Congress Rally in Delhi: राजधानी दिल्ली से कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग और केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी को वोट चोरी के मुद्दे पर घेरने का प्लान बनाया है, जिसके तहत पार्टी ऐतिहासिक रामलीला मैदान में वोट चोर गद्दी छोड़ रैली करने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव आयोग से मिलीभगत करके बीजेपी वोट चोरी के गंभीर आरोप लगा रही है।
दिल्ली की ‘वोट चोर गद्दी छोड़ रैली’ में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, के सी वेणुगोपाल, जयराम रमेश और सचिन पायलट समेत शीर्ष नेता रैली में शामिल होंगे, लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि इस रैली में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के दलों को क्यों नहीं बुलाया है?
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इंडिया गठबंधन की वजह से मिली थी 2024 में सफलता
साल 2014 से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा था लेकिन 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के तहत क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाया था। इसका कांग्रेस को बड़ा फायदा हुआ था। कांग्रेस की सीटें 99 तक पहुंच गईं थी। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी से लेकर, शिवसेना यूबीटी, जेएमएम, एनसीपी (शरद पवार) जैसी पार्टियों को भी फायदा मिला था।
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विधानसभा चुनाव में विपक्ष को बड़े झटके
लोकसभा चुनाव के बाद हुए हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, झारखंड, दिल्ली और बिहार के चुनावों में विपक्ष को कई बड़े झटके लगे हैं और सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का ही हुआ है। हरियाणा में कथित तौर पर कांग्रेस जीती बाजी हार गई। जम्मू कश्मीर में उसका प्रदर्शन काफी खराब रहा, जिसके चलते इंडिया गठबंधन की सरकार के बावजूद उसे सीएम उमर अब्दुल्ला ने अपनी सरकार में शामिल नहीं किया। झारखंड में भी जीत इंडिया गठबंधन की ही हुई है, लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा।
बात दिल्ली की करें तो इंडिया गठबंधन के घटक दल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग नहीं हुई, तो दिल्ली में चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। बीजेपी ने 27 साल बाद दिल्ली में सरकार बना ली। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों का एमवीए बुरी तरह हारा, जिसके बाद शिवसेना यूबीटी ने हार का सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया।
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बिहार में नहीं चला वोट चोरी वाला मुद्दा?
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने एसआईआर किया तो राहुल गांधी ने इसे वोट चोरी से जोड़कर 16 दिनों की वोटर अधिकार यात्रा तक निकाली लेकिन बिहार चुनाव में आरजेडी कांग्रेस और लेफ्ट के इंडिया गठबंधन का हाल काफी बुरा हुआ है। कांग्रेस ने राज्य में महज 6 सीटें जीतीं है। राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा बिहार में भी विपक्षी दलों को मिली करारी हार में कांग्रेस की अहम भूमिका बताई जा रही है।
वोट चोरी पर कांग्रेस को मिल रहा विपक्षी दलों का साथ
अहम बात यह है कि बिहार में एसआईआर के दौरान राहुल गांधी ने वोट चोरी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कर्नाटक से लेकर हरियाणा, महाराष्ट्र की वोटर लिस्ट को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। हालांकि, चुनाव आयोग लगातार राहुल गांधी के आरोपों को खारिज कर रहा है लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इंडिया गठबंधन के घटक दल राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के वोट चोरी वाले मुद्दे का सपोर्ट कर रहे हैं।
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वोट चोरी के इर्द-गिर्द ही समाजवादी पार्टी से लेकर टीएमसी, शिवसेना यूबीटी, एनसीपी (शरद पवार) आम आदमी पार्टी, डीएमके तक… एसआईआर का विरोध कर रही हैं। इसके बावजूद जब दिल्ली में कांग्रेस पार्टी वोट चोरी के मुद्दे पर ही बड़ी रैली कर रही है, तो फिर उस रैली में इंडिया गठबंधन के घटक दलों को बुलाया क्यों नहीं गया है?
कांग्रेस वोट चोरी के मुद्दे पर बनाना चाहती है राष्ट्रीय नेरेटिव?
दिल्ली में कांग्रेस की रैली और वोट चोरी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल ने कहा है कि पार्टी ने ‘वोट चोरी’ के खिलाफ लगभग 55 लाख हस्ताक्षर एकत्र किए हैं। उन्होंने कहा कि राहुल जी ने सबूतों के साथ दिखाया कि वोट चोरी कैसे हो रही है। उन्होंने गृह मंत्री को प्रेसवार्ता में उनसे बहस करने की चुनौती दी लेकिन गृह मंत्री ने इसका भी जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे को उजागर करने के लिए 14 दिसंबर को ‘विशाल रैली’ कर रही है।
केसी वेणुगोपाल ने कहा कि लोग इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं और हमने इसे गति देने का फैसला किया है। इस रैली के बाद हमने राष्ट्रपति से मुलाकात का अनुरोध भी किया है, ताकि उन्हें 5.5 करोड़ हस्ताक्षरों वाला यह ज्ञापन सौंपा जा सके। यह रैली लोकसभा में चुनाव सुधारों पर हुई तीखी बहस के कुछ दिनों बाद हो रही है। कांग्रेस पार्टी का अकेले वोट चोरी के मुद्दे पर आक्रामकता दिखाना और केसी वेेणुगोपाल का बयान संकेत दे रहा है, कि पार्टी इस मुद्दे को राष्ट्रीय विमर्श बनाना चाहती है। साथ ही वह इस मुद्दे पर अन्य क्षेत्रीय विपक्षी पार्टियों से खुद को अलग दिखाने की कोशिश भी कर रही है।
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