहा है।
एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में मध्यम वर्गीय लोगों का दर्द छलक पड़ा। लोगों का कहना है कि सरकार ने मध्यम वर्गीय लोगों के लिए कुछ नहीं किया है। लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां छूट गई, जिनकी बची हुई हैं, उन्हें सैलरी कट कर मिली है। मध्यम वर्गीय गृहणियों का कहना है कि रोजमर्रा के सामान महंगे हो गए हैं, जिससे घर का बजट गड़बड़ा गया है।
लोगों का कहना है कि अब स्थिति ये है कि उन्हें अपने छोटे छोटे खर्च भी सोच समझकर करने पड़ रहे हैं। देश के मध्यम वर्ग के लोगों की यह भी शिकायत है कि उन्होंने सरकार के आह्वान पर गैस सब्सिडी छोड़ी, बुजुर्गों को रेल टिकट में मिलने वाली छूट भी छोड़ दी है, लेकिन अब मुश्किल समय में सरकार ने उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया है।
टीवी चैनल से बातचीत में महिला ने बताया कि देश की लेबर क्लास लंगर खा लेगी, राशन के लिए लाइन में लग लेगी, उच्च वर्ग को कोई परेशानी नहीं है लेकिन मिडिल क्लास को तो मुश्किल वक्त में भी रेंट देना है टैक्स देना है! मिडिल क्लास के लोगों की सरकार से अपील है कि बच्चों की स्कूल फीस में छूट मिलनी चाहिए। हालांकि अभी तक ऐसी कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।
सरकार के मुताबिक अगस्त तक लोन की ईएमआई देने पर छूट दी गई है लेकिन कुछ लोगों का, जिन्होंने प्राइवेट बैंकों से लोन लिया है उनका कहना है कि बैंक ने छूट तो दी है लेकिन इएमआई पर ब्याज भी मांग लिया है। इस तरह से मध्यम वर्गीय लोगों को ईएमआई देने में समय तो मिला है लेकिन ब्याज का पैसा लगाकर एक ईएमआई अतिरिक्त देनी पड़ेगी।