भारत में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सरकार की तरफ से भले ही कहा जा रहा हो कि दुनियाभर के देशों की तुलना में भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या कम है लेकिन ग्लोबल एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत में कोरोना संक्रमितों के आंकड़े जुटाने में कोताही बरती जा रही है।भारत में आधिकारिक तौर पर कोरोना डेथ रेट अमेरिका से 20 गुना कम है। लेकिन कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत कोरोना से हुई मौतों के सही आंकड़े जुटाने में असफल रहा है और बीमारी को नियंत्रित करने के लिए सही आंकड़ों का जुटाया जाना काफी आवश्यक है।
Johns Hopkins Institute for Applied Economics के फाउंडर और को -डायरेक्टर स्टीव एच हैनके कहते हैं कि खराब डेटा कलेक्शन प्रणाली और भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी के चलते सही आंकड़े सामने नहीं आ पाए हैं। डेटा छूट जाना या फिर डेटा जुटाने में लापरवाही बरतना हमेशा से लोक स्वास्थ्य के लिए बनाई जा रही नीति में बाधक रही है। यह ऐसा है जैसे को अंधा पायलट जहाज उड़ा रहा हो।
जॉन्स होप्स यूनिवर्सिटी के सबसे हालिया आंकड़ों के अनुसार 1.3 बिलियन के देश में 1.8 मिलियन से अधिक पुष्ट संक्रमण और 40,000 के करीब मौतें हैं। प्रति 100,000 में इसकी मृत्यु दर लगभग 2.82 है, जबकि अमेरिका में 47.33 और ब्राजील में 44.92 है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि महामारी ने देश की खराब स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। उनका कहना है कि स्वास्थ्य ढांचे में खराबी की एक बानगी डेटा कलेक्शन में कोताही भी है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि वायरस की चपेट में आने से पहले ही भारत का मृत्यु पंजीकरण डेटा खराब था। खासतौर पर ग्रामीण गांवों में अधिकांश मौतें घर पर ही होती हैं और नियमित रूप से अपंजीकृत हो जाती हैं। दूसरों के लिए सूचीबद्ध मृत्यु का कारण अक्सर एनोडी है – बुढ़ापे या दिल का दौरा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में सभी मौतों में से केवल 20% -30% ही ठीक से चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित हैं।
एक्सपर्ट्स ने भारत के तीन प्रमुख शहरों के डेटा रिवाइस को लेकर भी सवाल उठाए हैं। नई दिल्ली, मुंबई और चेन्नई ने जून में अपने कोविड -19 की मौत के आंकड़ों को संशोधित किया। संशोधनों के कारणों में भिन्नता है। नई दिल्ली में, स्थानीय नगर निकायों ने कहा कि अस्पताल में मौत के आंकड़े और इस बीमारी के चलते मारे गए लोगों के दफन और दाह संस्कार की रिपोर्ट में अंतर था। वहीं, चेन्नई और मुंबई में कई स्रोतों से डेटा एकत्र करने में देरी या नौकरशाही की कमी का हवाला दिया गया था।