जजों की नियुक्ति के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच लगातार तनातनी चल रही है। सरकार कॉलेजियम की हर सिफारिश पर अमल नहीं करती है। सुप्रीम कोर्ट सरकार को कई बार चेतावनी भी जारी कर चुका है। लेकिन सरकार कहती है कि संविधान के हिसाब से जजों की नियुक्ति उसका काम है। भारत के पूर्व अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल मानते हैं कि जजों की नियुक्ति का काम विशुद्ध रूप से सरकार का है। संविधान ने भी ये ही व्यवस्था की है। उन्होंने संविधान सभा का एक वाकया बताकर कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर को सलाह दी गई थी जजों की नियुक्ति का काम चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) पर छोड़ देना चाहिए। लेकिन उन्होंने इस सुझाव को सिरे से खारिज कर दिया था।
डॉ. अंबेडकर ने कहा था- दूसरे शख्स की तरह सीजेआई में भी हो सकती है कमियां
वेणुगोपाल ने एक वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि जब संविधान को बनाने पर बहस चल रही थी तब सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर संविधान सभा में सलाह दी गई थी कि जजों की नियुक्ति पूरी तरह से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) पर छोड़ देनी चाहिए। वेणुगोपाल का कहना है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस मत को खारिज करते हुए कहा कि सीजेआई केवल एक शख्स है। दूसरे शख्स की तरह उसकी भी अपनी कमजोरी और ताकत हैं। एक शख्स के हवाले पूरी न्यायिक व्यवस्था को नहीं छोड़ा जा सकता। इसके प्रतिकूल परिणाम भी सामने आ सकते हैं।
जजों की नियुक्ति के लिए NJAC बेहतरीन पर सुप्रीम कोर्ट को केवल कॉलेजियम मंजूर
पूर्व अटार्नी जनरल ऑफ इंडिया ने बताया कि संविधान में जजों की नियुक्ति का जिम्मा राष्ट्रपति को दिया गया है। भारत में राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर काम करते हैं। यानि जजों की नियुक्ति पूरी तरह से सरकार का काम है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम बनाकर इस काम को पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया।
इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक विशेष साक्षात्कार में उनका कहना है कि जजों की नियुक्ति के लिए NJAC एक्ट बेहतरीन विकल्प है। इसमें व्यवस्था है कि छह लोगों का पैनल सारे काम को देखेगा। इसमें सुप्रीम कोर्ट अपने तीन जजों को तैनात कर सकता है। चौथे सदस्य के रूप में कानून मंत्री और पांचवें और छठे सदस्य के तौर पर किसी नामचीन शख्सियत को लिया जाना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को ही खारिज कर दिया, क्योंकि उसे लगता था कि पैनल में तीन-तीन का अनुपात उसे कमजोर बना सकता है।
पांच दशकों में पहली दफा संविधान संसोधन का कोई फैसला सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
वेणुगोपाल का कहना है कि उन्होंने सुझाव दिया था कि पैनल पांच सदस्यों तक सीमित कर दिया जाए। पिछले पांच दशकों में ये पहली बार था जब सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में संशोधन के किसी फैसले को खारिज किया था। जवाहर लाल नेहरू की सरकार के समय में ये काम कई बार हुआ था। तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के कई ऐसे फैसलों का खारिज कर दिया था जिनमें संविधान में फेरबदल किया गया था। ये 1950 के दशक की बात है।
संसद का सम्मान करे सुप्रीम कोर्ट, वहां की व्यवस्था अदालतों से कहीं ज्यादा बेहतर
वेणुगोपाल का कहना है कि उनके हिसाब से सुप्रीम कोर्ट को संसद का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वहां पर जो लोग बैठे हैं वो लोगों के जरिये चुने जाते हैं। ज्यादातर जज साधन संपन्न तबके से आते हैं। वो केवल वकीलों की दलीलों पर अपना फैसला सुनाते हैं। उन्हें हर पांच साल में जनता के बीच नहीं जाना पड़ता। ऐसे में वो जनता की नब्ज को नहीं पहचानते।
जबकि सरकार को संसद में कोई भी फैसला पारित कराने से पहले एक प्रक्रिया से गुजरना होता है। पहले बिल पेश होता है। फिर उस पर बहस होती है। तमाम सदस्य अपनी राय रखते हैं। कमेटियां भी फैसले को परखती हैं।