पंजाब में इस वक्त सत्तासीन कांग्रेस सरकार में हलचल मची है। वजह है लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े रहे पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और महज 4 साल पहले भाजपा छोड़ पार्टी का हिस्सा बने नवजोत सिंह सिद्धू के बीच का तनाव, जो थमने का नाम नहीं ले रहा। पंजाब में सिद्धू की दमदारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते हफ्ते उन्हें प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी दोनों से मुलाकात का समय मिला। माना जा रहा है कि अमरिंदर सिंह के मजबूत नेता होने के बावजूद कांग्रेस सिद्धू को किनारे लगाने के पक्ष में नहीं है। ऐसे में यह जानना काफी अहम है कि राजनीति में सिद्धू कितना अहम चेहरा हैं।

बताया जाता है कि नवजोत सिंह सिद्धू को राजनीति की समझ अपने पिता सरदार भगवंत सिंह सिद्धू से विरासत में मिली। सरदार भगवंत सिंह एक समय कांग्रेस के नेता और MLC भी रहे, जबकि उनकी मां भी राजनीति में खासी रुचि रखती थीं। अपने इसी अनुभव की बदौलत एक समय नाराजगी में भाजपा छोड़ने का फैसला करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू अब सीएम से ढेर सारे विवादों के बावजूद कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ रहे।

अमृतसर से नहीं मिला था चुनाव लड़ने का मौका, यहीं से हुआ था भाजपा से मनमुटाव: अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में ही सिद्धू को भाजपा का साथ मिला था। उन्होंने 2004 से लेकर 2009 तक तीन बार (उपचुनाव के साथ) अमृतसर की सीट जीती, पर 2014 में जब अरुण जेटली को इस सीट से खड़ा किया जाने का फैसला लिया गया, तब संकेत मिलने लगे थे कि सिद्धू का भाजपा से मनमुटाव बढ़ गया।

बताया जाता है कि भाजपा ने सिद्धू को 2014 के लोकसभा चुनाव में पीछे करने का फैसला अकाली दल के नेता सुखबीर बादल और उनके साले बिक्रम सिंह मजीठिया के दबाव में लिया था। सिद्धू को इसके बाद राज्यसभा भी भेजा गया। लेकिन उनके और भाजपा के बीच दरार काफी बढ़ चुकी थी। सिद्धू ने खुद द इंडियन एक्सप्रेस को इंटरव्यू में बताया था कि भाजपा ने उन्हें सूचना-प्रसारण मंत्रालय देकर केंद्र में आने के लिए मनाने की कोशिश की थी। हालांकि, उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए पंजाब को छोड़ने से इनकार कर दिया था।

बनाई थी नई पार्टी, पर चुनाव से पहले लेना पड़ा कांग्रेस का साथ: नवजोत सिंह सिद्धू जिन्हें उनके करीबी शेरी पाजी के नाम से भी जानते हैं, ने 2016 में भाजपा छोड़ने का फैसला किया था। इस दौरान उन्होंने आवाज-ए-पंजाब मंच नाम से एक पार्टी भी बनाई थी, जिसमें भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान परगट सिंह भी शामिल थे। तब सिद्धू ने अमरिंदर सिंह और सत्ता पर काबिज बादल परिवार को एक ही सिक्के के दो पहलू करार दे दिया था। लेकिन पंजाब में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक एक महीने हले सिद्धू खुद कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

कहा जाता है कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच तालमेल की कमी दिखने लगी थी। एक ही राज्य में पार्टी के पास दो बड़े चेहरों के बीच तनाव की खबरें भी लगातार सामने आने लगीं। इस दौरान जहां सीधे जवाब देने वाले पंजाब सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गांधी परिवार से अलग अपना रास्ता तय किया, वहीं सिद्धू इस दौरान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से संपर्क में बने रहे। इस बीच सिद्धू को पार्टी में शामिल करने की बात हो या कैबिनेट में जगह देने की। न तो अमरिंदर ने अपनी खीझ छिपाई और न ही सिद्धू खुद को नाराजगी जाहिर करने से रोक पाए।