हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन हरियाणा में निराशाजनक रहा। पार्टी राज्य में महज 37 सीटें जीत सकी। वहीं, जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को 6 सीटें मिली। वहीं, कांग्रेस के झारखंड प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने इसे शुरुआती मुश्किलें बताते हुए खारिज कर दिया। इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में गुलाम अहमद ने कहा कि उनके सामने अब झारखंड के कठिन चुनावों में कांग्रेस को आगे बढ़ाना और मुश्किल सीटों के बंटवारे पर बातचीत करने की मुख्य चुनौती है।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों से कांग्रेस ने क्या सबक सीखा है? इस सवाल के जवाब में गुलाम अहमद मीर ने कहा कि जम्मू में हमने कुछ आंतरिक और संगठनात्मक गलतियां कीं। हरियाणा में भी कुछ मुद्दे थे। हम अब सतर्क और सावधान हैं। वहां गुटबाजी थी, यहां सीटों और उम्मीदवारों पर चर्चा करते समय हर कोई एकमत है। हम जिन 30 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से 18 हमारी मौजूदा सीटें हैं।
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, “हम लगभग आधा दर्जन सीटों पर मामूली अंतर से हारे हैं और आधा दर्जन सीटों पर हमें कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। हम वह सब कर रहे हैं, हमने एक तंत्र बनाया है, लगभग हर सीट पर वरिष्ठ पर्यवेक्षकों को नियुक्त किया है।”
झारखंड में सीटों के बंटवारे को लेकर असमंजस की स्थिति
झारखंड में जेएमएम और कांग्रेस ने 81 में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इस सवाल के जवाब में कांग्रेस नेता ने कहा, “कांग्रेस और जेएमएम के बीच 70 सीटों पर सहमति बन गई है, जिसमें से 41 जेएमएम और 29 कांग्रेस को मिलेंगी। बाकी बची 11 सीटों में से आरजेडी पांच-छह और सीपीआई (एमएल) तीन-चार सीटों पर चुनाव लड़ेगी। 11 में से एक-एक सीट अब जेएमएम और कांग्रेस को मिल जाएगी इसलिए कांग्रेस 30 सीटों पर और जेएमएम 42 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।”
कांग्रेस ने पिछली बार 31 सीटों पर चुनाव लड़ा था इसलिए आप इस बार एक सीट कम पर चुनाव लड़ रहे हैं? इस सवाल पर गुलाम अहमद मीर ने कहा कि जेएमएम भी एक सीट कम लड़ेगी क्योंकि पिछली बार गठबंधन में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी शामिल थे। सीपीआई (एमएल) हमारे गठबंधन में शामिल हो गई है। जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी तीनों एक सीट कम लड़ेंगे।
कितनी सीटों पर कौन लड़ेगा चुनाव?
आरजेडी 12-13 सीटों की मांग कर रही है और कह रही है कि वह अकेले चुनाव लड़ सकती है। तो क्या दोस्ताना मुकाबला हो सकता है?
इस सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा, “यह गठबंधन के लिए अच्छा नहीं होगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उनसे बात कर रहे हैं। यहां अहंकार का कोई सवाल ही नहीं है। राजद ने पिछली बार सात सीटों पर चुनाव लड़ा था। उन्हें भी एक सीट छोड़ देनी चाहिए। पिछली बार उनका जीत प्रतिशत 16% था, सात सीटों में से, उन्होंने केवल एक पर जीत हासिल की। जेएमएम का जीत का अनुपात 74% था जबकि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 55% था।”
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, “उनकी (राजद) जीत का प्रतिशत कम था और अगर वे अधिक सीटें लेते हैं और कम जीतते हैं, तो इसका मतलब है कि हम उन्हें दूसरी तरफ थाली में परोस रहे हैं इसलिए कम सीटें ले लें, उसमें ज्यादा ताकत लगा लें और बेहतर नतीजे लाएं। मुझे यकीन है कि वे समझेंगे। वे यह जानने के लिए समझदार हैं कि दोस्ताना लड़ाई और सब कुछ कभी फायदेमंद नहीं होता है। इससे केवल भाजपा को फायदा होगा।”
उन्होंने कहा कि सीट शेयरिंग से कोई खुश नहीं होता लेकिन अंततः अगर हमें एक साथ मिलकर मुकाबला लड़ना है तो सभी को बलिदान देना होगा और कुछ नुकसान उठाना होगा। हमें बड़ी तस्वीर और बड़े लक्ष्य को देखना होगा, जो कि भाजपा को हराना है।
गठबंधन कोई साझा घोषणापत्र या साझा एजेंडा लेकर आएगा?
क्या गठबंधन कोई साझा घोषणापत्र या साझा एजेंडा लेकर आएगा? इस पर गुलाम अहमद ने कहा कि मैंने कुछ महत्वपूर्ण गारंटियों, कुछ महत्वपूर्ण वादों, कुछ मुद्दों पर सुझाव दिया है, जिन पर आम सहमति है। हमें अभी इस पर चर्चा करनी है। एक बार सीट बंटवारा हो जाए तो हम इसे कर सकते हैं। मेरे विचार से, चुनाव प्रचार के लिए गठबंधन का एक साझा एजेंडा होना चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल होने पर उन्होंने कहा कि ऐसा व्यक्तिगत कारण से हो सकता है। मुझे बताया गया है कि वे वहां खुश नहीं हैं। जब भाजपा को लगा कि हेमंत सोरेन को जेल में डालने से कोई फायदा नहीं हो रहा है, ईडी और सीबीआई के मामले भी न तो मदद कर रहे हैं और न ही कोई राजनीतिक प्रभाव डाल रहे हैं, तो उन्होंने नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ चंपई सोरेन को शामिल करने के बारे में सोचा। इसमें वे विफल रहे।