कांग्रेस में बीते कुछ समय में शीर्ष नेतृत्व और पार्टी के कद्दावर नेताओं के बीच मतभेद देखने को मिला है। जहां कांग्रेस में हर स्तर पर बदलाव की मांग करने वाले नेताओं का जी-23 गुट लामबंद होता दिख रहा है, वहीं पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार इससे बेखबर दिखाई देते हैं। हालांकि, अब राहुल की प्रतिक्रियाओं से सामने आने लगा है कि वे जानबूझकर ही जी-23 के मतभेद को दरकिनार करने लगे हैं। फिलहाल राहुल अपने अधिकतर फैसलों के लिए चार सिपहसालारों पर निर्भर हैं। इन चारों में सबसे ऊपर मनमोहन सरकार में मंत्री रहे नेता जितेंद्र सिंह हैं, जो कि असम में विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी बनाकर भेजे गए थे।

जितेंद्र सिंह के अलावा राहुल के विश्वसनीय नेताओं में केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला और अजय माकन जैसे नेता शामिल हैं। हालांकि, इन सबमें जितेंद्र सिंह ने राहुल के करीबी के तौर पर जगह बना ली। बता दें कि जितेंद्र सिंह देहरादून स्थित दून स्कूल के छात्र रहे हैं और अलवर के राजघराने से वास्ता रखते हैं। राजनीति में राहुल के अन्य विश्वसनीय नेताओं के मुकाबले उनका अनुभव सबसे कम है। हालांकि, महज 49 साल की उम्र में ही उन्हें पार्टी में खास जगह मिली है।

असम का प्रभार संभाल रहे जितेंद्र सिंह: कांग्रेस के टिकट पर दो बार चुनाव लड़कर हार चुके जितेंद्र सिंह पार्टी में काफी पैठ रखते हैं। कांग्रेस ने उन्हें पिछले साल सितंबर में ही महासचिव बनाकर असम का प्रभारी नियुक्त किया था। उन्हें असम में कांग्रेस का बदरुद्दीन अजमल की AIUDF से गठबंधन कराने की भूमिका के लिए भी जाना जाता है। बता दें कि पहली बार कांग्रेस असम में AIUDF के साथ लड़ रही है। हालांकि, पार्टी पर पहले भी अजमल के साथ सूझबूझ रखने का आरोप लग चुका है।

जी-23 नेताओं की लामबंदी से कांग्रेस में बढ़ रही दूरियां: बता दें कि पार्टी के 23 असंतुष्ट नेताओं, जिन्होंने पार्टी नेता सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी, को ‘जी -23’ नाम दिया गया है। इसमें गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा जैसे पार्टी के कई बड़े चेहरे शामिल हैं। यह सभी नेता लगातार पार्टी में सुधार के साथ सभी स्तरों पर संगठनात्मक बदलाव की मांग कर चुके हैं। हालांकि, जी-23 की मुलाकातों में शामिल होने वाले कुछ नेता यह भी कह चुके हैं कि वे कांग्रेस से अलग बिल्कुल नहीं हैं और इस गुट को असंतुष्ट नेताओं का समूह बताना गलत है।