कोरोना महामारी ने 2020 में सिनेमा उद्योग की कमर तोड़ दी। फिल्म उत्पादन, वितरण और प्रदर्शन तीनों ही क्षेत्रों में इस महामारी से हजारों करोड़ रुपए का नुकसान फिल्मजगत को उठाना पड़ा।
फिल्मों की शूटिंग बंद थी। वितरक तैयार पड़ी फिल्मों को नहीं उठा रहे थे। सिनेमाघरों पर ताले लगे थे। ऐसे में बीते साल ओटीटी का विकल्प मिला और कहा गया कि यह मनोरंजन बाजार की मुसीबत की दवा है। मगर 28 भाषाओं में 2000 के आसपास फिल्में बनाने वाले उद्योग को अकेला ओटीटी मुसीबत से बाहर निकाल देगा, यह कहना अतिश्योक्ति है। इस साल कोरोना महामारी का इस उद्योग पर किस तरह का असर होगा, यह देखना अभी बाकी है, मगर 2020 में कोरोना महामारी ने न सिर्फ फिल्मोद्योग की कमर तोड़ दी, बल्कि बॉलीवुड की चमक भी फीकी कर दी थी।

फेडरेशन आॅफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज से जुड़े लगभग पांच लाख लोगों पर इसका असर पड़ा। इनमें से 2.5 लाख श्रमिक हैं, जिनमें जूनियर कलाकार, मेकअप आर्टिस्ट, सेट डिजाइनर, बढ़ई और बैकग्राउंड डांसर आदि शामिल हैं।

इनमें से बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए। उनकी मदद करने के लिए छिटपुट प्रयास हुए, जो नाकाफी थे। इस तरह की घटनाएं भी सामने आर्इं, जिनमें बताया गया कि किसी कलाकार ने आर्थिक संकट के चलते आत्महत्या कर ली। फिल्मजगत से जुड़े लोगों की रोजीरोटी का संकट 2021 में भी टलता नहीं दिख रहा है।

वितरण क्षेत्र में कोरोना महामारी का असर यह रहा कि फिल्मों का जो उत्पादन हुआ था उसके लिए वितरक नहीं मिल रहे थे। नतीजा यह हुआ कि अप्रैल से लेकर पूरे साल जिन फिल्मों को सिनेमाघर तक पहुंचना था, वे नहीं पहुंच सकी। इससे कई फिल्मों की लागत बढ़ गई। बॉलीवुड में लगभग पचास से ज्यादा बड़े बजट की हिंदी फिल्मों के निर्माता ज्यादा प्रभावित हुए।

वे फिल्में जो 2020 में रिलीज होनी थी, अब 2021 में रिलीज होंगी। इससे फिल्मों के प्रदर्शन का शेड्यूल 2021 में गड़बड़ाता नजर आएगा। प्रदर्शन क्षेत्र को भी कोरोना महामारी के चलते भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। सरकार के निर्देशों के मद्देनजर मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया ने अपने सदस्यों को सिनेमाघर बंद रखने का निर्देश जारी किया। लिहाजा देश के 6327 सिंगल स्क्रीन सिनेमा समेत साढ़े नौ हजार स्क्रीन ठप थीं।

68 शहरों में 626 स्क्रीन चलाने वाले आइनॉक्स से लेकर 71 शहरों में 845 स्क्रीन चलाने वाले पीवीआर को भारी नुकसान उठाना पड़ा। एक अनुमान के मुताबिक सिंगल स्क्रीन थिएटरों को एक महीने में करीब 25 से 75 लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ा।

बीते साल प्रदर्शन के क्षेत्र में ओटीटी (ओवर द टॉप) की खूब चर्चा रही। अमेजन, नेटफ्लिक्स, अल्ट बालाजी, डिज्नी + हॉटस्टार जैसे ओटीपी पर फिल्में रिलीज करने का चलन बढ़ा। इससे फिल्म और धारावाहिक निर्माताओं को थोड़ी राहत मिली।

लेकिन इसका असर मल्टीप्लेक्स कारोबार पर पड़ने लगा। निर्माताओं और वितरकों के बीच दरारें बढ़ीं कि अगर लोगों को घर बैठे फिल्में देखने को मिलेंगी, तो मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघरों में कौन आएगा। ऐसे में वितरक महंगे दाम देकर सिनेमाघरों में दिखाने के लिए फिल्में क्यों खरीदेगा।

एक अनुमान के मुताबिक सालाना हिंदी फिल्मों की कमाई लगभग 3,000 करोड़ रुपए रहती है। लेकिन इस साल केवल 500-600 करोड़ रुपए की कमाई हुई। इसलिए फिल्म निर्माताओं को कम से कम 1,700-2,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

ओटीटी के इस साल इतने गुण गाए गए कि लगा कि सिनेमाघरों के बंद होने का विकल्प मिल गया है। मगर यह इतना बड़ा उद्योग है कि ओटीटी जैसा माध्यम इसे संभल नहीं सकता। देश में साढ़े नौ हजार स्क्रीन तक इस उद्योग को संभालने में कमजोर पड़ती हैं।

दूसरा जिस लागत पर फिल्में बन रही हैं, उसके मुताबिक कीमत निर्माता को ओटीटी से नहीं मिल सकती। ओटीटी 10-20 लाख लागत से बनी फिल्मों के लिए तो ठीक है, मगर आजकल 500 करोड़ लागत तक की फिल्में बन रही हैं। ओटीटी पर फिल्म बेचकर कोई निर्माता इतनी लागत नहीं निकाल सकता।

कोरोना महामारी के सात महीने बाद कुछ प्रतिबंधों के बाद सिनेमाघर खुलने शुरू हो गए, तो लगा कि धीरे-धीरे यह कारोबार रफ्तार पकड़ लेगा। मगर जिस तरह कोरोना विषाणु रूप बदल रहा है और दुनिया के कई देशों में फिर से सक्रिय हुआ है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि 2021 का साल भी मनोरंजन उद्योग के लिए राहत लेकर आएगा।