कांग्रेस ने रविवार (15 मई) को कहा कि 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में एनआइए की ओर से दाखिल आरोप-पत्र ने आतंकवाद से मुकाबला करने की भारत की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस ने मांग की कि इस मामले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट को करनी चाहिए। विपक्षी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट को मामले की निगरानी करने दें और इस पर अपने संवैधानिक शपथ का मान रखें। वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एनआइए का मतलब अब ‘नमो इंवेस्टिगेटिव एजंसी’ हो गया है। लगता है आरोप-पत्र का मकसद दिवंगत हेमंत करकरे की अगुवाई वाली मुंबई एटीएस की ओर से की गई कुशल जांच को नुकसान पहुंचाना और पूरी तरह खत्म कर देना है। शर्मा ने दावा किया कि एनआइए ने मकोका के तहत लगाए गए आरोप सिर्फ इस मंशा से हटाए ताकि एटीएस की ओर से दर्ज किए गए सभी बयान ऐसे हो जाएं कि उन्हें सबूतों के तौर पर स्वीकार ही न किया जाए।

कांग्रेस नेता ने मांग की कि एनआइए की ओर से अचानक अपना रुख पलट लेने के कारण साध्वी प्रज्ञा सहित छह आरोपियों को मिली क्लीन चिट और बाकी आरोपियों के खिलाफ मकोका के तहत लगाए गए आरोप वापस ले लिए जाने से मामले के कमजोर होने के मद्देनजर मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए। इस घटनाक्रम ने भारत की निष्ठा और आतंकवादी ताकतों से मुकाबले को लेकर इसकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। खासकर तब जब दशकों से भारत संगठित आतंकवाद का शिकार होने, लक्षित पीड़ित होने की बात कहता रहा है।

शर्मा ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या एनआइए का रुख करकरे की कुर्बानी को नकार रहा है। उन्होंने मांग की कि मोदी को इस मामले में खुद दखल देना चाहिए। कांग्रेस नेता ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह लगातार ऐसे लोगों को बचाने की कोशिश कर रही है जो उनकी विचारधारा का पालन करते हैं या उनसे जुड़े संगठनों से संबंध रखते हैं और आरोपों का सामना कर रहे हैं। यह दिखाता है कि पहले की छानबीन, पहले दाखिल किए गए आरोप और पहले की गई गिरफ्तारी सब गलत था। असलियत ये है कि ये सारे कदम उचित जांच के बाद ही उठाए गए थे। हमने हमेशा पूरी गंभीरता से कहा है कि आतंकवाद और अपराध की कोई जाति, कोई धर्म नहीं होता।

राज्यसभा में कांग्रेस के उप-नेता शर्मा ने सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि वह धमाके से जुड़े इस मामले में जांच एजंसियों, अभियोजन और न्यायपालिका में दखल दे रही है। इस संदर्भ में शर्मा ने मामले की पूर्व विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) रोहिणी सैलियन की ओर से पिछले साल किए गए इस दावे का जिक्र किया कि उन पर इस मामले में नरमी बरतने का दबाव डाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार और एनआइए ने सैलियन के इस दावे के बाद उन्हें एसपीपी के पद से हटा दिया। कांग्रेस नेता ने कहा कि वही कहानी फिर दोहराई गई है क्योंकि मौजूदा एसपीपी अविनाश रासल ने भी कहा है कि उन्हें एनआइए की ओर से आरोप-पत्र दाखिल किए जाने के बारे में सूचना नहीं दी गई। आनंद शर्मा के साथ मौजूद आरपीएन सिंह ने मालेगांव धमाके के मामले में आरोपी कर्नल पीएस पुरोहित की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को पत्र लिखे जाने की खबरों का जिक्र करते हुए कहा कि यह चिंता की बात है। पुरोहित ने कथित तौर पर डोभाल को लिखे पत्र में मामले में उनसे दखल देने को कहा है।

उन्होंने कहा-मैं जानना चाहता हूं कि एनएसए को ऐसे आतंकवादियों से कितने पत्र मिलते हैं और क्या उन्होंने पत्र को कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय के पास भेजा है? यदि यह देश की आंतरिक सुरक्षा है, यदि इसी तरह आतंकवाद के मामलों का राजनीतिकरण किया गया तो यह काफी चिंता की बात है। यूपीए सरकार ने एनआइए का गठन किया था और सुनिश्चित किया था कि यह राजनीतिक दखल से परे हो, क्योंकि आतंकवाद से समझौता नहीं किया जा सकता। कांग्रेस नेता ने कहा-हम ऐसा पहली बार देख रहे हैं कि ऐसी आतंकवादी वारदातों, जिससे इस देश के हृदय और आत्मा को नुकसान पहुंचता है, से सरकार जोड़तोड़ कर रही है और इस देश को बचाने के लिए जिन लोगों ने कुर्बानी दी उन्हें गलत करार दिया जा रहा है। जबकि इस देश को बर्बाद करने की कोशिश कर चुके लोगों के आरोपों को सच करार दिया जा रहा है।