राष्‍ट्रगान में संशोधन का मसला एक बार फिर से उठा है। इस बार कोर्ट में नहीं बल्कि कांग्रेस सांसद ने इसे रज्‍यसभा में उठाया है। उन्‍होंने निजी तौर पर प्रस्‍ताव पेश करने के अधिकार का इस्‍तेमाल करते हुए उच्‍च सदन में एक प्रस्‍ताव पेश किया है। कांग्रेस सांसद रिपुण बोरा ने राष्‍ट्रगान से ‘सिंध’ शब्‍द को हटाकर ‘पूर्वोत्‍तर भारत’ शब्‍द को शामिल करने के लिए संशोधन की मांग की है। उन्‍होंने अपने प्रस्‍ताव में तीन बातों का उल्‍लेख किया है। रिपुण ने कहा, ‘भारत के राष्‍ट्रगान ‘जन गण मन’ में ‘सिंध’ (पाकिस्‍तानी प्रांत) का उल्‍लेख किया गया है, जबकि यह भारत का हिस्‍सा नहीं रहा। पूर्वोत्‍तर भारत का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, लेकिन राष्‍ट्रगान में उसको स्‍थान नहीं दिया गया है।’ कांग्रेस नेता ने अपने प्रस्‍ताव में भारत के पहले राष्‍ट्रपति डॉक्‍टर राजेंद्र प्रसाद के बयान का भी उल्‍लेख किया। राज्‍यसभा सदस्‍य ने कहा, ‘तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा में कहा था कि राष्‍ट्रगान जन गण मन में शामिल शब्‍दों और संगीत में सरकार परिस्थिति के अनुसार बदलाव कर सकती है। उसे यह अधिकार दिया जाता है।’

रिपुण ने बताया कि उत्‍तर-पूर्व भारत देश का अभिन्‍न हिस्‍सा है। यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि यह राष्‍ट्रगान का हिस्‍सा नहीं है। दूसरी तरफ, सिंध का इसमें उल्‍लेख है जो भारत का हिस्‍सा नहीं रहा। यह शत्रु देश पाकिस्‍तान का हिस्‍सा है। ऐसे में राष्‍ट्रगान को संशोधित किया जाना चाहिए। सोशल साइट पर लोगों ने उनके प्रस्‍ताव पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया दी है। संजीव सिन्‍हा ने ट्वीट किया, ‘इसे कई वर्ष पहले ही कर लेने की जरूरत थी या आजादी के बाद इसमें संशोधन कर दिया जाना चाहिए था।’ विजय वलेरा ने लिखा, ‘कांग्रेस को सही इतिहास मालूम होता तो यह नौबत नहीं आती।’

सुप्रीम कोर्ट में भी जा चुका है मामला: राष्‍ट्रगान से ‘सिंध’ शब्‍द को हटाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में जा चुका है। वर्ष 2005 में इसको लेकर शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी। तत्‍कालीन मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस आरसी लाहोटी और जस्टिस जीपी माथुर की पीठ ने संजीव भटनागर की अर्जी पर केंद्र और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को नोटिस जारी किया था। उन्‍होंने रबिंद्रनाथ को कोट करते हुए कहा था कि उन्‍होंने कहा था कि ‘सिंध’ का संबंध प्रांत से है, संस्‍कृति से नहीं। हालांकि, बाद में कोर्ट ने इस याचिका को ठुकरा दिया था। वर्ष 2011 में एक बार फिर इसको लेकर बांबे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।