दिल्ली की गांधीनगर मार्केट एशिया की सबसे बड़ी गारमेंट मार्केट में से एक है। जहां बड़ी संख्या में टेलर का काम करने वाले मजदूर रहते हैं। हालांकि लॉकडाउन के चलते इन टेलर्स के सामने रोजी रोटी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। पहले चरण का लॉकडाउन तो इन मजदूरों ने किसी तरह से निकाल लिया है लेकिन अब दूसरे चरण का लॉकडाउन पूरा करना इनके लिए बेहद मुश्किलों भरा हो गया है। दरअसल इनका राशन खत्म हो गया है और नया राशन खरीदने के लिए अब इनके पास पैसे भी नहीं हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस ने इन मजदूरों से बात की तो उन्होंने बताया कि अब उनके पास खाने की लाइन में घंटों खड़े रहने के अलावा कोई चारा नहीं है। इन लाइनों में घंटों खड़े रहने के बाद भी उन्हें दो सूखी रोटियां, मुट्ठीभर दाल और एक प्याज ही मिलती है।

गांधीनगर में पिछले दो दशक से टेलर का काम कर रहे अमरपाल ने बताया कि जींस की जेब बनाने वाले कपड़े से अब हम लोग मास्क बना रहे हैं। दिल्ली सरकार ने मकान मालिकों को अपने किराएदारों से किराया ना लेने को कहा है, इसके बावजूद उनके मकानमालिक ने किराया लेने का दबाव बनाने के लिए बाथरूम पर ताला जड़ दिया है।

दिल्ली की गांधीनगर मार्केट में करीब 15 हजार दुकानें हैं और उनमें करीब 2.5 लाख स्किल्ड वर्कर काम करते हैं। लॉकडाउन के चलते यह मार्केट बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहले उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़के दंगों के चलते गांधीनगर में काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ क्योंकि यहां काम करने वाले अधिकतर वर्कर उत्तर पूर्वी दिल्ली में रहते हैं। अब दंगों का असर अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि कोरोना वायरस ने उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया है।

रामनगर मार्केट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष संजय जैन ने बताया कि ‘मार्च महीने की सैलरी वर्कर्स को दे दी गई है लेकिन अप्रैल में देना मुश्किल होगा…हमारा स्टॉक खराब हो रहा है, जब तक लॉकडाउन से छूट मिलेगी, तब तक सभी बड़े त्योहार खत्म हो चुके होंगे।’

शाहिद उल इस्लाम नामक एक मजदूर ने बताया कि उसे अपनी पत्नी और बच्चे का भी पेट भरना है। पांच दिन पहले उसके पास पैसे खत्म हो गए हैं और अब लाइन में घंटो खड़े रहकर खाना लेना पड़ता है। ‘खाना नहीं मिलेगा तो बीवी बच्चे को क्या मुंह दिखाऊंगा’

ऐसा ही हाल गांधीनगर में रहने वाले अन्य मजदूरों का भी है। गांधीनगर में बड़ी संख्या में मजदूर अपने अपने घरों को जा चुके हैं और दुकानें बंद पड़ी हैं। एक गारमेंट फैक्ट्री में रह रहे 5 टेलर्स ने बताया कि वह चावल पकाकर ही अपना पेट भर रहे हैं और बेंच पर सोते हैं। एक मजदूर जहांगीर हुसैन ने बताया कि ‘मैं अपनी भूख के बारे में नहीं सोचता हूं, मुझे पश्चिम बंगाल में रह रहे अपने परिवार की चिंता है…उनकी भूख की चिंता है। मेरे पास फोन भी नहीं है कि उनसे बात कर सकूं।’