कोरोना संक्रमण को लेकर डब्ल्यूएचओ की ओर से हाल में जारी चेतावनियों को लेकर भारत में सामुदायिक संक्रमण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) के कारण सामाजिक विलगाव (सोशल डिस्टैंसिंग) और सामाजिक कलंक (सोशल स्टीग्मा) की भावना के लोगों में महामारी की तर्ज पर फैलने की आशंकाओं की चर्चा तेज हो गई है। देश में कोरोना संक्रमण अभी दूसरे चरण पर है। यानी अभी यह स्थानीय स्तर पर लोगों को संक्रमित कर रहा है। कहा जा रहा है कि अगर यह तीसरे चरण यानी सामुदायिक संक्रमण पर पहुंचा तो हालात बेकाबू हो सकते हैं।

इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुटे हुए हैं और अभी तक आश्वस्त किए जा रहे हैं कि कोविड-19 के सामुदायिक संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है। लेकिन उनके दावों पर सवाल उठने लगे हैं? सामुदायिक संक्रमण यानी जहां एक संक्रमित व्यक्ति का यात्रा इतिहास उपलब्ध नहीं होता या वह कैसे संक्रमित हुआ, इसका पता नहीं चल पाया हो।

क्यों उठ रहे सवाल
कोविड-19 के दो मामले ऐसे सामने आए हैं, जिनके यात्रा इतिहास का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है। शक के घेरे में आए दो मामलों में से एक तमिलनाडु का रहने वाला 20 साल का युवक है, जिसका टेस्ट 21 मार्च को पॉजिटिव आया था। विशेषज्ञ यह पता नहीं कर पाए कि वह कहां से संक्रमित हुआ। वहां के स्वास्थ्य मंत्री सी विजय भास्कर ने इसे घरेलू मामला कहा, जिसका कोई यात्रा इतिहास नहीं है। दूसरा मामला पुणे की 41 साल की महिला का है, जिसकी हालत अब गंभीर है। उसके मामले की पुष्टि 20 मार्च को हुई थी।

तमिलनाडु के पुरुष की तरह ही उसका भी कोई यात्रा इतिहास नहीं है। दोनों ही मामलों में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने 21 मार्च, 2020 को कहा कि हम अभी भी दोनों के संपर्क का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों के मामले में संपर्क की पहचान तय करने के दिनों की संख्या की एक सीमा थी, जिसके बाद यह घोषित किया गया था कि संपर्क का पता नहीं लगाया जा सकता है।

परीक्षण मानदंड और गणितीय मॉडल
सिर्फ दो दिन पहले आइसीएमआर ने 826 नमूनों के परिणाम सार्वजनिक किए। इन्हें गंभीर सांस की बीमारी से पीड़ित उन लोगों से एकत्र किए गए थे, जिनका अंतरराष्ट्रीय यात्रा और संक्रमित व्यक्ति से संपर्क का कोई इतिहास नहीं था। उन सभी का नोवेल कोरोना वायरस (सार्स-सीओवी-2) निगेटिव पाया गया था। आइसीएमआर ने दावा किया था कि परीक्षण मानदंडों का विस्तार करने का कोई कारण नहीं था। हालांकि, 21 मार्च की सुबह इसने उन लोगों की भी कोविड -19 जांच कराए जाने की अनुमति दे दी, जिन्हें सांस की गंभीर बीमारी थी और जिनका कोई यात्रा या संपर्क इतिहास नहीं था।

यह प्रयोग के स्तर पर है। जानकारों की राय में ऐसे लोगों के लिए परीक्षण उपलब्ध नहीं हैं, जिन्हें गंभीर श्वसन संबंधी बीमारियां तो हैं, लेकिन पिछले 14 दिनों में विदेश यात्रा नहीं की है और उनकी कोविड-19 से संक्रमित होने की पुष्टि नहीं हुई है। आइसीएमआर के वैज्ञानिक डॉ. आरआर गंगाखेड़कर के मुताबिक, अगले 24 से 36 घंटों में यह पता चल जाएगा कि कोरोना वायरस ने भारत में सामुदायिक संक्रमण शुरू किया या नहीं। यह पता करने के लिए गणितीय मॉडल पर काम चल रहा है।

क्या हुई कवायद
15 से 29 फरवरी के बीच आइसीएमआर ने श्वसन संबंधी बीमारियों वाले 20 नमूनों का रैंडम परीक्षण किया ताकि पता लगाया जा सके कि भारत में कोविड-19 का सामुदायिक संक्रमण हुआ है या नहीं। नमूनों को देश भर के विभिन्न वायरल अनुसंधान और नैदानिक प्रयोगशालाओं में आरटी-पीसीआर परीक्षण के जरिए यह जांचने के लिए भेजा था कि क्या वे कोविड-19 से संक्रमित हैं। आरटी-पीसीआर एक आणविक जीवविज्ञान तकनीक है, जो वायरस के न्यूक्लिक एसिड कोर की जांच करती है।

आइसीएमआर ने कहा कि उसे उन नमूनों में कोविड-19 का कोई सबूत नहीं मिला और इस आधार पर उसने निष्कर्ष निकाला कि भारत में सामुदायिक संक्रमण नहीं है। जानकारों की राय में अगर हम इन नमूनों की औसत तिथि 22 फरवरी मानते हैं, तो तीन सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है। दरअसल, कोविड-19 के लिए तीन सप्ताह का अर्थ है महामारी के विकास का जीवनकाल। उदाहरण के लिए इटली में अल्प अवधि में घातक वृद्धि दिखाई दी। आइसीएमआर ने पिछले हफ्ते भी 800 से अधिक नमूनों का रैंडम परीक्षण किया और उसमें भी सामुदायिक संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई।

देश में कोरोना से संक्रमण के मामलों में वृद्धि की वजह प्रभावित देशों से भारतीयों की वापसी हो रही है। 80 फीसद मामलों में यह सामान्य बीमारी है। 20 फीसद मामलों में कोविड-19 से बुखार और खांसी होती है। पांच फीसद संक्रमितों को भर्ती कराने की जरूरत होती है।- डॉ. बलराम भार्गव, महानिदेशक, आइसीएमआर।

इसे सामुदायिक प्रसार नहीं माना जाएगा। लेकिन इस आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है। एक या दो मामले व्यापक सामुदायिक प्रसार का मामला नहीं हो सकते, लेकिन इसके संकेत जरूर हो सकते हैं। -टी जैकब जॉन, सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च फॉर वाइरोलॉजी के पूर्व प्रमुख।