नेशनल हेराल्ड अखबार से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया और राहुल गांधी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के घेरे में हैं। ईडी का मामला निचली अदालत के उस आदेश पर आधारित है जिसने आयकर विभाग को नेशनल हेराल्ड के मामलों की जांच करने और सोनिया और राहुल का कर निर्धारण करने की अनुमति दी थी। यह आदेश भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा 2013 में दायर एक याचिका पर आधारित था।

लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि 1938 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की स्थापना वाले अखबार नेशनल हेराल्ड के वित्त पोषण के बारे में सवाल उठाए गए थे। जवाहरलाल नेहरू के पार्टी सहयोगियों में से एक चंद्र भानु गुप्ता ने भी आरोप लगाया था कि वह पेपर जिसके लिए पैसा इकट्ठा किया गया, वह पीएम और बाद में उनकी बेटी इंदिरा गांधी का मुखपत्र बन गया।

चंद्र भानु गुप्ता चार बार के सीएम रहे हैं, जिन्हें नेहरू के दौर में उत्तर भारत में पार्टी के शीर्ष धन इकठ्ठा वालों में से एक माना जाता था, उन्होंने अपने संस्मरण ‘सफ़र कहीं रुका नहीं, झुका नहीं’ में लिखा है, “मुझे आश्चर्य है कि नेशनल हेराल्ड को अब नेहरू परिवार की संपत्ति माना जाता है। नेशनल हेराल्ड के लिए फंड कैसे इकट्ठा किया गया, इसकी जांच आयोग अगर जांच करता है तो बड़ा खुलासा होगा। शुरू से ही नेशनल हेराल्ड की नीति नेहरू और उनकी बेटी को बढ़ावा देने की थी। इसके लिए प्रेस की आजादी का मतलब नेहरू परिवार की गलत नीतियों की आलोचना करने वाले पर हमला करना था।”

चंद्र भानु गुप्ता 1960 में यूपी के तीसरे सीएम बने, लेकिन 1963 में कामराज योजना के तहत उन्हें पद से हटा दिया गया। के कामराज, जिन्होंने तत्कालीन मद्रास राज्य के सीएम के रूप में कार्य किया था, उन्होंने नेहरू को प्रस्ताव दिया था कि सभी वरिष्ठ कांग्रेस मंत्री और सीएम इस्तीफा दें और पार्टी का काम करें।

14 मार्च, 1967 को चंद्र भानु गुप्ता फिर से मुख्यमंत्री बने, लेकिन चरण सिंह के कांग्रेस छोड़ने और अपनी पार्टी बनाने के बाद 2 अप्रैल, 1967 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा। चंद्र भानु गुप्ता 26 फरवरी 1969 को चौथी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक साल पहले ही कांग्रेस में फूट के कारण उन्हें बाहर कर दिया गया था।